‘वैदेही’ की मेकिंग जबरदस्त… नई कहानी दिखेगी पर्दे पर- मनीष मानिकपुरी

अनिरुद्ध दुबे/ मिसाल न्यूज़

9 जून को भव्य तैयारियों के साथ रिलीज़ होने जा रही छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘वैदेही’ के प्रस्तुतकर्ता मनीष मानिकपुरी हैं। मनीष को लेकर फ़िल्म इंडस्ट्री में यही राय है कि उन्हें सिनेमा का सूक्ष्म ज्ञान है। और हो भी क्यों न, लंबे समय तक मुम्बई में रहते हुए वहां के सिनेमा एवं सीरियल संसार को उन्होंने नज़दीक से जो देखा है। पिछले वर्ष उनके निर्देशन में आई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘मारे डारे मया मा’ की सराहना हर किसी ने की थी। मनीष पूरे कॉन्फीडेंस के साथ कहते हैं कि “वैदेही की मेकिंग जबरदस्त है। कहानी में नयापन है। डायरेक्टर गंगा सागर पंडा ने फ़िल्म के हर फ्रेम पर ख़ूब मेहनत की है।“

‘मिसाल न्यूज़’ ने ‘वैदेही’ को लेकर मनीष मानिकपुरी से लंबी बातचीत की। मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं-

0 ‘वैदेही’, नाम से तो लगता है कि फ़िल्म महिला प्रधान है…

00 ‘वैदेही’ अपने आप में एकदम अलग कहानी है। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में अब तक लव स्टोरी का ट्रेंड चलता रहा है, जो कि आगे भी चलते रहना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही कुछ नयापन लाने की भी ज़रूरत है। ‘वैदेही’ हमारी यही कोशिश रही है। फ़िल्म में नारी की ताकत और उसकी महानता दोनों को दिखाया गया है। फ़िल्म प्रदर्शन की ओर है इसलिए कहानी पर अभी कुछ कहना उचित नहीं होगा।

0 फ़िल्म में हीरो नया चेहरा विशाल दुबे हैं। नये चेहरे पर दांव खेलने के पीछे वज़ह…

00 विशाल ने बेहतर परफार्म किया है। मुम्बई में रहते हुए उसने काफ़ी काम किया है। विशेषकर ड्रामा के क्षेत्र में। इसलिए बेसिक चीजें उसे पहले से मालूम थीं। उसका लुक अच्छा है। डॉस अच्छा करता है। एक्शन में भी कम नहीं। ‘वैदेही’ में वह ठेठ छत्तीसगढ़िया लगेगा। दर्शक महसूस करेंगे कि विशाल उनके आसपास का ही कोई करैक्टर है।

0 ‘वैदेही’ की भूमिका निभाने वालीं श्रद्धा पाणीग्राही के लिए भी तो छत्तीसगढ़ का मैदान नया है…

00 श्रद्धा ओड़िशा की जानी-मानी एक्ट्रेस है। गंगा सागर ने उसका जो करैक्टर लिखा वह कमाल का है। ‘वैदेही’ की दूसरी हीरोइन काजल की बात करें तो दर्शक उसे पूर्व में ‘दुल्हन पिया की’ फ़िल्म में देख चुके हैं। ‘वैदेही’ में नई काजल देखने मिलेगी। छत्तीसगढ़ में हमेशा से हीरोइनों का अकाल रहा है। यह अच्छी बात है कि काजल जैसी गुणी लड़कियां फ़िल्मों में आ रही हैं।

0 आप फ़िल्म को प्रज़ेन्ट तो किए लेकिन डायरेक्शन खुद न करते हुए यह काम गंगा सागर पंडा को सौंपने के पीछे कोई ख़ास कारण…

00 गंगा सागर बेहतरीन राइटर हैं। ‘वैदेही’ को लिखने में उन्होंने दो-तीन साल का लंबा समय लिया ताकि कहीं कोई कमी नहीं रह जाए। सागर जब पहली बार ‘वैदेही’ का सब्जेक्ट लेकर आए थे मैंने मना कर दिया था। उनका यही कहना रहा था कि मनीष जी जब आप जुड़ेंगे तभी इस प्रोजेक्ट के साथ न्याय हो पाएगा। ये मेरी खुशकिस्मती है कि सागर ने मुझ पर भरोसा किया। ‘वैदेही’ की कथा जब पहली बार मेरे सामने आई वह किसी किताब की तरह थी। उसे सिनेमाई टच देना था। सिनेमाई टच देने में हम दोनों को दो-तीन महीने का समय लगा। काफ़ी मेहनत के बाद बेहतरीन स्क्रीन प्ले तैयार हुआ।

0 चर्चा यही होती है कि मनीष मानिकपुरी ने अपना ग्रुप बना लिया है और वे अपने कुछ पसंदीदा कलाकारों के साथ ही काम करते ज़्यादा नज़र आ रहे हैं…

00 ये सच है कि मेरी फ़िल्म ‘मार डारे मया मा’ के महत्वपूर्ण कलाकार पुष्पेंद्र सिंह, पूरन किरी एवं अंजलि सिंह ‘वैदेही’ में भी नज़र आएंगे। यही नहीं ये कलाकार मेरी निर्माणाधीन फ़िल्म ‘गुइंया’ में भी नज़र आएंगे। ये सभी कलाकार अपने काम के प्रति बेहद समर्पित नज़र आते हैं। जब आपकी टीम बन जाती है तो गहरे तालमेल के साथ काम होता है। चीजें ज़ल्दी समझ आती हैं और काम में भी गति रहती है।

0 आपके व्दारा निर्देशित पिछली फ़िल्म ‘मार डारे मया मा’ के गानों को काफ़ी तारीफ़ मिली थी। ‘वैदेही’ के संगीत को लेकर क्या कहेंगे…

00 ‘मार डारे मया मा’ और ‘वैदेही’ के गाने में अंतर है। ‘मार डारे मया मा’ में ग्रामीण पृष्ठभूमि को ज़्यादा दिखाया गया था जबकि ‘वैदेही’ में आपको शहर ज़्यादा देखने मिलेगा। ‘वैदेही’ के गाने में ख़ास तरह का शहरी टच है। ‘वैदेही’ के संगीत पर मोनिका वर्मा, तोषांत कुमार, परवेज़ खान एवं सोमदत्त पांडा जैसे संगीतकारों ने काफ़ी मेहनत की है। मोनिका व तोषांत का जोनर रोमांटिक गीतों वाला है। हाई बीट के गानों में परवेज़ का ज़वाब नहीं। वहीं मॉर्डन टच वाले गानों में सोमदत्त की मास्टरी है। संजय मैथिल, नवलदास मानिकपुरी जी, मनमोहन सफ़र एवं मोनिका वर्मा ने शानदार गीत लिखे हैं।

0 मनीष मानिकपुरी अपनी तरफ से क्या मैसेज देना चाहेंगे…

00 छत्तीसगढ़ में मसाला फ़िल्में तो बनें, साथ ही इंटलेक्चुअल्स फ़िल्में भी बनें। यह अच्छा है कि इस दिशा में प्रयास हो भी रहे हैं। सार्वा ब्रदर्स की ‘मंदरा जी’ एवं मनोज वर्मा जी की ‘भूलन द मेज़’ इसी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है।

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