● कारवां (13 अगस्त 2023)- अजा वोटों को साधने खड़गे जांजगीर में

■ अनिरुद्ध दुबे

अनुसूचित जाति वर्ग के वोटों को साधने 13 अगस्त को जांजगीर चाम्पा में कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जनुन खड़गे की सभा रखी गई है। जांजगीर चाम्पा जिले में अनुसूचित जाति वर्ग के वोटों की बहुतायत है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति वर्ग की दस आरक्षित सीटों में से वर्तमान में कांग्रेस के 7, भाजपा के 2 एवं बहुजन समाज पार्टी के 1 विधायक हैं। अनुसूचित जाति वर्ग के बीच कांग्रेस ने अपनी ज़मीन जो मजबूत की है उसे किसी भी सूरत में कमजोर नहीं होने देना चाह रही है। अभी तक की स्थिति में कांग्रेस हो या भाजपा दोनों तरफ पिछड़ा (ओबीसी) एवं आदिवासी वर्ग (एसटी) की बात होती चली आ रही थी। अब जब कि चुनाव को क़रीब 3 महीने बचे हैं कांग्रेस ने भरोसे का सम्मेलन के लिए जांजगीर चाम्पा को चुनकर एक बड़ा दांव खेला है। यह भी उल्लेखनीय है कि जांजगीर चाम्पा में बहुजन समाज पार्टी का भी गहरा प्रभाव है। यही कारण है कि बसपा ने बिना कोई अवसर गंवाए अपने अनुसूचित जाति प्रभाव वाले 9 विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है।

अरविंद नेताम फिर

कांग्रेस से दूर

वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने एक बार फिर कांग्रेस छोड़ दी। अब वे पूरी तरह सर्व आदिवासी समाज के साथ हैं। सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले वे क़रीब 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं। बस्तर का सबसे पुराना आदिवासी नेता कौन है, अगर ये कोई जानना चाहे तो नेताम जी का नाम ही सामने आएगा। वे श्रीमती इंदिरा गांधी के शासनकाल में केन्द्रीय मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त कर चुके थे। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे कांग्रेस से उनका मोह भंग हो गया था और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो कांशीराम के कहने पर बसपा ज्वाइन कर लिए थे। बसपा में कुछ समय रह लेने के बाद कांग्रेस में वापस लौटे। कांग्रेस के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में रहे। कुछ समय उन्होंने भाजपा में भी गुजारा।  2018 के विधानसभा चुनाव से पहले वे वापस कांग्रेस में आ गए थे। छत्तीसगढ़ में सरकार बन जाने के बाद नेताम जी की जिनसे पटरी बैठना था नहीं बैठ पाई। वे सर्व आदिवासी समाज से जुड़कर वहां आंदोलन का नेतृत्व करने लगे। कुछ हफ्ते पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बस्तर दौरे पर थे तो उन्होंने नेताम जी के क्रियाकलापों की खुले तौर पर आलोचना की थी। अस्सी साल से ऊपर के नेताम जी एक बार फिर कांग्रेस छोड़ चुके हैं। भूपेश बघेल ने एक बार फिर आरोप लगाया है कि “नेताम जी का वास्ता भाजपा से जुड़े लोगों से है।“ जीत-हार अलग बात है लेकिन यह तय है कि सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी चुनावी समीकरण को प्रभावित करेंगे। सर्व आदिवासी समाज के कारण वोटों का ज़्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा या भाजपा को आने वाले समय में ही पता चलेगा।

सोशल मीडिया

बड़ा हथियार

चुनावी तैयारी के बीच भाजपा सोशल मीडिया को सबसे बड़ा हथियार मानकर चल रही है। भाजपा राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी ओम माथुर पार्टी की एक बैठक में पहले की कह चुके हैं कि जन-जन तक आसानी से पहुंचने का सबसे आसान साधन सोशल मीडिया है। इस बार नहीं चुकना है। बताते हैं सोशल मीडिया को हैंडल करने दिल्ली से एक टीम छत्तीसगढ़ आई हुई है। पोल-खोल की तर्ज पर यह टीम गांव-गांव, शहर-शहर सत्ता पक्ष की तथाकथित नाकामियों के वीडियो बनवा रही है। इन वीडियो को फ़ेस बुक व सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों में चलवाया जा रहा है।

टूट गया जोगी कांग्रेस,

बसपा व भाकपा

का गठबंधन

2018 के विधानसभा चुनाव में जोगी कांग्रेस (जनता कांग्रेस), बहुजन समाज पार्टी एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठबंधन था। उस चुनाव में जोगी कांग्रेस के 5 एवं बसपा के 2 प्रत्याशी जीतने में कामयाब रहे थे जबकि बस्तर से भाकपा की टिकट पर कोंटा से उतरे पूर्व विधायक मनीष कुंजाम को कांग्रेस के कवासी लखमा से पराजय मिली थी। इस साल जो चुनाव होने जा रहा है उसमें तस्वीर यही सामने है कि गठबंधन स्वमेव समाप्त हो गया है। बसपा ने जहां अभी से अपने 9 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है वहीं जोगी कांग्रेस की ओर से मरवाही एवं कोटा में प्रत्याशी उतारे जाने के संकेत मिल रहे हैं।

कांग्रेस में इशारा

मिलना शुरु

चर्चा यही है कि कांग्रेस में कुछ लोगों को इशारा मिलना शुरु हो गया है कि विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी रखें। पिछड़ा वर्ग की एक वरिष्ठ नेत्री को एक विधानसभा क्षेत्र में पूरी ताकत के साथ सक्रिय रहने कह दिया गया है। आशय यही है कि उनकी टिकट पक्की हो सकती है। इसी तरह राजधानी में रायपुर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में संकल्प शिविर की शुरुआत हुई एक दिग्गज नेता ने मंच से कहा कि पिछले बार से ज़्यादा मतों से इस बार विकास को जिताकर लाना है। रायपुर की बाकी 3 विधानसभा सीटों को लेकर कांग्रेस ने अभी तक तो पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन पश्चिम सीट को लेकर इशारा तो कर ही दिया है।

तो क्या मूणत फिर

पश्चिम का चेहरा होंगे

रायपुर पश्चिम सीट के साथ दिलचस्प संयोग है। जहां कांग्रेस से एक बार फिर सिटिंग एमएलए विकास उपाध्याय का लड़ना तय माना जा रहा है वहीं भाजपा के दूरदर्शी लोग मानकर चल रहे हैं यहां से पार्टी तो राजेश मूणत को ही उतारेगी। पिछले चुनाव में पश्चिम सीट में विकास उपाध्याय ने राजेश मूणत को ही हराया था। भाजपा ही नहीं कांग्रेस पार्टी के भी कई लोग मानते हैं कि भाजपा शासनकाल में मंत्री रहते हुए में मूणत ने पश्चिम विधानसभा में जो विकास कार्य कराए वह ऐतिहासिक है। खरी-खरी कहने की जो आदत है वह कहीं न कहीं उनको नुकसान कर गई। यदि एक बार फिर विकास व मूणत आमने-सामने होते हैं तो वाकई मुक़ाबला दिलचस्प होगा।

कटारिया के कारण बदली

रायपुर स्टेशन की ऊपरी शक्ल

केन्द्र सरकार की ओर से घोषणा हो चुकी है कि रायपुर रेल्वे स्टेशन में एयरपोर्ट की तरह सुविधाएं होंगी। रायपुर स्टेशन का प्रवेश व्दार किसी एयरपोर्ट के प्रवेश व्दार से कम नहीं होगा। प्रवेश व्दार की जब बात चल ही रही है तो पुराने उस घटनाक्रम का स्मरण हो आता है जिसका संबंध रायपुर स्टेशन के प्रवेश व्दार से ही है। जब कभी राजधानी रायपुर के माता कौशल्या विहार (कमल विहार) की चर्चा होती है आईएएस अफसर अमित कटारिया का जिक्र हो आता है। कमल विहार प्रोजेक्ट में इतनी पेचिदगियां थीं कि उसे शुरु करवाना किसी पहाड़ को लांघने से कम नहीं था। रायपुर विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पद पर रहते हुए अमित कटारिया ने उस बमुश्किल कार्य को अंजाम दिया था। इससे अलग कटारिया ने रायपुर नगर निगम कमिश्नर रहते हुए एक और बड़ा ऐतिहासिक काम कर दिखाया था जिसकी चर्चा कमल विहार की तुलना में कम ही होती है। वह बमुश्किल काम था रायपुर रेल्वे स्टेशन के ठीक सामने सड़क से लगकर बरसों से स्थापित दुकानों को हटवाना। इन दुकानों को हटाने में कानूनी बाधाएं तो थी हीं साथ ही दुकानदारों के कंधों पर कुछ दिग्गज नेताओं का हाथ भी था। यही कारण है कि इस जगह को नगर निगम के आला अफ़सर छूने से भी घबराते थे। दुकानों को हटाने की ज़रूरत इसलिए महसूस की जाती रही थी क्योंकि इनकी आड़ हो जाने के कारण रायपुर रेल्वे स्टेशन मुख्य सड़क से नज़र ही नहीं आता था। यहां तक कि स्टेशन के प्रवेश व्दार की तरफ जाने वाला रास्ता भी संकरा था। कटारिया के प्रयासों का ही नतीजा रहा कि आज रायपुर स्टेशन के इस छोर से लेकर उस छोर तक को मुख्य सड़क से साफ देखा जा सकता है। साथ ही स्टेशन के प्रवेश व्दार पर लगी घड़ी पर काफ़ी दूर खड़े रहकर भी नज़रें दौड़ाई जा सकती हैं।

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