■ अनिरुद्ध दुबे
ये हसदेव अरण्य भी कठिन पहेली हो गया है। इसके पीछे का क्या सच है और क्या नहीं यह समझ पाना कोई आसान नहीं। पूर्व मंत्री एवं भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल हसदेव अरण्य पर मीडिया के सामने खुलकर बोले। उन्होंने कहा कि “राहुल गांधी स्वयं हसदेव अरण्य में वृक्षों की कटाई के पक्ष में नहीं हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इनके बड़े भाई राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं श्रीमती सोनिया गांधी हसदेव के काम को आगे बढ़ाने की ठान चुके हैं। इन्हें इस बात की ज़रा भी चिंता नहीं की हसदेव पर काम होने से पर्यावरण को कितना नुकसान होना है।“ दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव सरगुजा में परसा कोल ब्लॉक के मुद्दे को लेकर चल रहे आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे। वहां आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए सिंहदेव बड़ी बात कह गए कि “अगर मैं मुख्यमंत्री होता तो यह स्थिति सामने नहीं होती। जंगल के विनाश की कीमत पर कोयला नहीं निकाला जाना चाहिए।“ इसके अलावा सिंहदेव का यह बयान भी सामने आया कि “हसदेव अरण्य में पेड़ कटे तो पहली गोली खाने वाला शख़्स मैं रहूंगा।“ सिंहदेव के इस बयान के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बयान सामने आने में देर नहीं लगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि “सिंहदेव की इच्छा के विपरीत जाकर पेड़ तो क्या डंगाल भी नहीं कटेगी। गोली चलाने की नौबत नहीं आएगी। गोली चलाने वाले पर ही गोली चल जाएगी। दूसरी तरफ जनता कांग्रेस के नेता अमित जोगी कहते हैं- “हसदेव अरण्य के क़रीब 8 हजार पेड़ रातों रात कनाडा से आई मशीन से कटवा दिए गए। मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री के बीच की बयानबाजी नूरा कुश्ती से ज़्यादा और कुछ नहीं। जिस तरह हसदेव अरण्य का मामला गूंज रहा है उसे सामने पाकर छत्तीसगढ़ के बूढ़ा चुके कुछ नेताओं को 90 का दशक याद आ गया। तब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था। तब गरियाबंद में आने वाले मैनपुर गांव के पास हीरे का भंडार होने की ख़ूब चर्चा रही थी। उस समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार थी और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। तब मैनपुर में हीरा निकालने का ठेका दक्षिण अफ्रीका की कंपनी डी वियर्स को दिया जा रहा था। दिग्विजय सिंह इस कंपनी को ठेका देने के पक्ष में थे, वहीं उनके प्रतिव्दन्दी दिग्गज कांग्रेस नेता पंडित श्यामाचरण शुक्ल इस कंपनी को देने के ख़िलाफ थे। जब डी वियर्स के अधिकारी रायपुर के माना विमानतल पर उतरे थे तो उनका श्यामाचरण शुक्ल समर्थकों ने जमकर विरोध किया था। मैनपुर जाना तो दूर उन अफ़सरों को माना एयरपोर्ट से ही ख़ाली लौट जाना पड़ा था। उस दौर में बृजमोहन अग्रवाल विधायक बन चुके थे। तब कोई महीना ऐसा नहीं जाता था जब मैनपुर हीरे मामले को लेकर बृजमोहन अग्रवाल रायपुर में प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते रहे हों।
वीआईपी रोड में
जमकर फाइटिंग
राजधानी रायपुर की वीआईपी रोड का ज़िक्र कभी बड़ी शान के साथ हुआ करता था। एयरपोर्ट जाने वाली इस रोड पर कभी हरियाली ही हरियाली हुआ करती थी। धीरे-धीरे इस रोड पर बड़े-बड़े हॉटल, मैरिज पैलेस, रेस्टॉरेंट व कैफे खुलते चले गए। जो वीआईपी रोड कभी सुकून दिया करती थी, अब वहां लगातार वाहनों की आवाजाही चैन नहीं लेने देती। ऊपर से इस रोड पर बदनामी का दाग अलग लगते चले जा रहा है। हाल ही में एक हॉटल जहां नाच-गाने की व्यवस्था है, देर रात नशे की हालत में कुछ लड़के-लड़कियां निकले। किसी बात पर उन लोगों के बीच जमकर ढिशूम-ढिशूम हुई। लड़के और लड़कियां लात-जूते चलाते हुए और अश्लील गालियां बकते नज़र आए। इसका वीडियो जमकर वायरल हुआ। इसी वीआईपी रोड से लगकर नेताओं की कॉलोनी है जहां पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर कई विधायक रहते हैं। वहीं पर समाज के कुछ अन्य तथाकथित प्रतिष्ठित लोगों ने भी अपने बंगले बनवा रखे हैं। जिस वीआईपी रोड से शासन और प्रशासन का सीधा वास्ता हो और वहां एक-दो नहीं नशेड़ियों के कई अड्डे बन जाएं तो इसे दिया तले अंधेरा ही कहा जाएगा। कोरोना काल में जब कड़े लॉकडाउन के बीच अत्यावश्यक कार्यों को छोड़कर लोगों के घरों से निकलने पर पाबंदी थी और दूध से लेकर अन्य रोजमर्रा की वस्तुएं भी कुछ ही घंटों तक उपलब्ध हो पा रही थीं तब इसी वीआईपी रोड पर रात में नशेड़ियों का जमघट लगा होता था और उन्हें आसानी से दारू उपलब्ध हो जाया करती थी। उसी का नतीजा था क्वीन्स क्लब की घटना।
लड़की की आवाज़ में ठगी
रायपुर पुलिस ने चार ऐसे लोगों को पकड़ा है जो मोबाइल पर लड़कियों की आवाज़ निकालकर ठगी किया करते थे। इन्होंने नोएडा में कॉल सेंटर खोल रखा था। ये बीमा पॉलिसी के नाम पर ठगी किया करते थे। इन लोगों ने खमतराई रायपुर के किसान मनमोहन वर्मा से बीमा पॉलिसी की बोनस राशि दिलाने के नाम पर 49 लाख 34 हजार की ऑन लाइन ठगी की। चारों आरोपी उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद के निवासी हैं। ऐसा कोई हफ्ता नहीं जाता होगा जब छत्तीसगढ़ में ऑन लाइन ठगी का कोई बड़ा केस सामने नहीं आता हो। लड़कियों की आवाज़ के नाम पर ठगी ही नहीं हो रही बल्कि असल की लड़कियां भी ठग रही हैं। दूसरे प्रदेशों से कितने ही अंजान लोगों के वाट्स अप मैसेज या कॉल आते हैं। मैसेज या कॉल में मीठी-मीठी रोमांटिक बातें करने का प्रलोभन दिया जाता है। जब कोई झांसे में आ जाए तो वाट्स अप वीडियो कॉल में अश्लील दृश्य सामने आने लगते हैं। अश्लील दृश्य देखने वाले का स्क्रीन शॉट ले लिया जाता है। फिर उसे ब्लेक मेल किया जाता है कि इतने पैसे दे दो नहीं तो स्क्रीन शॉट वायरल कर दिया जाएगा। लोक लाज के डर से कितने ही लोग ऐसे ब्लेक मेलरों को पैसे भेज देते हैं। पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज कराने का साहस कुछ ही लोग कर पाते हैं। वाट्स अप के अलावा फ़ेस बुक व मैसेंजर से भी कितने ही लोग झांसे में आ जाते हैं और ठगी या ब्लेक मेलिंग का शिकार हो जाते हैं। छत्तीसगढ़ में इस पर लोगों को जागरूक करने की बहुत ज़रूरत है।
नये निगम कमिश्नर
और पार्षद पति
रायपुर नगर निगम में हाल ही में बड़ा बवाल खड़ा हो गया। नये निगम कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी को चार्ज लिए एकाध-दो दिन हुए थे। भाजपा पार्षद दल उनसे मिलने पहुंचा। उस दौरान एक पार्षद पति अपनी बात रख ही रहे थे कि निगम कमिश्नर की तरफ से सवाल हुआ कि पार्षद जी कहां हैं? मैं उन्हीं से बात करूंगा। इस घटनाक्रम के बाद से मानो सोशल मीडिया में युद्ध छिड़ गया। कोई सीनियर पार्षद आक्रामक अंदाज़ में वाट्स ग्रुप में अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहा है तो कोई पार्षद पति फ़ेस बुक पर आंदोलन की बात तक लिख दे रहा है। निगम में बरसों से काम कर रहे कुछ अफ़सरों का कहना है कि मयंक चतुर्वेदी नये ज़रूर हैं लेकिन सुलझे हुए हैं। ज़ल्द कोई न कोई समाधान निकल आएगा। अभी के कार्यकाल में कुछ ऐसे भी पार्षद हैं जो तीसरी या चौथी बार चुनकर आए हैं। स्वाभाविक है कि पूर्व के कार्यकालों में उनके अलग तरह के अनुभव रहे थे। शुरु के दौर में डिप्टी कलेक्टर रैंक के बी.के. परसाई, एम.डी. दीवान, जितेन्द्र शुक्ला एवं अशोक अग्रवाल जैसे अफ़सर निगम कमिश्नर रहे थे। ये अफ़सर आसानी से पार्षदों एवं पार्षद पतियों को उपलब्ध हो जाया करते थे। आईएएस रैंक के विवेक देवांगन, सोनमणि बोरा एवं डॉ. कमलप्रीत सिंह के समय तक भी सब कुछ ठीक-ठाक ही रहा था। धीरे-धीरे निगम की परंपराएं बदलने लगीं। बाद में अमित कटारिया, ओ.पी. चौधरी, सारांश मित्तर, तारण प्रकाश सिन्हा, राजेश सुकुमार टोप्पो, अवनीश शरण, रजत बंसल, शिव अनंत तायल, सौरभ कुमार एवं प्रभात मलिक जैसे आईएएस अफ़सर आए। इनमें से कुछ अफ़सर पार्षदों के लिए आसान रहे तो कुछ कठिन। जानकार लोगों का कहना है कि मयंक चतुर्वेदी की कार्यशैली वर्तमान कलेक्टर सौरभ कुमार की तरह फास्ट है। सौरभ कुमार की तरह मयंक चतुर्वेदी भी त्वरित निर्णय लेते हैं। वैसे देखा जाए तो राजधानी का यह नगर निगम अफ़सरों के लिए अपने आप में बड़ा ट्रेनिंग सेंटर है। यहां से जो भी अफ़सर निकलता है वृहद अनुभव लेकर निकलता है।