बरसों से पेंशन के लिए भटक रही स्वतंत्रता सेनानी की बेटी, कोर्ट के फैसले के बाद भी कोई सुध नहीं

मिसाल न्यूज़

रायपुर। कोर्ट ने काफ़ी पहले से यह व्यवस्था दे रखी है कि किसी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व उनकी पत्नी का निधन हो जाता है तो आश्रित की जगह पर जिस कुंवारी बेटी का नाम लिखा होगा उसे पेंशन की पात्रता होगी। इस 2022 में हम आज़ादी की 75 वीं सालगिरह मना रहे हैं, इधर रायपुर के एक सेनानी परिवार की बेटी धनेश्वरी ठाकुर पिता की आश्रित पेंशन के लिए भटक रही हैं। कोर्ट का फैसला बेटी के पक्ष में आ चुका है और शासन के वरिष्ठ अधिकारी भी मान चुके हैं कि उन्हें पेंशन की पात्रता है, इसके बावजूद उनकी पेंशन शुरु नहीं हुई है।

उल्लेखनीय है कि किसी प्रकरण में काफ़ी पहले कोर्ट का फैसला आया था कि किसी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व उनकी पत्नी का निधन हो जाता है तो उन पर आश्रित रही कुंवारी बेटी पेंशन की हक़दार होगी। उस आदेश के अनुरूप छत्तीसगढ़ में कई बेटियों को पेंशन मिल भी रहा है। रायपुर निवासी रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घनश्याम सिंह ठाकुर के निधन के बाद उनकी पेंशन (सम्मान निधि) अविवाहित बेटी धनेश्वरी ठाकुर (उम्र 60 वर्ष) को मिलना था, जो कि पिछले 22 साल से नहीं मिल रही है। पेंशन के हक के लिए धनेश्वरी पिछले 22 वर्षों से कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रही हैं। इस काम में अब तक उनके डेढ़ लाख से ज़्यादा ख़र्च हो चुके हैं। यहां यह बता दें कि घनश्याम सिंह ठाकुर ने धनेश्वरी को अपना आश्रित घोषित किया था। 24 जून 1999 को ठाकुर का निधन हो गया। उसके बाद आश्रित बेटी ने पिता की पेंशन व अन्य लाभ के लिए आवेदन लगाया था। राज्य शासन ने 23 अगस्त 2005 को यह कहते हुए आवेदन को खारिज़ कर दिया कि स्वतंत्रता सेनानी के निधन के बाद सिर्फ़ उनकी पत्नी ही पेंशन की पात्रता रखती हैं। घनश्याम सिंह ठाकुर की पत्नी का निधन बरसों पहले हो चुका है। इसके बाद मामला कोर्ट में चला गया। 17 मार्च 2017 को हाईकोर्ट के न्यायाधीश संजय अग्रवाल की बेंच ने बेटी को पेंशन का हक़दार ठहराते हुए उनके विवाह होने की तारीख तक पेंशन और एरियर्स भुगतान करने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता को 8 प्रतिशत ब्याज के हिसाब से राशि देने का भी आदेश हुआ था। फिर शासन की ओर से डबल बेंच में अपील हुई। डबल बेंच के चीफ जस्टिस ने भी सिंगल बेंच के आदेश को यथावत् रखने का फैसला दिया। इसके बाद शासन ने सन् 2018 में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अपील की। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने राज्य शासन की याचिका खारिज़ कर दी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी सेनानी की बेटी को पेंशन नहीं दिए जाने का मामला मीडिया में जमकर उठा। तब सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव डी.डी. सिंह ने मीडिया से कहा था कि धनेश्वरी की सम्मान निधि मंज़ूर कर ली गई है। कलेक्टर के माध्यम से उन्हें सम्मान निधि का भुगतान होगा। अब उन्हें और नहीं भटकना पड़ेगा। सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव के इस कथन को सामने आए काफ़ी दिन बीत चुके। शासन एवं प्रशासन अब तक पेंशन के इस प्रकरण पर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाया है।

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