● कारवां (24 सितंबर 2023)- घोषणा पत्र पर उलझन

■ अनिरुद्ध दुबे

कांग्रेस के कई ऐसे वर्तमान विधायक हैं जिनकी इस चिंता में सांस अटकी हुई है कि कहीं इस बार टिकट न कट जाए। विधायक तो क्या मुखिया भी इस बात को समझ पा रहे हैं कि इस बार 65 प्लस जैसा कोई चमत्कार नहीं होना है। फिर 2018 के चुनाव के समय कांग्रेस विपक्ष में थी। तब घोषणा पत्र तैयार करते समय न जाने कितने ही बड़े मुद्दे हाथ में थे, जिससे तत्कालीन भाजपा सरकार की चूलें हिलाना आसान हो सका था। इस बार तो खुद अपनी सरकार है। एक शराब बंदी का वादा अब तक फांस बना हुआ है। कांग्रेस हो या भाजपा अभी के घोषणा पत्र में वादों को कागज़ों पर लाने से पहले कई बार सोचना होगा। इस समय छत्तीसगढ़ कर्ज़ के बोझ तले दबा हुआ है। सत्ता में आने के बाद कुछ वादों को पूरा करने कर्ज़ भी लेना पड़ता है। फिर कर्ज़ की राशि कोई छोटी मोटी नहीं होती। बड़ा वादा यानी बड़ी राशि। इसलिए हवा में बातें नहीं की जा सकती। भाजपा को घोषणा पत्र तैयार करने में इसलिए ज़्यादा माथापच्ची करनी पड़ सकती है कि सत्ता पक्ष ने किसानों को साध रखा है। गांव के मजदूरों में भी नाराज़गी नहीं दिखती। शराब बंदी हम करके दिखाएंगे ऐसा भी वादा भाजपा ज़ल्दबाजी में नहीं कर सकती। कांग्रेस हो या भाजपा, घोषणा पत्र तैयार करने को लेकर दोनों ही पार्टियां इस बार काफ़ी उलझन में होंगी।

बीएसपी पर सीएम

का तगड़ा निशाना

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले दिनों भिलाई इस्पात संयंत्र पर जमकर निशाना साधा। भिलाई में हुए एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि बीएसपी की उत्पादन के साथ क्षेत्र के विकास की भी जिम्मेदारी बनती थी। ख़ासकर प्लांट के आसपास बसे लोगों के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं पर विशेष ध्यान देना था। बीएसपी ने इसकी अनदेखी की। मुख्यमंत्री बालको से बीएसपी की तुलना करने से भी नहीं चुके। उन्होंने कहा कि बालको अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए अपने क्षेत्र के लोगों को सुविधाएं उपलब्ध कराने में बीएसपी से काफ़ी आगे रहा है। 50 के दशक में लोगों ने अपनी अनमोल ज़मीन यह सोचकर बीएसपी को दी थी कि संयंत्र लगने पर उनका भी कल्याण होगा। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जो ज़मीन उपयोग में नहीं आ पाई उसे बीएसपी राज्य सरकार को लौटा दे। फिर सरकार प्रभावित लोगों को मालिकाना हक़ दिलाने का काम करेगी। वहीं भिलाई में हुए समृद्धि सम्मेलन में प्रियंका गांधी आई थीं तो मुख्यमंत्री ने उनके पूर्वज पंडित जवाहरलाल नेहरु का स्मरण किया। मुख्यमंत्री ने मंच पर से कहा कि “भिलाई इस्पात संयंत्र नेहरु जी की देन है।“ जो कि है भी।

टिकट की आस

राजनीति के गलियारे में इन दिनों एक बड़ी ब्राह्मण हस्ती काफ़ी सुर्खियों में हैं। ये मुखिया का दिल जीते हुए हैं। बिलासपुर संभाग की एक विधानसभा सीट से कांग्रेस टिकट को लेकर इनकी दावेदारी भी है। पिछले दिनों बिलासपुर में हुए एक बड़े आयोजन के ये सूत्रधार थे। राजनीति का क्षेत्र ऐसा है जहां सबसे ज़्यादा टांग खिंचाई होती रहती है। कुछ लोग मुखिया के यह संज्ञान में लाने की तैयारी में हैं कि जो ब्राह्मण देवता टिकट के लिए जोर लगाए हुए हैं वे कभी संघ के ग्राम उत्थान विभाग के प्रदेश पदाधिकारी रहे हैं। जो हो, इन ब्राह्मण नेता ने न जाने कितने ही क्षेत्रों का अध्ययन कर रखा है। न सिर्फ़ कृषि बल्कि मुम्बई के धारावी इलाके पर ये लगातार एक घंटे बोल सकने की क्षमता रखते हैं।

जो चाहा वो हुआ

भाजपा के वरिष्ठ नेता धरमलाल कौशिक के बारे में कहा जाता है वे बहुत मजबूत इच्छा शक्ति वाले हैं। वे जो चाहते हैं उसे ऊपर वाले की तो गारंटी नहीं, नीचे फैसले लेने वाला ज़रूर सुन लेता है। कौशिक मांग करते आ रहे थे कि किसानों को धान का समर्थन मूल्य 2800 रुपये मिलना चाहिए। वैसा हो भी गया। भाजपा के कुछ और बड़े नेता सोच की मुद्रा में हैं कि महत्वपूर्ण मांगें तो हम भी उठाते रहे हैं लेकिन ऐसा क्या जादू है कि कौशिक जो चाह रहे होते हैं वैसा हो जाता है।

दिल्ली में तीसरा छत्तीसगढ़

भवन… मुम्बई की योजना

कागज़ों में ही रह गई

देश की राजधानी दिल्ली में इसी महीने नये छत्तीसगढ़ भवन का लोकार्पण होने जा रहा है। यह व्दारका के सेक्टर-13 में बना है। 13 सुइट और 61 कमरे हैं। भवन की ख़ूबसूरती पर विशेष ध्यान दिया गया है। दिल्ली में छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए दो भवन चाणक्यपुरी एवं सफदरजंग हॉस्पिटल के सामने तो पहले से ही थे, व्दारका वाला तीसरा होगा। चाणक्यपुरी एवं सफ़दरजंग हॉस्पिटल के सामने दोनों ही भवन नेताओं एवं अफ़सरों से खचाखच रहते आए हैं। यही कारण है कि व्दारका में एक और भवन बनवाने की ज़रूरत पड़ी। प्रदेश में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी तब घोषणा हुई थी कि दिल्ली की तर्ज़ पर मुम्बई में भी छत्तीसगढ़ भवन का निर्माण करवाया जाएगा। इसलिए कि मुम्बई देश की औद्योगिक राजधानी है। राजनीतिक, स्वास्थगत, कला-संस्कृति एवं सिनेमा जैसे कारणों से छत्तीसगढ़ के लोगों का लगातार मुम्बई प्रवास होते रहता है, अतः वहां छत्तीसगढ़ भवन की नितांत ज़रूरत है। यह अलग बात है कि मुम्बई में छत्तीसगढ़ भवन वाली योजना कागज़ों में ही रह गई।

कितना अच्छा लगेगा

अंजोरी बकरी सुनना

नई ख़बर यह है छत्तीसगढ़ की देशी नस्ल की बकरियों को अब अंजोरी नाम से जाना जाएगा। कामधेनु विश्वविद्यालय व्दारा अंजोरी नाम को पेटेंट कराया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि अंजोरी नाम अंजोरा से लिया गया है, जहां कि छत्तीसगढ़ का वैटनरी कॉलेज और विश्वविद्यालय है। इससे पहले छत्तीसगढ़ की देशी गायों का नाम पेटेंट कराकर कोसली रखा जा चुका है। अच्छा है कि हम अपने यहां की गाय भेंड़-बकरियों को अपनी पहचान दिलवा रहे हैं। पहले जब छत्तीसगढ़ में कृषि मेला लगा करता था, दूसरे राज्यों के पशु धन का गुण गान होते रहा था। कुछ वर्षों पहले राजधानी रायपुर में कृषि मेला लगा था जिसमें हरियाणा से युवराज नाम के एक बलशाली सांड को लोगों के दर्शनार्थ बुलवाकर रखा गया था। कुछ दिनों के लिए यहां लाए गए इस हाई प्रोफाइल सांड के खान-पान एवं देख-रेख में शासन एवं प्रशासन ने तीन से चार लाख रुपये फूंक दिए थे।

रायपुर और मेट्रो

देखते ही देखते 5 साल निकल गए लेकिन रायपुर शहर के सीने में आधे-अधूरे बनकर पड़े स्काई वॉक का कोई समाधान नहीं निकल पाया। जंग खा रहा यह स्काई वॉक मानो मूंह चिढ़ाता हुआ सा लगता है। कोई बाहर का व्यक्ति रायपुर आए तो वह नीचे से स्काई वॉक देखकर भ्रम में भी पड़ जाता है। रायपुर शहर के एक कांग्रेस नेता पिछले दिनों दिलचस्प अनुभव से गुजरे। मुम्बई से उनके ससुर रायपुर आए हुए थे। किसी काम से उनका नगर घड़ी चौक से होते हुए शास्त्री चौक जाना हुआ। वह स्काई वॉक को लेकर कुछ ठीक तरह से समझ नहीं पाए और अपने दामाद से सवाल कर बैठे कि रायपुर में भी दिल्ली-मुम्बई जैसी मेट्रो ट्रेन चलने लगी है क्या? कांग्रेस नेता सोच में पड़ गए कि ससुर जी को स्काई वॉक के बारे में कहां से समझाना शुरु करें। वैसे इस आधे अधूरे स्काई वॉक का रायपुर शहर की जनता ने काफ़ी पहले से नामकरण कर रखा है- ‘असफलता का स्मारक।‘

डीजे से उड़ी आम आदमी

की नींद, सोया प्रशासन

राजधानी रायपुर में डीजे के शोर ने एक बार फिर नाक में दम कर रखा है। इस क़दर की रात में सोया हुआ आदमी भी डीजे के शोर से जाग जाए। लेकिन प्रशासन की नींद कहां खुलनी है। गणेश जी की वंदना में एक लाइन आती है ‘विद्या वारिधी बुद्धि विधाता।‘ यानी गणपति देव बुद्धि के विधाता हैं। यहां बुद्धि की बात तो दूर डीजे बजवाने वालों की अक्ल घास चरने चली जाती है। पूरे भारत देश में शायद रायपुर ही एक ऐसा शहर होगा जहां कि अनंत चतुर्दशी के तीन-चार दिनों बाद तक गणेश विसर्जन चलते रहता है। विसर्जन इतनी देर से क्यों, कारण पता करने की कोशिश करें तो यही ज़वाब मिलेगा डीजे की उपलब्धता। जब डीजे उपलब्ध होगा तभी धूम धड़ाके के साथ गणपति बप्पा को विसर्जन के लिए लेकर जाएंगे। ऐसा नहीं है कि डीजे के कानफाड़ू शोर को लेकर राजधानी रायपुर के जागरूक लोग एवं समाजसेवी संस्थाएं आवाज़ नहीं उठाती हैं। उठाती हैं, लेकिन वह मुहावरा है न नक्कारखाने में तूती की आवाज़। शहर की व्यवस्था देखने वालों के कानों में तो मानो रुई ठूंसी हुई है।

मेयर के बाद नेता

प्रतिपक्ष काली

माता के दर पर

राजधानी रायपुर में आकाशवाणी तिराहा और नगर निगम मुख्यालय जिसे शहर के लोग बड़ी शान से व्हाइट हाउस कहते हैं सीधी लाइन पर हैं। यानी आकाशवाणी तिराहा से व्हाइट हाउस के लिए जाने निकलो तो कोई मोड़ नहीं। इसी आकाशवाणी तिराहे पर मां काली का मंदिर है। धर्म-कर्म को मानने वालों की इस धार्मिक केन्द्र के प्रति अगाध आस्था है। रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर मार्च महीने में 2023-24 का नगर निगम की अनुमानित बजट पेश करने से पहले मां काली मंदिर जाकर पूजा अर्चना किए थे। शुक्रवार को भाजपा पार्षदगण रायपुर शहर की ख़राब सड़कों की मरम्मत तथा प्रत्येक वार्ड में 50-50 लाख रुपये के विकास कार्य कराने की मांग को लेकर सीएम हाउस का घेराव करने पैदल निकले हुए थे। पुलिस बल ने बीच रास्ते में इन्हें रोक लिया। भाजपा पार्षदों ने घंटों प्रदर्शन किया। फिर जो ज्ञापन मुख्यमंत्री को सौंपा जाना था उसे नगर निगम की नेता प्रतिपक्ष श्रीमती मीनल चौबे ने काली माता की प्रतिमा के सामने ले जाकर रख दिया। महापौर हों या निगम नेता प्रतिपक्ष दोनों की अर्जी काली माता के पास लग चुकी है। महापौर तो नवरात्रि पर्व के समय में काली माता मंदिर में होने वाले हवन में भी शामिल होते रहे हैं।

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