‘कबड्डी’ में नारी शक्ति की महानता- कुलदीप कौशिक

मिसाल न्यूज़

डायेरक्टर कुलदीप कौशिक व्दारा निर्देशित छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘कबड्डी’ 28 जुलाई को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है। कौशिक अपने इस प्रोजेक्ट को लेकर काफ़ी उत्साहित हैं। वे कहते हैं कि नाम ‘कबड्डी’ है लेकिन फ़िल्म नारी शक्ति पर केन्द्रित है। नारी शक्ति के लक्ष्मी, दुर्गा, काली समेत कितने ही स्वरूप हैं जिन्हें पूजा जाता है। ‘कबड्डी’ रचकर हमने नारी शक्ति के प्रति सम्मान प्रस्तुत किया है। दर्शकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए हमने ‘कबड्डी’ में मनोरंजन को भी पूरी जगह दी है। साथ ही इसमें अच्छे गीत भी आपको देखने और सुनने मिलेंगे।

‘मिसाल न्यूज़’ से बातचीत करते हुए कुलदीप कौशिक ने कहा कि ‘कबड्डी’ ऐसा खेल है जो हज़ारों साल से खेला जा रहा है।  शहर हो या गांव यह हर जगह यह खेल आपको देखने मिलेगा। फिर कबड्डी हमारा राष्ट्रीय खेल है। इस खेल को हमने अपनी फ़िल्म में दूसरे ही अंदाज़ में पिरोया है और इसे नारी सशक्तिकरण से जोड़ा है। हालांकि पिछले पंद्रह-बीस वर्षों में सारी दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है और इस दौर में नारी पहले से ज़्यादा मजबूत हुई है, लेकिन सभी जगह ऐसी स्थिति नहीं है। संसार के ऐसे कई कोने हैं जहां नारियां आज भी अपने हक़ के लिए लड़ रही हैं। बस इसी के इर्द-गिर्द हमने अपनी फ़िल्म को बुना है। हमारी फ़िल्म में गांव की युवतियां स्कूल की ज़मीन के लिए लड़ती हैं। छत्तीसगढ़ का एक गांव जो नशे की गिरफ्त में है वहां एक बाहूबलि अपनी सत्ता चला रहा होता है। वह न जाने कितने ही लोगों की ज़मीन हथिया कर बैठा है। जब इसके खिलाफ़ गांव की कुछ साहसी महिलाएं आवाज़ उठाती हैं तो वह कहता है कि ज़मीन वापस पानी है तो आदमियों के साथ कबड्डी मैच खेलना होगा। महिलाएं इस निष्कर्ष पर पहुंचती हैं जीत-हार तो जीवन का हिस्सा है। अगर जीत गईं तो गांव और आने वाली पीढ़ी का भविष्य तो उज्ज्वल रहेगा। अंततः आदमियों एवं महिलाओं के बीच कबड्डी होती है। इस खेल का नतीजा क्या निकलता है बेहतर होगा कि आप इस पर्दे पर देखकर जानें।

कौशिक आगे बताते हैं- “कबड्डी छत्तीसगढ़ी और बृज दो भाषाओं में बनी है। छत्तीसगढ़ी वर्जन हम पहले लेकर आ रहे हैं। ‘कबड्डी’ में जो मुख्य 12 महिला पात्र हैं उन्हें हमने अलग-अलग स्टेट से लिया है। महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान एवं हरियाणा जैसे राज्यों से।“

आप पिछले कई सालों से मुम्बई में हैं। छत्तीसगढ़ी में ‘कबड्डी’ तैयार करते समय क्या भाषा संबंधी दिक्कत नहीं आई, इस सवाल पर कुलदीप कौशिक कहते हैं- “मेरा जन्म गांव में हुआ और वहीं पला बढ़ा, इसलिए गांव की कहानी पर काम करने में किसी तरह की कठिनाई नहीं हुई। जहां तक छत्तीसगढ़ की बात है तो यहां के लोग काफ़ी नर्म दिल हैं। मैंने छत्तीसगढ़ में एक बार ऐसा नज़ारा देखा था कि एक बारात जा रही है। कुछ महिलाएं सिर पर हंडे रखकर चल रही हैं, वहीं कुछ मर्द नशे में नाच रहे हैं। उस दृश्य से नारी शक्ति के प्रति मेरे मन में एक अलग ही सम्मान भाव जगा। उस दृश्य को मैंने ‘कबड्डी’ में भी रखा है।“

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