● कारवां (24 दिसंबर 2023)- 8 नये का मंत्री बनना यानी नई लीडरशिप का आगाज़

■ अनिरुद्ध दुबे

प्रदेश की नई भाजपा सरकार में मंत्री पद के लिए जो नाम सामने आए वो कोई कम चौंकाने वाले नहीं रहे। शुक्रवार को राज भवन में नौ मंत्रियों ने शपथ ली। अभी कुल 12 मंत्री हैं जिनमें 8 नये व चार पुराने हैं। 8 नये लोगों को मंत्री बनाया जाना इस बात का संकेत है कि भाजपा ने नई लीडरशिप तैयार करने की दिशा में पुख़्ता तौर पर काम करना शुरु कर दिया है। जब से छत्तीसगढ़ राज्य बना, अब तक होता यह आया था कि नये में दो या तीन लोगों को ही मंत्री मंडल में जगह मिला करती थी। बाक़ी सब पुराने चेहरे हुए करते थे। इस बार इससे ज़्यादा चौंकाने वाला निर्णय और क्या हो सकता है कि रेणुका सिंह, गोमती साय एवं लता उसेन्डी इन तीनों में से किसी को भी मंत्री मडल में जगह नहीं मिली। पूर्व में तो कहां इन तीनों का नाम मुख्यमंत्री पद तक के लिए चला हुआ था। फिर यह बात भी गौर करने लायक है कि रेणुका सिंह पूर्व में केन्द्र सरकार में मंत्री, लता उसेन्डी राज्य सरकार में मंत्री तथा गोमती साय सांसद रह चुकी हैं। यानी तीनों ही नेत्रियां अनुभवी हैं। इधर- अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक एवं राजेश मूणत को मंत्री नहीं बनाया जाना भी कितने ही लोगों को चौंका गया। ये चारों ही काफ़ी सधे हुए गुणी नेता माने जाते हैं। धरमलाल कौशिक जहां पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं वहीं अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर एवं राजेश मूणत पूर्व में मंत्री रह चुके हैं। उस पर भी अमर अग्रवाल एवं राजेश मूणत, ये दोनों नेता तो डॉ. रमन सिंह के तीनों शासनकाल में अर्थात् 3 बार मंत्री रहे थे। पूर्व में पुन्नूलाल मोहले भी लगातार 2 बार मंत्री रहे थे, जो कि इस बार मंत्री नहीं बन पाए। राज भवन में नौ मंत्रियों की शपथ हो जाने के बाद सबसे ज़्यादा उदासी यदि किसी पूर्व मंत्री के चेहरे पर नज़र आ रही थी तो वह पुन्नूलाल मोहले थे। वहीं पहली बार मंत्री बने टंकराम वर्मा पूर्व में कभी तत्कालीन सांसद रमेश बैस एवं उनके बाद तत्कालीन मंत्री केदार कश्यप के पीए रहे थे। केदार कश्यप इस बार भी मंत्री बनाए गए हैं। जब किसी ने केदार से टंकराम को मंत्री बनाए जाने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने ज़वाब दिया कि “यही तो भाजपा की ख़ूबी है। वह क़ाबिल नये चेहरे को अवसर देने तैयार रहती है।“

न बाल कटे, न ही मूंछ

तब वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय भाजपा में थे। किसी सार्वजनिक मौके पर दूसरे वरिष्ठ आदिवासी नेता रामविचार नेताम ने साय जी को सामने करते हुए कह दिया था कि “जब तक छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार नहीं बनती साय जी बाल नहीं कटवाएंगे।“ इस पर साय जी कुछ नहीं बोले। इसे मीडिया ने साय जी की मौन स्वीकृति मान ली। तब सरकार कांग्रेस की थी और उस सरकार में मंत्री रहे वरिष्ठ आदिवासी नेता अमरजीत भगत से साय जी के इस संकल्प का ज़िक्र किया गया तो उन्होंने कहा था कि “यदि छत्तीसगढ़ में दोबारा कांग्रेस की सरकार नहीं बनी तो मूंछ मूढ़वा दूंगा।“ कुछ ऐसा घटा कि साय जी भाजपा छोड़ कांग्रेस में आ गए। 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम आए। कांग्रेस की सरकार जा चुकी थी। अब लोगों ने दोनों वरिष्ठ नेताओं के संकल्प को याद करना शुरु किया। साय जी बाल तो नहीं कटवाए कांग्रेस से इस्तीफ़ा ज़रूर दे दिए। यानी वे इस समय किसी पार्टी में नहीं हैं। इधर, कांग्रेस की दोबारा सरकार नहीं बनने के बाद भी भगत जी की मूंछें सलामत हैं।

राज्य बनने के बाद पहली बार

बसपा का एक भी नहीं जीता

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यह पहला मौका है जब 2023 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का एक भी प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंचा। 2003 में लालसाय खुंटे (मालखरौदा) एवं कामदा जोल्हे (सारंगढ़), 2008 में सौरभ सिंह (अकलतरा) एवं दूजराम बौद्ध (पामगढ़), 2013 में केशव चंद्रा (जैजैपुर), 2018 में केशव चंद्रा (जैजैपुर) एवं श्रीमती इंदू बंजारे (पामगढ़) बसपा की टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। फिर इस बार तो बसपा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से तालमेल बिठाकर चुनाव लड़ी थी। ज़्यादातर लोगों का पूर्वानुमान यही था कि बसपा कहीं से जीते या न जीते बिलाईगढ़ से उसके प्रत्याशी श्याम टंडन की स्थिति अच्छी है और वह सीट निकाल लेंगे। जब नतीजा सामने आया तो बिलाईगढ़ से कांग्रेस की कविता लहरे बाजी मार गईं। राज्य बनने के बाद पहली बार गोंडवाणा गणतंत्र पार्टी खाता खोलने में ज़रूर क़ामयाब रही। पाली तानाखार सीट से गोंगपा उम्मीदवार तुलेश्वर मरकाम ने जीत दर्ज की है।

राज्यपाल, मंत्री, सांसद,

विधायक तक का कर्म

क्षेत्र रहा रायपुर नगर निगम

शुक्रवार को ओ.पी. चौधरी के मंत्री पद की शपथ लेने के बाद रायपुर नगर निगम के गलियारे में राजनीतिक चर्चाओं का लंबा दौर चलते रहा। रायपुर नगर निगम में जो बरसों से सेवाएं देते आ रहे हैं वो पुरानी यादों में खोते नज़र आए कि  यहां से निकले कौन पार्षद, महापौर और अफ़सर राजनीतिक बुलंदियों पर पहुंचे। 1978 में रायपुर नगर निगम में कांग्रेस से तरुण चटर्जी तथा जनता पार्टी से रमेश बैस पार्षद चुने गए थे। रायपुर नगर निगम के पहली बार हुए उस जन प्रतिनिधियों के चुनाव के बाद तरुण चटर्जी ने महापौर का दायित्व संभाला था। आगे रायपुर नगर निगम में महापौर रहे स्वरूपचंद जैन रायपुर शहर से तथा तरुण चटर्जी रायपुर ग्रामीण से विधायक चुनाव लड़े और जीते। वहीं रमेश बैस 1980 में भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर मंदिर हसौद से विधायक चुनाव लड़े और जीते। रमेश बैस 7 बार रायपुर लोकसभा सीट से सांसद भी रहे। वर्तमान में बैस महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। तरुण चटर्जी 1999 में कांग्रेस की टिकट पर महापौर चुनाव लड़े और जीते। यानी वे दोबारा महापौर बने। 2000 में अजीत जोगी की कांग्रेस सरकार बनी। 2002 में चटर्जी न सिर्फ़ कांग्रेस में आ गए बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने उनको अपनी सरकार में लोक निर्माण मंत्री भी बनाया। तरुण चटर्जी के बाद महापौर बने सुनील सोनी आज रायपुर के सांसद हैं। इसी तरह तरुण चटर्जी और सुनील सोनी दोनों के महापौर कार्यकाल में कांग्रेस पार्षद रहे कुलदीप जुनेजा आगे चलकर विधायक बने। भाजपा से कभी विधायक रहे श्रीचंद सुंदरानी 1995 से 99 के दौर में रायपुर नगर निगम में ही पार्षद रहे थे। 2009-2010 में ओ.पी.चौधरी रायपुर नगर निगम कमिश्नर थे। 2018 में चौधरी ने भाजपा प्रवेश किया और आज वे छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री के रूप में सामने हैं। वहीं एक और आईएएस अफसर गणेशशंकर मिश्रा, चौधरी की तरह खुशकिस्मत नहीं रहे। मिश्रा कभी रायपुर नगर निगम में प्रशासक रहे थे। 2022 में उन्होंने भाजपा प्रवेश किया था। वे धरसींवा से भाजपा की टिकट चाह रहे थे जो कि उन्हें नहीं मिली।

घाव मैं दूंगा

औषधि वे खोजेंगे

प्रदेश में पिछली बार जब कांग्रेस की सरकार थी वरिष्ठ नेता डॉ. चरणदास महंत विधानसभा अध्यक्ष थे। अब कि बार भाजपा की सरकार बनी है तो डॉ. महंत की भूमिका बदल गई। अब वे विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष बन गए हैं। डॉ. महंत की छवि हमेशा से सहज और सरल नेता की रही है। जब कोई बात ग़लत नज़र आती है तो वे मंच पर से भाषण के दौरान खरा-खरा बोलने से नहीं चुकते। जब वे विधानसभा अध्यक्ष थे उनका इस बात पर जोर होता था विधायकगण कि सदन के भीतर हल्के शब्द का इस्तेमाल न करें। न ही कोई ऐसा कथन कहें जिससे कि सामने वाला कोई गांठ बांध कर रख ले। विधानसभा अध्यक्ष की आसंदी पर रहते हुए कभी-कभी वे संत कबीर दास जी के इस दोहे को उद्धृत किया करते थे-

“शब्द सहारे बोलिए

शब्द के हाथ न पांव

एक शब्द औषधि करे

एक शब्द करे घाव”

नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद मीडिया ने जब महंत जी से सवाल किया कि विपक्ष का काम होता है सत्ता पक्ष की कमियों को सामने रखना और इसके लिए कभी-कभी आक्रामक भी होना पड़ता है, ऐसे में आप नेता प्रतिपक्ष के रूप में नई भूमिका का निर्वहन कैसे करेंगे, डॉ. महंत ने कहा- “अब मैं घाव दूंगा, औषधि वे खोजेंगे।“

विधानसभा में दो

कलाकार अगल-बगल

नई विधानसभा का स्वरूप काफ़ी बदला-बदला सा है। भाजपा-कांग्रेस दोनों तरफ का जोड़कर देखें तो 50 लोग पहली बार विधायक बने हैं। 18 महिला विधायक इस बार चुनकर आई हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इस बार विधानसभा अध्यक्ष की आसंदी पर हैं तो पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत नेता प्रतिपक्ष की जगह पर। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विपक्षी विधायक के रूप में विधानसभा की अग्रिम पंक्ति में हैं। विधानसभा में छत्तीसगढ़ के दो लोक कलाकार दिलीप लहरिया व कुंवर सिंह निषाद की बैठने की व्यवस्था अगल-बगल है। जब बोलने की बारी आएगी तो ये दोनों कांग्रेस विधायक छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति के हितों को लेकर कौन सा राग छेड़ेंगे यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।

कितना ज़रूरी तालाब बाजू

वाली सड़क का खुलना

विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के तूरंत बाद सबसे ज़्यादा तेज हलचल रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में होती दिखाई दी। आठवीं बार विधायक चुनकर आए भाजपा विधायक और अब मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने सड़कों को घेरकर दुकान लगाने वालों के खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई के निर्देश कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे एवं एसएसपी प्रशांत अग्रवाल को दिए। साथ ही प्राचीन बूढ़ातालाब के बाजू से बंद करके रख दी गई सड़क को खोलने का अल्टीमेटम भी दे दिया। बूढ़ातालाब के बाजू से बनी इस बाई पास सड़क का निर्माण तरुण चटर्जी के महापौर कार्यकाल में हुआ था। बूढ़ातालाब के बगल से ही लगकर दानी स्कूल एवं डिग्री गर्ल्स कॉलेज का दूसरा वाला गेट है। छात्राओं के लिए यह बाई पास रोड काफ़ी मददगार रही थी। सप्रे स्कूल के मैदान में कोई कार्यक्रम होते रहा हो या फिर श्याम टॉकीज़ के बाजू इंडोर या आउटडोर स्टेडियम में कोई बड़ा आयोजन, जब कभी ट्रैफिक का दबाव बढ़ता वाहन पार्किंग के लिए यह सड़क काफ़ी काम आती रही थी। सन् 2020 में रायपुर नगर निगम की तरफ से कोई ऐसी चकरी घूमी कि इस बाई पास सड़क को बंद कर तथा सप्रे स्कूल के मैदान के आकार को घटाकर वहां एक गॉर्डन बना दिया गया, जिसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। सड़क तो गई ही गई, सप्रे स्कूल की चमक भी मानो मैदान की लंबाई घटने के कारण फीकी पड़ गई। जिला एवं नगर निगम प्रशासन ने बूढ़ातालाब के बाजू वाली इस अत्यंत उपयोगी सड़क को वापस खोलने का काम शुरु कर दिया है। माना जा रहा है जनवरी माह यानी नया साल लगते ही बूढ़ातालाब एवं उसके आसपास खोई हुई रौनक वापस लौट आएगी।

चेहरे की चमक

के पीछे का राज़

जंगल विभाग के एक सुदर्शन अफ़सर जिनका कला व संस्कृति से गहरा वास्ता है, उनके चेहरे की चमक इन दिनों देखते ही बन रही है। किसी ने उनसे बढ़ती हुई चमक का राज़ पूछ लिया। ज़वाब मिला- “चुनावी आचार संहिता जब तक लगी रही, समय ही समय था। ख़ूब वॉक किए। ख़ूब क्रिकेट खेले। फ़िल्में देखी। ऐसे में चेहरे की चमक तो बढ़नी ही थी।“

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