■ अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ में इन दिनों एक जुमला चल पड़ा है कि भाजपा में जहां असमंजस का दौर है तो कांग्रेस में अभी कन्फ़्यूज़न वाली स्थिति है। राजधानी रायपुर के राजीव भवन में इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं पूर्व मंत्री टी.एस. सिंहदेव चर्चा का केन्द्र बिन्दु बने हुए हैं। यह कहने वालों की कमी नहीं कि कांग्रेस आलाकमान बघेल जी को राष्ट्रीय महासचिव बनाने पर विचार कर रहा है। इसलिए कि दाऊ जी ओबीसी में बड़ा चेहरा जो हैं। यदि कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव के.सी. वेणुगोपाल से कह दिया गया कि जाकर केरल संभालें तो फिर दाऊ जी से कहा जा सकता है कि इस समय आपकी ज़रूरत दिल्ली में है। अब बात बाबा की। कहने वाले बाबा के बारे में यही कहते नज़र आ रहे हैं कि सरगुजा नरेश दिल्ली जाकर कांग्रेस आलाकामान से कह चुके हैं कि यदि छत्तीसगढ़ का नेतृत्व मुझे सौंपा जाए तो ज़िम्मेदारी संभालने सहर्ष तैयार हूं। दूसरी तरफ शुक्रवार को जब छत्तीसगढ़ प्रभारी सचिन पायलट का रायपुर आगमन हुआ, हवा में यही बात तैरती नज़र आई कि दीपक बैज अभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने रहेंगे। रही बात महंत जी की तो वह ऐसी किताब हैं जिन्हें पढ़ पाना हर किसी के बूते कि बात नहीं।
विरोध न करने
की भी कीमत
राजनांदगांव से पिछले दिनों ख़बर चलकर आई कि वहां के एक कांग्रेस पार्षद जो कि मेयर इन कौंसिल के सदस्य भी हैं ने एक महिला नेत्री को यह झूठा वादा कर 30 लाख का चुना लगाया कि तुम्हें विधायक की टिकट दिलवा दूंगा। पार्षद ने मांगे तो दो करोड़ थे लेकिन सौदा 30 लाख पर जाकर पक्का हुआ था। जब नेत्री की टिकट पक्की नहीं हुई तो वह कुछ महीने यह सोचकर शांत बैठी रही कि काम नहीं हुआ तो क्या, थोड़े समय बाद पैसा वापस आ ही जाएगा। लेकिन जो नेता दो करोड़ की बात कर सकता है, पैसे का महत्व भला उससे ज़्यादा कौन समझता होगा। उसने पैसा लौटाने का नाम ही नहीं लिया। मामला पुलिस में गया। टिकट के नाम पर पैसों के लेन-देन का खेल कोई आज से नहीं, ज़माने से होते आ रहा है। राजनीति में जो लोग गहराई से उतरे हुए हैं, वह समय-समय पर एक जीवट नेता को ज़रूर याद कर लेते हैं। जीवट नेता की हर टीका टिप्पणी का बड़ा असर होता था। जीवट नेता के पास कभी टिकट के कुछ तलबगारों ने इस मैसेज के साथ सुटकेस भिजवाया था कि टिकट के लिए हमारा नाम बढ़ाएं। यदि नाम न भी बढ़ाएं तो कम से कम विरोध न करें। जीवट नेता की तरफ से कोई टीका टिप्पणी नहीं होती या विरोध न होता तो टिकट का तलबगार मान लेता था कि आधी लड़ाई वह जीत चुका।
रायपुर दक्षिण से लड़ना
चाहता है नांदगांव का नेता
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व मंत्री व्दय ताम्रध्वज साहू व डॉ. शिव कुमार डहरिया तथा विधायक देवेन्द्र यादव ऐसे उदाहरण रहे जो दूसरे लोकसभा क्षेत्रों में जाकर चुनाव लड़े। बघेल राजनांदगांव, साहू महासमुन्द, डहरिया जांजगीर चाम्पा तथा यादव बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार थे। यह अलग बात है कि ये चारों ही नेता चुनाव हार गए। जब ऐसे 4 स्थापित नेता दूसरे क्षेत्रों में जाकर चुनाव लड़ें तो बाद की पंक्ति वाले नेता उनका अनुसरण करने की कोशिश तो करेंगे ही। राजनांदगांव क्षेत्र में थोड़ी बहुत पहचान रखने वाले एक कांग्रेस नेता के भीतर रायपुर दक्षिण में होने जा रहे विधानसभा उप चुनाव लड़ने की इच्छा शक्ति जाग गई है। राजधानी रायपुर के कॉफी हाउस में राजनीतिक बातों में मशगूल रहने वाले एक शख़्स ने बताया कि राजनांदगांव के उस नेता ने रायपुर आकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज से मुलाक़ात कर अनुरोध किया कि यदि मुझे रायपुर दक्षिण से लड़ने का मौका दें तो जीत के पूरे चांसेज़ हैं। गौर करने लायक बात यह भी है कि रायपुर आकर उस नेता ने जब टिकट को लेकर दावा किया तब राजनांदगांव के ही 3 और नेता उसकी सिफारिश करते खड़े नज़र आए। वो तीनों ही नेता 35 साल से ज़्यादा समय से कांग्रेस की राजनीति करते आ रहे हैं।
नया रायपुर में ‘मेमू’ से
ही नहीं चलने वाला काम
मुर्दा शहर नया रायपुर में हल्के-फुल्के तौर पर ही सही जान फूंकने के लिए कम से कम विचार होना तो शुरु हुआ। सुनने में यही आ रहा है कि पुराना रायपुर से अभनपुर तक मेमू ट्रेन चलेगी, जो कि नया रायपुर से होकर गुजरेगी। इसका किराया 10 से 20 रुपये के बीच होगा। यदि ऐसा होता है तो अच्छी बात है, लेकिन यह भी तो सोचने वाली बात है कि मेमू ट्रेन मुम्बई की लोकल या मेट्रो ट्रेन की तरह थोड़ी-थोड़ी देर में तो उपलब्ध होगी नहीं। यानी टाइम के बंधन में बंधे रहने वाली मेमू ट्रेन का इंतज़ार बहुत से लोगों को खलता नज़र आएगा। यह तो बात रही रेल परिवहन की, देखा जाए तो नया रायपुर की तरफ ज़्यादा ज़रूरत है सड़क परिवहन की। नया रायपुर के चक्कर लगाने का दर्द वह आम आदमी ही बयां कर सकता है, जिसका कितना ही समय आने-जाने तथा इस बिल्डिंग से उस बिल्डिंग में जाने में गुजर जाता है। पिछली कांग्रेस सरकार ने नया रायपुर को नया रंग देने काफ़ी कुछ सोच रखा था लेकिन उसे वह सब करने का मौका ही नहीं मिला। अब सब कुछ साय सरकार के हाथ में है। नया रायपुर में हरियाली से आच्छादित पेड़ पौधों की डंगालियां अक्सर सुनसान माहौल में सांय-सांय करती झूमती नज़र आती हैं। अब वहां सांय सांय सुविधाएं जुटाते हुए मनहूसियत को तोड़ने की ज़रूरत है।
‘मेट्रो’ बम का
ये कैसा शोर
बात नया रायपुर में मेमू ट्रेन चलाने की चल ही रही है तो पुराने रायपुर में देखे जा रहे लाइट मेट्रो ट्रेन के सपने की भी बात कर लें। रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर मास्को गए और वहीं से एक मिटिंग की कुछ तस्वीरें जारी की। वहां से ढेबर ने रायपुर तक ख़बर पहुंचाई कि मेरी मास्को के ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर से बात हो गई है। समझौते पर हस्ताक्षर भी हो गया है। ज़ल्द मास्को की टीम रायपुर आएगी और संभावनाएं तलाशेगी कि लाइट मेट्रो ट्रेन कहां से कहां तक चलाना है। लाइट मेट्रो ट्रेन का पटाखा फूटना था सो फूट गया। इस पटाखे का शोर शासन एवं प्रशासन में बैठे लोगों के कानों तक जा पहुंचा। अब शासन व प्रशासन तंत्र की डोर थामे रखने वालों का कुछ इस तरह का मनोभाव सामने आते दिख रहा है कि कोई उपलब्धि हासिल हुई हो तो पटाखे का फूटना ठीक है, किसी बड़े काम की शुरुआत होने जा रही हो तो तब भी फूटना ठीक है, लेकिन बिना दिवाली बेवज़ह पटाखे फोड़कर ध्वनि प्रदूषण फैलाना कहां से ठीक है!
‘कमल विहार’ और
विधायक जी का दर्द
‘कमल विहार’ यानी ‘कौशल्या विहार’ राजधानी रायपुर या उसके आसपास ही नहीं पूरे प्रदेश में अलग से पहचाना जाने लगा है। कोई हफ़्ता ऐसा नहीं जाता जब बड़े अख़बारों में ‘कमल विहार’ से जुड़ी किसी समस्या की कहानी न छपती हो। सप्ताह में दो या तीन बार तो समस्याओं के बोझ तले जी रहे ‘कमल विहार’ के लोगों की दर्द भरी दास्तान इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से सामने आ ही जाती है। रही बात सोशल मीडिया की तो कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब ‘कमल विहार’ का संकट उसमें न उभरता हो। देवानंद साहब की फ़िल्म ‘गाइड’ जिसे हिन्दी सिनेमा का मील का पत्थर कहा जाता है में एक गाना है “क्या से क्या हो गया…।“ यह लाइन ‘कमल विहार’ पर फिट बैठती नज़र आती है। क्या सोचकर ‘कमल विहार’ लाया गया था कि अपने आप में यह एक ख़ूबसूरत टाउनशिप बनेगा, लेकिन वहां के बड़े-बड़े गड्ढे, गटर के खुले हुए ढक्कन व्यवस्था की चुगली करते नज़र आ रहे हैं। ‘कमल विहार’ के ऐसे कई हिस्से हैं जो बारिश की झड़ी लगने पर पानी से लबालब हो जाते हैं। बिजली संकट का ज़िक्र किए बिना तो ‘कमल विहार’ की कहानी अधूरी ही रह जाएगी। लो वोल्टेज़ का प्राब्लम तो है ही, कभी-कभी कहीं कहीं पर ऐसा भी फाल्ट आ जाता है कि 12 से 15 घंटे बिजली गुल रहती है। ऐसे में पीड़ित नागरिक विधायक जी के पास न जाएं तो किसके पास जाएं। विधायक जी ठहरे जनता के प्रति पूरी तरह ज़वाबदेह और ईमानदार। विधायक जी ने ‘कमल विहार’ के निवासियों की दर्द भरी कहानी सीएम से लेकर चौधरी साहब तक के पास जाकर कह सुनाई। सीएम साहब के पास इसलिए कि उनके पास ऊर्जा विभाग है। चौधरी साहब के पास इसलिए कि उनके पास आवास एवं पर्यावरण विभाग है और कमल विहार का निर्माणकर्ता आरडीए (रायपुर विकास प्राधिकरण) आवास एवं पर्यावरण विभाग का हिस्सा है। थोड़ा समय लगा, विधायक जी की मेहनत रंग लाई। बिजली की समस्या के निराकरण की दिशा में कुछ बड़े कदम उठे। जब बिजली सुधार से संबंधित ख़बर मीडिया तक पहुंचाने की बारी आई तो संबंधित आला अफ़सर ने विधायक जी पर ‘दया’ नहीं दिखाई। ख़बरों में दो आला अफ़सर छाए रहे और ‘कमल विहार’ के लिए पसीना बहाने वाले विधायक जी का नाम निर्ममता से किनारे लगा दिया गया। जब कभी सामान्य चर्चा के दौरान ‘कमल विहार’ का ज़िक्र आए तो विधायक जी का दर्द छलक पड़ता है।