■ अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ में फिल्मों की आड़ में ठगी की बात कभी-कभार सुनने मिल जाया करती है। वैसे फ़िल्मों में मौका देने के नाम पर युवक-युवतियों से ठगी करने का इतिहास काफ़ी पुराना रहा है। बरसों पहले रायपुर, भिलाई एवं दुर्ग जैसे स्थानों पर फिल्मों के नाम पर ठगी का धंधा शुरु हो चुका था। कुछ पुरानी दास्तानों को कुरेदना ज़रूरी लगा।
पहली छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘कहि देबे संदेस’ के प्रदर्शन के बाद ही रायपुर व दुर्ग जैसे स्थानों पर फर्ज़ी फ़िल्म निर्माण कंपनियां सक्रिय हो गईं थीं। 10 जुलाई 1965 को रायपुर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र में जो ख़बर प्रकाशित हुई थी वह इस बात का प्रमाण है। ‘फ़िल्म निर्माण के नाम पर जनता की लूट’ हेडिंग से प्रकाशित खबर में विवरण दिया गया था कि “भिलाई, दुर्ग व रायपुर में फ़िल्म निर्माण का नारा लेकर कुछ ऐसे गैंग व तथाकथित बोगस फ़िल्म कंपनियां सक्रिय हैं जिनका मूल उद्देश्य लोगों को एक सुनहरा ख़्वाब दिखाकर किसी प्रकार उनकी गाढ़ी कमाई लूटना है। यह भी पता चला है कि अनेक लोगों ने इस झांसे में अपना घर बार व संपत्ति भी बेच डाली है। इन तथाकथित कंपनियों के संयोजकों या गैंग लीडरों की माली हालत बिलकुल इस योग्य नहीं है कि वे फ़िल्म निर्माण के सपने भी देख सकें। इनमें से कुछ तो मात्र 100-150 रुपये के क्लर्क हैं या कुछ ऐसे हैं जिनकी आमदनी का कोई निश्चित जरिया नहीं। संभवतः इसी लिहाज़ से आमदनी का यह एक जरिया इन लोगों व्दारा तैयार किया गया है। दुर्ग की एक तथाकथित फ़िल्म निर्माण संस्था के संचालक व संयोजक के संबंध में पता चला है कि उनमें से एक जेल यात्री है तथा दूसरा नकली पासपोर्ट के अवैध प्रकरण से संबंधित रह चुके हैं। यह भी पता चला है इनमें से कुछ लोगों ने बंबई के कुछ अभिनेता-अभिनेत्रियों का नाम अपने साथ जोड़ रखा है, ताकि उनकी तरफ अधिक से अधिक लोग आकृष्ट हों। एक संस्था ने एक प्रख्यात संगीतकार का नाम अपने साथ जोड़ रखा है। वास्तविकता यह है कि यहां के लोगों का मुम्बई के अभिनेता-अभिनेत्रियों या संगीतकारों से किसी प्रकार का कोई अनुबंध नहीं है।“ समाचार में आगे यह लिखा था कि “भिलाई में हुई बलात्कार की एक घटना कान खड़े कर देने वाली है। एक बोगस फ़िल्म निर्माण संस्था के तीन व्यक्तियों ने हीरोइन के रोल का लालच देते हुए इंटरव्यू के लिए भिलाई बुलवाया और उसके साथ बलात्कार किया।“
इसी तरह 28 जुलाई 1967 को ‘रायपुर न्यूज़’ समाचार पत्र में एक सनसनी फैला देने वाली ख़बर छपी थी, जिसका शीर्षक था- “छत्तीसगढ़ में अचानक बोगस चित्र निर्माताओं की भीड़ कहां से आ गई है।“ ख़बर में कुछ इस तरह लिखा था कि “पिछले कुछ दिनों से नगर में अचानक फ़िल्म निर्माताओं की बाढ़ आ गई है और वे भिन्न भिन्न चित्रों की घोषणा कर छत्तीसगढ़ के युवक व युवतियों को आकर्षित कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। वास्तविकता यह है कि इनमें से किसी के पास भी इतना पैसा नहीं है कि वे एक रील भी चित्रित कर सकें। जब से छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘कहि देबे संदेस’ प्रदर्शित हुई है तब से इस क्षेत्र में भी सिनेमा के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ गया। इसी बीच कई व्यक्तियों व्दारा चित्र निर्माण की घोषणाएं की गईं। यदा कदा अखबारों में समाचार छपते रहे। कई युवक युवतियों के इंटरव्यू इन बोगस निर्माताओं व्दारा लिए गए। उदाहरण के तौर पर एक छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘का करूं भइया पड़ गया दुकाल’ का नाम खूब उछाला गया। किसी बड़े अभिनेता एवं संगीत निर्देशक से अनुबंध के बोगस समाचार भी प्रकाशित होते रहे। एक तथाकथित निर्माता कुछ लोगों को उल्लू बनाकर गोल हो गया।“
1967 में ही एक और अखबार में कुछ इस तरह एक खबर प्रकाशित हुई थी- “पिछले साल दो साल में छत्तीसगढ़ में आधा दर्जन से अधिक फिल्म निर्माण के संबंध में घोषणाएं हो चुकी हैं। छत्तीसगढ़ में फिल्म निर्माण की दिशा में मनु नायक ने पहल की और येन केन प्रकारेण उन्होंने ‘कहि देबे संदेस’ नामक फ़िल्म जनता के समक्ष प्रस्तुत करने में सफलता प्राप्त की। किन्तु इसके पश्चात् फ़िल्म निर्माण की दिशा में आए दिन घोषणाएं होने लगीं। नये चेहरों की मांग ऐसे होने लगी जैसे सचमुच उनके अभाव में फ़िल्म का निर्माण रुका पड़ा है। कुछ नवजवान सैकड़ों रुपये अपने मॉ बाप की जेब काटकर इन बोगस घोषणाओं के प्रभाव में आकर कथित निर्माताओं के चक्कर काटने लगे। साल छह माह गुजर जाने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि वे समय और धन व्यर्थ बरबाद कर रहे हैं।छत्तीसगढ़ में अभी तक निम्नलिखित फिल्मों के निर्माण की घोषणाएं हो चुकी हैं- 1. रात, हुस्न और बगावत, 2. बार दे गोरी दिया ला, 3. सुआ-मैना, 4. बैला-चरवाहा, 5. का कहौं भैया परगे दुकाल, 6. भाभी की शादी, 7. पठौनी, 8. घर व्दार।“ खबर में आगे लिखा था- “अंतिम तीन फिल्में प्रगति पर हैं और उनके निर्माता कुछ ना कुछ आगे सरक रहे हैं। किन्तु अन्य फिल्मों की घोषणा करने वाले अभी फाइनेंसर ढूंढ़ रहे हैं।“
भंजदेव पर फ़िल्म
महज़ घोषणा रही
सन् 2002 की बात है। रायपुर से मुम्बई का बार-बार चक्कर लगाने वाले एक युवक ने बस्तर नरेश प्रवीर चंद भंजदेव पर फ़िल्म बनाने की घोषणा की थी। यह खबर फैलाई गई थी कि बॉलीवुड अभिनेता शाहबाज खान भंजदेव की भूमिका निभाएंगे। राष्ट्रीय स्तर की एक पत्रिका के पूरे एक पेज में इस फ़िल्म के निर्माण से संबंधित योजना पर खबर प्रकाशित हुई थी। सूत्रों के मुताबिक भंजदेव पर फ़िल्म बनना तो दूर उस प्रोजेक्ट पर किसी तरह का काम तक शुरु नहीं हुआ था।
(‘कहि देबे संदेस’ के निर्माता-निर्देशक मनु नायक से बातचीत तथा उनके व्दारा संकलित अख़बार की पुरानी कतरनों के अध्ययन के आधार पर)