■ अनिरुद्ध दुबे
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में नया रायपुर में नक्सल प्रभावित राज्यों की अंतर राज्यीय समन्वय समिति की बैठक ली। बैठक में शाह ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद को जड़ से मिटाने का लक्ष्य दिया। शाह ने कहा कि “देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा चैलेंज वामपंथी उग्रवाद है।“ वामपंथी उग्रवाद- देखा जाए तो यह शब्द पुराना है, लेकिन इसका इस्तेमाल कभी-कभी ही होते दिखता है। किसी समय में यह कॉलमनिस्ट शाम के अख़बार में कार्यरत था। तब बस्तर में होने वाले नक्सली हमले की ख़बर वाली कॉपी उसकी आंखों के सामने से होकर प्रकाशन के लिए टाइप होने जाया करती थी। बस्तर से लिखकर आता था ‘माओवादी हमला’ या ‘माओवादी मुठभेड़’, जिसे इस कॉलमनिस्ट व्दारा कर दिया जाता था ‘नक्सली हमला’ या ‘नक्सली मुठभेड़।‘ बस्तर में हमारे अख़बार के वरिष्ठ सहयोगी जो ख़बरें भेजा करते, उनका सूझाव हुआ करता कि ‘नक्सली’ की जगह ‘माओवादी’ लिखा करें। वह (नक्सली) खुद को नक्सली नहीं माओवादी कहलाना उचित समझते हैं। बहरहाल अमित शाह बस्तर में शांति चाहते हैं। शांति तो बस्तर के लोग भी चाहते हैं। प्रश्न फिर वही है कि जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, उस समय तक क्या नक्सलवाद खात्मे की राह आसान हो सकेगी। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह रायपुर आए थे तो उन्होंने कहा था कि “केन्द्र में अगर फिर से भाजपा की सरकार बनती है तो बस्तर से नक्सलवाद पूरी तरह मिट जाएगा।“ 2019 से 2024 के वह पांच साल निकले और अभी केन्द्र की मोदी सरकार के पास फिर से बड़ा अवसर है नक्सलवाद के समाधान निकालने का। उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा तो कितनी ही बार कह भी चुके हैं कि “नक्सलियों से बातचीत के रास्ते खुले हुए हैं।“ अगर बस्तर से नक्सलवाद मिट जाता है तो यहां के पर्यटन स्थलों की न सिर्फ़ देश बल्कि विश्व के मानचित्र में अपनी अलग जगह होगी। हर शांतिप्रिय व्यक्ति को बस्तर में शांति का इंतज़ार है।
कटारिया की वापसी
केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहे 2004 बैच के आईएएस अमित कटारिया अब छत्तीसगढ़ में वापस सेवाएं देते नज़र आएंगे। कटारिया से पहले रिचा शर्मा समेत सोनमणि बोरा, अविनाश चंपावत एवं रितु सेन जैसे सीनियर आईएएस अफ़सरों की छत्तीसगढ़ वापसी हो चुकी है। अमित कटारिया के छत्तीसगढ़ लौटने की ख़बर लगते ही उनके बहुत से चाहने वालों ने सोशल मीडिया में अपने-अपने तरीके से उनका स्वागत किया। कटारिया की लोकप्रियता का ग्राफ उस समय ऊपर जाना शुरु हुआ था जब वे रायपुर नगर निगम में कमिश्नर थे। रायपुर रेल्वे स्टेशन के ठीक सामने कितनी ही दुकानें पट्टे पर काबिज़ थीं। इन दुकानों के आड़े आने के कारण रायपुर रेल्वे स्टेशन का फ्रंट लुक नज़र ही नहीं आता था। एक दो दुकानदारों की राजनीतिक एप्रोच इतनी ऊपर तक थी कि वहां तोड़फोड़ की कार्यवाही करने की हिम्मत कोई अफ़सर जुटा नहीं पाता था। इस असंभव से नज़र आने वाले काम को कटारिया ने निगम कमिश्नर रहते हुए में कर दिखाया था। कितना ही राजनीतिक प्रेशर चला लेकिन कटारिया ने किसी की नहीं सुनी और आड़े आ रही दुकानों को हटवाकर ही दम लिया। यह अलग बात है कि बरसों से वहां काबिज़ रहे दुकानदारों का व्यवस्थापन नहीं हो पाया। रायपुर नगर निगम के बाद कटारिया आरडीए (रायपुर विकास प्राधिकरण) के सीईओ (मुख्य कार्यपालन अधिकारी) भी रहे। आज राजधानी रायपुर की ‘कमल विहार’ योजना को जो हम मूर्त रुप में देख पा रहे हैं वह कटारिया के किसी बड़ी चट्टान को धकेलेने जैसे प्रयासों का ही प्रतिफल है। उस दौर में एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जब किसी पत्रकार ने कटारिया से पूछ दिया था कि ‘कमल विहार’ के लिए आपने जी जान लगा दिया, ऐसा क्यों? कटारिया का ज़वाब था- “यदि ‘कमल विहार’ जैसे प्रोजेक्ट लाकर रायपुर को विस्तार नहीं दिया जाएगा तो यह शहर मुम्बई के धारावी जैसा हो जाएगा।“ कटारिया बस्तर कलेक्टर भी रहे। वहां नक्सली समस्या के समाधान के लिए उनकी ओर से हुए प्रयासों को भी लोग याद करते हैं। बस्तर में रहते हुए में उनके तौर तरीके को लेकर जो बवाल खड़ा हो गया था वह भी मीडिया में छाया रहा था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बस्तर आगमन हुआ था। हवाई पट्टी पर प्रधानमंत्री जब विमान से उतरे अभिवादन करने मौजूद कटारिया ने कपड़े तो सादगी वाले पहने हुए थे लेकिन उनकी आंखों पर धूप का चश्मा चढ़ा हुआ था। बस फिर क्या था, कहने वालों ने उस धूप के चश्मे को प्रोटोकाल के विपरीत कहते हुए विवाद को हवा दे दी थी। वह विवाद दो से तीन दिन तक मीडिया में छाया रहा था।
‘इमरजेंसी’ टली…
कंगना रनौत अभिनीत फ़िल्म ‘इमरजेंसी’ की रिलीज़ डेट टल गई है। यह फ़िल्म 6 सितंबर को रिलीज़ होने वाली थी। देश भर में सिक्ख समुदाय की तरफ से इसका जमकर विरोध होने लगा। इसलिए रिलीज़ टालनी पड़ी। राजधानी रायपुर में भी सिक्ख मिशन की तरफ से चेतावनी जारी हुई थी कि छत्तीसगढ़ के सिंगल स्क्रीन एवं मल्टीप्लेक्स कहीं पर भी ‘इमरजेंसी’ न लगाएं। ‘इमरजेंसी’ लगी तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि फ़िल्म ‘इमरजेंसी’ का आधार पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी हैं। छत्तीसगढ़ में पूर्व में भी फ़िल्मों के विषय या नाम को लेकर विरोध सामने आते रहा है। संजय लीला भंसाली की फ़िल्म ‘पद्मावत’ जब रिलीज़ होने को थी तब भी रायपुर में विरोध के स्वर उठे थे। विरोध करने वाले क्षत्रिय समाज से जुड़े लोगों ने यह कहते हुए आपत्ति दर्ज़ कराई थी कि क्षत्रिय महिलाएं घूमर नृत्य नहीं करतीं, जबकि ‘पद्मवात’ में उन्हें घूमर नृत्य करते दिखाया गया है। सूरक्षा व्यवस्था के बीच ‘पद्मावत’ राजधानी रायपुर व अन्य शहरों में प्रदर्शित हो सकी थी। छत्तीसगढ़ी भाषा में एक फ़िल्म बनी थी ‘रौताइन।‘ जैसे ही यह टाइटल प्रचार प्रसार में सामने आया यादव समाज विरोध में उठ ख़ड़ा हुआ। कड़े विरोध को देखते हुए प्रोड्यूसर को फ़िल्म का नाम ‘रौताइन’ से बदलकर ‘सपना में सपना’ करना पड़ा था।
‘नशागढ़’ को लेकर चिंता
बिलासपुर के आईजी कार्यालय में मीडिया से बातचीत करते हुए उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि “प्रदेश में कहीं भी पब एवं बार देर रात तक खुले पाए गए तो संबंधित पुलिस अफ़सरों पर कार्यवाही होगी। छत्तीसगढ़ को नशागढ़ नहीं बनने देना है।“ वैसे भी छत्तीसगढ़ गांजा तस्करी के मामले में कई राज्यों को पीछे छोड़ चुका है। जहां तक पब का मामला है जिसे कि तथाकथित रूप से आधुनिक संस्कृति का हिस्सा माना जाने लगा है, उसकी स्पष्ट झलक रायपुर समेत भिलाई एवं बिलासपुर शहरों में दिखाई देती है। भिलाई के कितने ही युवक एवं युवतियां अपनी रातों को गुलज़ार करने रायपुर के पबों में आते हैं। पबों में मारपीट की घटनाएं आए दिन होती हैं, यह अलग बात है कि वहीं के वहीं दबकर रह जाती हैं। कोरोना काल के लॉक लाउन में रायपुर के वीआईपी रोड स्थित क्वीन्स कल्ब में जो कुछ घटा था उससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है! अच्छी बात है कि उप मुख्यमंत्री पब एवं बार के देर रात तक खुले रहने को लेकर चिंतित हैं। इससे भी बड़ी चिंता की बात तो यह है कि प्रदेश में शहर व कस्बों से दूर स्थित ढाबों में देर रात तक खुले आम शराब छलछलाती है। जब नशाखोरी पर केन्द्रित फ़िल्म ‘उड़ता पंजाब’ आई थी तो यहां ‘डोलता छत्तीसगढ़’ शब्द न जाने कितने दिनों तक कितने ही लोगों की ज़ुबां पर चढ़ा हुआ था।
लाइट मेट्रो ट्रेन
ख़ूब दौड़ाया ब्रेन
जब से रायपुर में लाइट मेट्रो ट्रेन चलाने की चर्चा छिड़ी हुई है साहित्य बिरादरी में किसी को ‘राग दरबारी’ उपन्यास के लेखक श्रीलाल शुक्ला याद आ रहे हैं तो किसी को ‘अंधों का हाथी’ जैसा व्यंग्य नाटक लिखने वाले व्यंग्यकार शरद जोशी। किसी का मानना है लाइट मेट्रो ट्रेन बेहद रोचक विषय है इस पर तो व्हाइट हाउस कहलाने वाले नगर निगम मुख्यालय के ठीक सामने बने गॉर्डन में बड़ा सा मंच बनाकर खुली बहस करवानी चाहिए। यदि ये जगह छोटी लगे तो मरीन ड्राइव बनाम तेलीबांधा तालाब क्या बुरा है! मरीन ड्राइव में बहस रखवाएंगे तो हर उम्र के सुनने वाले भी मिल जाएंगे। लाइट मेट्रो ट्रेन पर पब्लिक ओपिनियन लेना हो तो टीवी चैनल वालों को मरीन ड्राइव के ही सामने अपनी बात को बड़ी स्टाइल के साथ कहने वाले कितने ही मिल जाएंगे। पुराने रायपुर से लेकर नया रायपुर तक इन दिनों विकास की गंगा बह रही हो या न बह रही हो, तरह-तरह की बातों और वादों की हवा ज़रूर बह रही है। मुख्यमंत्री रहते हुए में भला अजीत जोगी ने क्या ग़लत कहा था कि “विमान जब आकाश की तरफ बढ़ रहा हो तो नीचे झांककर देखने पर रायपुर शहर स्वीट्जरलैंड की तरह नज़र आता है।“ फिर महापौर एजाज़ ढेबर ने भी तो वीआईपी रोड को कभी राजीव गांधी मार्ग का नाम देते हुए कहा था कि “रायपुर एक ऐसा शहर है जहां दुनिया भर के लोग पर्यटन के लिए आते हैं। ऐसे में एयरपोर्ट का रास्ता कहलाने वाले वीआईपी रोड की शान-ओ-शौकत का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है।“
प्रोटोकाल में कौन बड़ा…
रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर ने बताया कि रायपुर शहर में लाइट मेट्रो ट्रेन चलाने अनुबंध पत्र में मेरे अलावा मैक्सिम लिक्सुटोव के उप महापौर तथा मास्को सरकार के परिवहन व सड़क बुनियादी ढांचे विकास विभाग के प्रमुख ने हस्ताक्षर किए। यह जानकारी सामने आने के बाद रायपुर नगर निगम के बहुत से नेता, अधिकारी व कर्मचारी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि इंटरनेशनल लेवल वाला यह जो अनुबंध हुआ उसमें प्रोटोकाल में कौन बड़ा रहा होगा रायपुर महापौर या रशिया का उप महापौर…
क्या से क्या हो गया…
ज़िंदगी का क़रीब 45 साल राजनीति को दे चुके छत्तीसगढ़ के एक विव्दान नेता से सवाल हुआ कि अभी की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में आप क्या कहेंगे? उनका ज़वाब था- “भाजपा पुरानी कांग्रेस की तरह हो गई है और कांग्रेस पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी की तरह…” नेताजी ने यह भी कहा कि “राज्य बनने के बाद की बात करें तो छत्तीसगढ़ में एक-दो ऐसे नेता थे जिनमें अपार संभावनाएं नज़र आती थीं, लेकिन कुसंगति उन्हें ले डूबी…”