● कारवां (8 अक्टूबर 2023)- आरोप पत्र के बाद प्रत्याशी सूची भी लीक

■ अनिरुद्ध दुबे

भाजपा प्रत्याशियों की दूसरी सूची अधिकृत रूप से जारी होने से पहले इलेक्ट्रानिक मीडिया, वेब पोर्टल एवं अन्य सोशल मीडिया में क्या आई बवाल मच गया। सुबह-सुबह सूची जब मीडिया में दौड़ने लगी पहले तो ज़्यादातर लोगों ने यही कहा हवा-हवाई है। फिर धीरे-धीरे संदेह सच में बदल गया। दबी ज़ुबान में भाजपा के ही कुछ बड़े नेता कहते नज़र आए कि “सूची सही है। पता नहीं पार्टी की तरफ से घोषणा होने से पहले ही यह मीडिया में कैसे आ गई!” फिर पिछले ही महीने भाजपा का आरोप पत्र भी तो जारी होने से कुछ ही घंटे पहले लीक हो गया था। कांग्रेस ने आरोप पत्र जारी होने से पहले ही भाजपा पर हमलावर होते हुए राजधानी रायपुर में एक प्रेस कांफ्रेंस कर डाली थी। बताते हैं इस तरह प्रत्याशियों की सूची मीडिया में पहले आ जाने से भाजपा राष्ट्रीय महामंत्री एवं छत्तीसगढ़ प्रभारी ओम माथुर बेहद नाराज़ हैं। जगदलपुर में हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जो सभा हुई उसमें माथुर मौजूद नहीं थे। इसके पहले तक तो वे प्रधानमंत्री के सभी कार्यक्रमों में मंच पर नज़र आए थे। जगदलपुर की सभा में माथुर की गैर मौजूदगी को उनकी नाराज़गी से जोड़कर देखा जा रहा है। सवाल यह है कि सूची लीक हुई तो कैसे? अंदर की ख़बर रखने वाले तो यही बता रहे हैं कि दिल्ली से लीक हुई। लीक होने के पीछे एक चेहरा छत्तीसगढ़ का है और दूसरा वो जो ज़माने से दिल्ली में बैठा हुआ है। जो हो, दूसरी सूची के तीन या चार नाम बदलेंगे ऐसी पूरी संभावना जताई जा रही है। ये वो चार नाम हैं जिन्हें लेकर हंगामा मचा हुआ है। चारों के खिलाफ़ सोशल मीडिया में आएं का बाएं लिखा जा रहा है। एक युवा चेहरा तो ऐसा भी रहा जिसके विरोध में पोस्टर तक तैयार करवा लिए गए और सोशल मीडिया में ख़ूब दौड़ाए गए। उसका पुतला तक जला दिया गया।

तो क्या जान-बूझकर

लीक करवाई गई सूची

क्या कोई पार्टी अपने ही लोगों और आम जनता का मन टटोलने प्रत्याशियों की सूची जारी करवा सकती है, यह सवाल उभरा हुआ है! जैसे कि चर्चा है भाजपा प्रत्याशियों की दूसरी सूची जो जारी होने वाली थी लीक हो गई, उसके इतर यह हवा भी फैली हुई है कि सूची जान-बूझकर लीक करवाई गई! आज की तारीख़ में भाजपा के केवल 13 विधायक हैं। 90 सीटों के सामने सरकार बनाने 46 सीटें चाहिए, जो कि भाजपा के सामने काफ़ी बड़ा लक्ष्य है। वहीं कांग्रेस में कोई 55 तो कोई 60 से ऊपर सीट लाने की बात कर रहा है। निश्चित रूप से भाजपा प्रत्याशी चयन के मामले में काफ़ी फूंक-फूंककर कदम रख रही है। यही कारण है कि राजनीति में गहन चिंतन मनन करते रहने वाले कुछ लोगों का कहना है कि “हो सकता है पार्टी के भीतर और बाहर लोगों का मन टटोलने जान-बूझकर सूची लीक करवाई गई हो।”

टिकट के लिए दो

महाशक्ति की अनुशंसा

भाजपा की जो सूची लीक हुई उसमें रायपुर की चार में से एक सीट के प्रत्याशी का नाम चौंकाने वाला रहा। भाजपा से जुड़े न जाने कितने ही लोगों ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि इन सज्जन का नाम तो पैनल में ही नहीं था। चमत्कारिक रूप से प्रत्याशियों की लिस्ट में इनका नाम कहां से आ जुड़ा? दूर की कौड़ी ढूंढ़कर लाने में माहिर लोगों का तो यही कहना है कि इन सज्जन के लिए रायपुर में विराजमान एक महाशक्ति और दूसरी दिल्ली में विराजमान महाशक्ति ने मौखिक अनुशंसा की थी। जब दो महाशक्तियों की ओर से अनुशंसा हुई तो बड़े से बड़े प्रत्याशी चयनकर्ता भी कुछ बोल पाने में असमर्थ हो गए। और तो और ये सज्जन किसी कार्यक्रम में मंच से मीडिया वालों तक से अनुरोध करते नज़र आए थे कि आप सब टिकट के लिए मेरा नाम पार्टी के बड़े नेताओं तक बढ़ाएं।

कांग्रेस की सूची

और पितृ पक्ष

छत्तीसगढ़ में भाजपा प्रत्याशियों की पहली सूची आए क़रीब डेढ़ महीने हो गया, वहीं कांग्रेस की पहली सूची का अब तक पता नहीं है। प्रत्याशी चयन को लेकर कांग्रेस की न जाने कितनी ही बैठकें हो चुकीं हैं, स्क्रीनिंग कमेटी का भी अब कोई रोल नहीं बचा है। रोल बचा है तो कांग्रेस की केन्द्रीय चुनाव समिति का। कांग्रेस का हर बड़ा-छोटा नेता अब यही कहते नज़र आ रहा है कि “प्रत्याशियों की पहली लिस्ट पितृ पक्ष के बाद ही आएगी।” कई लोग बरसों से चली आ रही इस परंपरा को मानते रहे हैं कि पितृ पक्ष में शुभ कार्य नहीं होते। सवाल यह है कि तो क्या कांग्रेस पितृ पक्ष को मानती है? इस सवाल पर राजनीति में अपने सारे बाल पका चुके एक नेता का ज़वाब रहा कि “कांग्रेस हर उस चीज को मानती है जहां उसे काम करने में सुविधा हो। कांग्रेस ने प्रत्याशी चयन को लेकर ब्लॉक स्तर तक पर आवेदन बुलवा लिए। आवेदनों का आंकड़ा हज़ार पर जा पहुंचा। ब्लॉक स्तर वाले सिस्टम ने न जाने कितने ही लोगों के मन में महत्वाकांक्षा जगा दी। यदि ज़ल्दबाजी में सूची ला दी गई तो जगह-जगह बवाल मचने का ख़तरा है। पार्टी के बड़े लोग इस ख़तरे को भांप चुके हैं। इसलिए सूची को थोड़े और समय तक रोके रखने के लिए पितृ पक्ष का बहाना क्या बुरा हो सकता है।“

छत्तीसगढ़ी सिनेमा

में रमे कांग्रेस नेता

कांग्रेस नेताओं का मानो छत्तीसगढ़ी सिनेमा से नाता लगातार गहराते जा रहा है। बलौदाबाजार एवं कसडोल से टिकट की संभावनाएं तलाश रहे वरिष्ठ नेता सुरेन्द्र शर्मा हाल ही में रिलीज़ हुई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘तही मोर सोना’ में नेता की ही भूमिका में नज़र आए। वहीं प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला अपने कुछ बेहद क़रीबी मित्रों से कह चुके हैं कि 2024 में मेरा एक छत्तीसगढ़ी फ़िल्म बनाने का इरादा है। छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘बलिदानी राजा गुरू बालक दास’ में छत्तीसगढ़ सरकार के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत शहीद वीर नारायण सिंह तथा नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया सूत्रधार का किरदार निभा चुके हैं। इसी फ़िल्म में आरंग विधानसभा सीट से भाजपा टिकट के प्रबल दावेदार खुशवंत दास ने गुरु आगर दास की भूमिका निभाई है। गुरु बालक दास के किरदार में ओम त्रिपाठी नज़र आएंगे। ‘बलिदानी राजा गुरु बालक दास’ प्रदर्शित होने को है। वहीं प्रदेश कांग्रेस महामंत्री (प्रशासन एवं संगठन) मलकीत सिंग गैदू बरसों पहले छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘हमर पहुना’ प्रोड्यूस कर चुके हैं।

मोदी की सभा

बंद का फायदा

बस्तर में पिछले दिनों हुई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सभा वहां के लोगों के लिए यादगार साबित हो गई। बताते हैं जगदलपुर का लालबाग ग्राउंड मोदी की सभा के समय खचाखच था। नगरनार प्लांट का लोकार्पण करने के बाद मोदी सीधे आम सभा लेने पहुंचे। बताते हैं एक लाख से ऊपर की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। मोदी की सभा वाले ही दिन कांग्रेस ने बस्तर बंद का आव्हान कर दिया था। ख़बर तो यही रही कि दुकान बंद रहने के कारण कितने ही व्यापारी मोदी का भाषण सुनने अकेले ही नहीं गए बल्कि परिवार वालों को भी साथ ले गए। ऐसे में सभा स्थल खचाखच तो होना ही था।

फिर डीजे का

कानफोड़ू शोर

राजधानी रायपुर में तीन-चार दिनों तक चले गणेश विसर्जन में जिस तरह डीजे का कानफाड़ू शोर मचते रहा उससे न जाने कितने ही लोगों का कुछ देर के लिए ही सही चैन से जीना हराम रहा। एक थियेटर आर्टिस्ट ने तो सोशल मीडिया में लिखकर डाला कि एक के बाद एक चल रहे विसर्जन के शोर से तंग आकर मैं अपनी छोटी सी बच्ची को लेकर दो दिन के लिए होटल में रहने चली गई थी। हर बार की तरह इस बार भी राजधानी रायपुर के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता डीजे को लेकर आवाज़ उठाते रहे लेकिन प्रशासन के कानों में जूं कहां रेंगने वाली थी।

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