●कारवां (22 जनवरी 2023)- भाजपा के दिग्गज मान रहे आसान नहीं छत्तीसगढ़

■ अनिरुद्ध दुबे

एक तरफ दिल्ली में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी तो वहीं अम्बिकापुर में भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक में 2023 को होने जा रहे चुनाव को लेकर चिंतन मनन चल रहा था। अंदर से छनकर आई ख़बर यही है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में छत्तीसगढ़ को लेकर बड़े नेताओं की चिंता झलकी। राष्ट्रीय नेता मानकर चल रहे हैं राजस्थान एवं मध्यप्रदेश से ज्यादा बड़ी चुनौती छत्तीसगढ़ है। छत्तीसगढ़ में सरकार बनने का रास्ता आदिवासी एवं किसान वोटरों के बीच से खुलता है और कांग्रेस ने दोनों ही तरफ अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही छत्तीसगढ़ के कुछ पुराने बड़े भाजपा नेताओं से कह चुके हैं कि “चुनाव के लिए पूरी तरह अपने आप को झोंक दें। यह सोचकर न बैठें रहें कि मोदी जी आएंगे तो सब ठीक हो जाएगा। चमत्कार की गुंजाइश हर बार नहीं रहती।“ वहीं अम्बिकापुर में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन भाजपा प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, क्षेत्रिय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, विधानसभा नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, सरोज पांडे, बृजमोहन अग्रवाल एवं सुनील सोनी जैसे बड़े चेहरे गैर मौजूद रहे। बताते हैं बैठक के पहले दिन जिस तरह का उत्साह झलकना चाहिए था वह नहीं झलका। यह बात ज़रूर बार-बार दोहराई जाती रही कि भूपेश सरकार की नाकामियों को लेकर इस बार के चुनाव में जनता के बीच जाना है। बहरहाल अभी की स्थिति में कोई बड़ी नाकामी तो हाथ लगती नज़र नहीं आ रही। विपक्ष के नेता बार-बार कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र के वादे पूरे नहीं होने की बात ज़रूर दोहराते नज़र आ रहे हैं।

शराब बंदी के लिए बनी

समिति गुजरात दौरे पर

भले ही कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में पूर्ण शराब बंदी का वादा रहा हो लेकिन इसे अमल में लाना इतना आसान नहीं है। शराब बंदी हो या न हो इसके लिए बनाई गई समिति गुजरात पहुंच चुकी है। इसके बाद बिहार दौरे का नंबर लगेगा। उल्लेखनीय है कि गुजरात एवं बिहार में पूर्ण शराब बंदी है। फिर भी कानून से लुकते-छिपते अपराधी किस्म के लोग इन राज्यों में अवैध शराब के धंधे में लगे रहते हैं। गुजरात में नकली शराब के पीने से लोगों के मरने की ख़बर सामने आती रही है। कहना यही होगा कि आप शराब के धंधे पर पूरी तरह रोक क्यों न लगा दें, पीने वाले कहीं न कहीं से जुगाड़ जमा ही लेंगे। फिर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, ओड़िशा, झारखंड, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना जैसे राज्यों की सीमाएं छत्तीसगढ़ से आकर मिलती हैं। इनमें से किसी भी राज्य में शराब बंदी नहीं है। यदि पूर्ण शराब बंदी कर भी दी जाए शराब लाने वालों को कहां-कहां पर जाकर रोका जा सकेगा।

आरक्षण पर अभी

और इंतज़ार…

बीते कुछ दिनों में नज़र दौड़ाएं तो छत्तीसगढ़ में आरक्षण एवं धर्मांतरण दोनों को लेकर मचा शोर कुछ कम हुआ है। अभी धान-किसान और भारत-न्यूज़ीलैंड अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच की चर्चा ज़्यादा होते दिख रही है। साथ ही चर्चा में बागेश्वर धाम वाले धीरेन्द्र शास्त्री हैं। अंध श्रद्धा निर्मूलन की चुनौतियों को झेल रहे धीरेन्द्र शास्त्री ने छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण होने का आरोप लगाया है, जिस पर आबकारी मंत्री कवासी लखमा का ज़वाब सामने आया है। वहीं सर्व आदिवासी समाज आरक्षण लागू करने की मांग को लेकर एक बार फिर राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके से मिला है। राज्यपाल ने सर्व आदिवासी समाज के सामने वही पुरानी बात दोहराई कि पहले आरक्षण से जुड़े सारे दस्तावेज सामने आ जाने के बाद उसका अध्ययन करेंगी। उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचेंगी। राज्यपाल ने यह भी कहा कि उन्हें क्वांटिफाइबल डाटा आयोग की रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई गई है। उसे देखना ज़रूरी है।

नये रायपुर में दौड़ा

विकास का इंजन

एक बड़ी ख़बर यह सामने आई है कि नया रायपुर में ज्यादा से ज़्यादा व्यावसायिक गतिविधियों के लिए एक साथ 500 एकड़ ज़मीन का लैंड यूज़ चेंज किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स के प्रदेश स्तरीय सम्मेलन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नया रायपुर में होल सेल कॉरिडोर के लिए 1000 एकड़ ज़मीन उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। घोषणा के बाद प्रथम चरण में 500 एकड़ ज़मीन के लैंड यूज़ चेंज हेतु पहल भी शुरु हो गई है। केंद्री, उपरवारा, निमोरा एवं झांकी में व्यावसायिक प्रयोजन हेतु ज़मीन देख ली गई है। दूसरी बड़ी ख़बर यह सामने आई है कि मंदिर हसौद से नया रायपुर के बीच क़रीब 20 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने का काम पूरा हो गया है। मंदिर हसौद से उद्योग नगर, सीबीटी, मुक्तांगन एवं केन्द्री तक रेल इंजन चलाकर ट्रायल भी ले लिया गया है। हो सकता है कि दिसंबर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले मंदिर हसौद से केन्द्री तक ट्रेन दौड़ने भी लगे। व्यापार जगत से जुड़े अधिकांश वोटर भाजपा के माने जाते हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल किसान एवं आदिवासी वोटरों को काफ़ी हद तक साधे हुए हैं। नया रायपुर में होल सेल कॉरीडोर के लिए हज़ार एकड़ ज़मीन देने की जो घोषणा हुई उसे व्यापारी वर्ग को साधने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

बहादुर कलारिन के नाम

पर राज्य अलंकरण

छत्तीसगढ़ राज्य व्दारा बहादुर कलारिन के नाम पर राज्य अलंकरण की घोषणा की गई है। अच्छी पहल है। बहादुर कलारिन की कहानी के बारे में छत्तीसगढ़ के कम ही लोग जानते रहे थे। अब उनके नाम से राज्य अलंकरण की घोषणा होने से कम से कम नहीं जानने वालों के मन में जिज्ञासा तो पैदा होगी कि आख़िर यह सम्मानित किरदार बहादुर कलारिन कौन है? सुनने में यही आता है कि बालोद जिले से 26 किलो मीटर दूर चिरचारी और सोरर गांव की सरहद में बहादुर कलारिन का स्मारक है। बहादुर कलारिन की दास्तान को सुप्रसिद्ध नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर ने अपने नाटक ‘बहादुर कलारिन’ में बख़ूबी उतारा था। मंच पर बहादुर कलारिन की भूमिका अदा किया करती थीं फीता बाई, जिन्हें फिदा बाई भी कहा जाता था। फिदा बाई की आवाज़ इतनी बुलंद थी की माइक न रहे तो भी उनके व्दारा कहे गए संवाद को दूर बैठा दर्शक आसानी से सुन लेता था। ‘बहादुर कलारिन’ नाटक का ख़ासकर वह दृश्य जिसमें अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाली बहादुर कलारिन दिशा से भटके हुए पुत्र छछांद को न सिर्फ कुंए में धकेल देती है बल्कि भारी भरकम पत्थर पटककर उसे मार भी देती है, हिलाकर रख देता था।

चलो महापौर ने आवारा

कुत्तों की चिंता तो की

रायपुर नगर निगम की मेयर इन कौंसिल की बैठक में निर्णय लिया गया कि आवारा कुत्तों के पुर्नवास के लिए डॉग पुर्नवास केन्द्र बनाया जाएगा। अच्छा है महापौर एजाज़ ढेबर ने आवारा कुत्तों की चिंता तो की। रायपुर में आवारा कुत्तों को लेकर नगर निगम की चिंता कोई आज नहीं बल्कि 2003 से सामने आती रही है। तब तरुण चटर्जी के महापौर कार्यकाल में आवारा कुत्तों की नसबंदी का प्रस्ताव पारित किया गया था। बीच-बीच में यह ख़बर सामने आते रहती है कि नगर निगम व्दारा आवारा कुत्तों की नसबंदी करवाई जा रही है, लेकिन यहां तो उनकी संख्या कम होने के बजाय बढ़ती ही नज़र आती रही है। इस बार अच्छा निर्णय यह हुआ है कि डॉग पुर्नवास केन्द्र में बूढ़े, बीमार और अपाहिज कुत्तों की देखभाल की जाएगी। देखा जाए तो यह पुण्य का काम है। राजधानी रायपुर में पूर्व में एक महिला कांशीराम नगर में अपने संसाधन जुटाकर यह काम करती रही थीं। जहां अवारा कुत्तों के साथ बूढ़ी बीमार गायों की भी देखभाल होती थी। कुछ लोगों की शिकायत पर प्रशासन ने इस प्राइवेट पुर्नवास केन्द्र को हटा दिया। बताते हैं अब यह भाटागांव के आगे कहीं पर चल रहा है। शारीरिक रूप से अशक्त कुत्तों की देखभाल नगर निगम करे या आम इंसान, पहल तो अच्छी ही मानी जाएगी।

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