“जबां पे लागा नमक इश्क का…” आई लव गोवा

● यात्रा संस्मरण

अनिरुद्ध दुबे

वो कहते हैं न इंसान गलतियों का पुतला है। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस छुट्टी का दिन। सोचा भी नहीं था कि गोवा के सबसे ज़्यादा भीड़ भाड़ वाले हिस्से में इस दिन ठहरने की जगह को लेकर भयंकर मारामारी रहेगी। सिर्फ फ्लाइट की टिकट पहले से करा लिए और पहुंच गए 26 की रात को गोवा। वैसे तो गोवा में मोपा में बना नया एयरपोर्ट इसी महीने चालू हो चुका है लेकिन अब भी रायपुर से जाने वाली फ्लाइट पुराने ही सेना के डाबोलियम एयरपोर्ट पर उतरती है और रायपुर के लिए रवाना भी वहीं से होती है। एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर मैं और मेरे तीन दोस्त जब बागा के लिए रवाना हुए रास्ते में वाइन शॉप खुली नज़र आई। मेरा ड्रायव्हर से यही सवाल था कि क्या रिपब्लिक डे को यहां वाइन शॉप बंद नहीं रहती? उसने कहा साल में एक ही दिन बंद रहती है, 2 अक्टूबर, गांधी जयंती के दिन। रात का 10.30 बजे के आसपास का समय रहा होगा। जैसे-जैसे बागा क़रीब आते गया ट्रैफिक जाम की भयावह स्थिति के दर्शन होने लगे। जैसे-तैसे हम बागा की उस गली के क़रीब पहुंच गए जहां से चर्चित टीटोज़ क्लब का रास्ता शुरु होता है। अब स्टे करने रूम खोजने के लिए संघर्ष शुरु हुआ। चाहे छोटा गेस्ट हाउस हो या बड़ा रिसोर्ट, कहीं भी रूम खाली नहीं था। एक तरफ़ रूम खोजने को लेकर भारी मशक्कत तो दूसरी तरफ हॉलीडे होने के कारण सड़क पर ठीक वैसी ही भीड़ नज़र आ रही थी जैसा कि रायपुर शहर के व्यस्ततम इलाके मालवीय रोड एवं सदर बाज़ार में गणेश विसर्जन झांकी वाली रात आया करती है। ऊपर से उस रात हल्की सी गर्मी थी। रूम नहीं मिलने के तनाव के बीच गर्मी के कारण पसीना अलग छूट रहा था। गोवा में रूम व टैक्सी दिलाने के काम में लगे रहने वाले कुछ लोगों को कॉल भी किया लेकिन उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए। फिर तय हुआ कि बागा से दूर किसी आसपास जगह में आज की रात रह लेते हैं। कल सुबह आकर रूम के लिए संघर्ष कर लेंगे। टैक्सी लेकर निकल पड़े, लेकिन ये क्या, रास्ते में सुनसान इलाके में भी जो हॉटल या गेस्ट हाउस पड़ रहे थे वहां भी रूम खाली नहीं। लौट के बुद्धू घर को आए कि तरह वापस बागा लौटे और फिर संघर्ष शुरु हो गया। घंटे भर की मशक्कत के बाद रात क़रीब 2 बजे समुद्र तट की तरफ़ जाने वाले रास्ते पर एक रिसोर्ट में बड़ा सा रूम मिल गया जिसका रेट तकलीफ देने वाला था। मरता क्या न करता वाली स्थिति में वही जगह उस रात का ठिकाना बनी।

सुबह हो या शाम या फिर रात, बागा की मुख्य सड़क हो या फिर समुद्र तट, लड़के-लड़कियों का झुंड टहलते नज़र आ जाएगा। कितने ही नवविवाहित जोड़े नज़र आ जाएंगे। अलमस्त लड़के-लड़कियों तथा नवविवाहित जोड़ों को देखकर डायरेक्टर विशाल भारव्दाज की फ़िल्म ‘ओंकारा’ का गुलज़ार साहब का लिखा गीत याद आ जाता है- “जबां पे लागा… लागा रे… नमक इश्क का… नमक इश्क का…।“ फिर ये गीत क्यों याद ना आए, समुद्र का भी तो नमक से गहरा रिश्ता है। कितने ही भारतीय व विदेशी ‘आई लव गोवा’ वाली गोल नेक टी शर्ट पहनकर मस्ती में घूमते दिखे। किसी ने यह भी बताया कि “दिसंबर के आख़री एवं जनवरी के पहले हफ़्ते में यहां होटल और गेस्ट हाउस पांच से छह गुना तक महंगे हो जाते हैं। शनिवार या रविवार के पहले या बाद में कोई सरकारी छुट्टी पड़ जाए तब भी होटल एवं गेस्ट हाउस के रेट आसमान छूते नज़र आते हैं।“ यहां खाना-पीना गोवा की राजधानी पणजी से भी महंगा है। बागा में यदि आप शेविंग भी कराना चाहें तो सौ रुपये से नीचे बात नहीं होती। सड़क के किनारे कतार में लाइन से टैक्सी वाले खड़े दिख जाएंगे। सात-आठ किलोमीटर दूर भी जाना हो तो टैक्सी का रेट सुनकर आप सोच में पड़ जाएंगे यार क्या लूट है! कुछ ऐसे भी टैक्सी वाले मिल जाते हैं जो थोड़ी उदारता दिखाते हुए कम रेट पर आपको मंज़िल तक पहुंचा देते हैं।

27 की रात में भी 26 जैसी ही भीड़ थी। वैसे तो बागा का नाइट क्लब ‘टीटोज़’ काफ़ी फ़ेमस है लेकिन हमने ‘मैम्बो’ का विकल्प चुना। रात साढ़े दस के आसपास हम ‘मैम्बो’ एंट्री कर गए। तब गिने-चुने ही लोग वहां थे। जैसे-जैसे समय का कांटा आगे बढ़ता गया भीड़ भी बढ़ती गई। रात 12 के होते तक डांसिंग फ्लोर में पैर रखने की जगह नहीं थी। डीजे को जो युवक ऑपरेट कर रहा था उसकी प्रतिभा कमाल की थी। मानो ख़ास डांसिंग सॉन्ग उसने रात 12 के बाद के लिए बचाकर रखे थे। रात 12 के बाद स्टेज पर डीजे के दोनों तरफ नाचने के लिए अधो वस्त्र पहनीं दो विदेशी युवतियां अवतरित हुईं। उन्हें देखकर भीड़ मानो पगला सी गई। फ़िल्म ‘तेज़ाब’ के गाने “एक दो तीन चार…” के कुछ उस दृश्य की तरह जिसमें डांसर माधुरी दीक्षित को देखकर भीड़ चिल्ला उठती है “मोहिनी-मोहिनी।“ दोनों विदेशी युवतियों की अदाओं को देखकर मानो युवाओं का जोश और कई गुना ऊपर चला गया। ख़ूब लटके-झटके के साथ उछल-उछलकर नाचने लगे। डांस के मामले में लड़कियों का टैलेंट लड़कों को काफ़ी पीछे छोड़ दे रहा था। हम तो इस जगह से ज़ल्दी निकल गए, लेकिन लोगों से यही मालूम चला कि न सिर्फ़ ये डांस क्लब बल्कि पूरा बागा का बाज़ार सुबह चार बजे तक जगमगाता रहता है। यहां तक कि डिनर भी सुबह चार बजे तक पा सकते हैं।

28 की सुबह बागा की भीड़ भाड़ वाली उस एक मुख्य सड़क को नापने का मन हुआ। चहलकदमी का सिलसिला जारी ही था कि कहीं पर कदम थम से गए। एक छोटा सा चर्च दिखा जो बरसों पुराना लग रहा था। उसके ऊपर के एक हिस्से में दरार दिखी। प्रवेश व्दार के आधे हिस्से पर टिन लगाकर उसे बंद करके रखा गया है। आधे खुले हिस्से से अंदर क्रॉस को देखा जा सकता था। क्रॉस पर एक छोटी सी माला चढ़ी हुई थी जो कि मुरझाई हुई थी। उसे देखकर साफ लग रहा था कि काफ़ी दिनों पहले यह चढ़ाई गई होगी। आसपास के लोगों से पूछने पर पता चला कि यह किसी की प्राइवेट ज़मीन पर बना चर्च है। चर्च के पीछे कोई मकान होता था जो काफ़ी पहले ढह गया। साल दर साल सड़क के सामने वाले हिस्से पर डामर की परत चढ़ती चली गई। सड़क ऊपर हो गई चर्च नीचे हो गया। सड़क का चौड़ीकरण भी हुआ। भले ही यहां अब कोई न आए-जाए पर है तो धार्मिक स्थल, अतः चौड़ीकरण के समय उसे वैसे ही रहने दिया गया। अब बात करें इस चर्च के ठीक सामने बंद पड़े एक काफ़ी पुराने बंगले की। बंगले के बाहर नेम प्लेट पर एंजलो हाऊस जे.बी. डी-सूज़ा लिखा हुआ है। देखकर तो यही लगा कि यह उस समय का बंगला होगा जब बागा की आबादी नहीं के बराबर रही होगी और गोवा में पुर्तगालियों का शासनकाल रहा होगा। आख़िर बागा एवं कलंगुट की गिनती कभी गोवा के गांव के रूप में ही हुआ करती थी। वक़्त मेहरबां हुआ और उसने बागा एवं कलंगुट की तस्वीर पूरी तरह बदलकर रख दी। बहरहाल उस बंगले को देखकर यही कल्पना हुई कि कभी इसमें कितनी रौनक रहा करती रही होगी। शाम में जब बंगले के गलियारे में खाने-पीने की टेबल सजा करती रही होगी तो वो शाम भी कितनी हसीन हुआ करती रही होगी। आसपास के एक-दो लोगों से बातचीत करने पर यही पता चला कि इस बंगले के मालिक अब मुम्बई में रहते हैं तो किसी ने कहा कि यह प्रापर्टी बिकने को है। वाक़ई जिस बागा को मैं पसंद करता हूं कितना बदल चुका…

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