कारवां (29 जून 2025) ● पायलट वाली लाइन में बैठने ज़बरदस्त होड़… ● अब सुर्खियों में तीसरे मंत्री… ● पिकनिक के बहाने आनंद की प्राप्ति… ● डोंगरगढ़ से गोवा तक बाबा का करिश्मा… ● पूर्व पार्षदों का वाट्स अप ग्रुप… ● राजधानी की सफ़ाई और महीने का खेल…

■ अनिरुद्ध दुबे

7 जुलाई को राजधानी रायपुर में कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सभा होनी है। इस पर कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव एवं छत्तीसगढ़ प्रभारी सचिन पायलट ने प्रेस कांफ्रेंस ली। पायलट ने पत्रकारों के सारे सवालों के ज़वाब बड़ी ही ख़ूबसूरती से दिए। दृश्य तो देखने लायक तब था जब पायलट प्रेस कांफ्रेस लेने राजीव भवन के हॉल पहुंचे। पायलट वाली लाइन पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, विधानसभा नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का बैठना तो तय था लेकिन आगे की शेष बची जगह पर कुछ पूर्व मंत्रियों एवं वर्तमान पदाधिकारियों के बीच आगे वाली लाइन में बैठने को लेकर होड़ मच गई। मजबूरी में एक पूर्व मंत्री को पीछे की दूसरी लाइन में बैठना पड़ा। दृश्य कुछ वैसा ही था जैसा कि सिंगल स्क्रीन वाले ज़माने में किसी सुपर स्टार की फ़िल्म लगने के पहले दिन सिनेमा हॉल के अपर क्लास का दरवाज़ा खुलते ही जगह छेकने उत्साही दर्शकों के बीच मारामारी मच जाती थी। पायलट की प्रेस कांफ्रेंस में आलम यह था कि साल-दो साल में लोकप्रियता पाए नेता भी कांग्रेस की एक छत्तीसगढ़ प्रभारी सचिव को आगे वाली लाइन में बैठने के लिए जगह देने को तैयार नहीं हुए। ऐसे व्यवहार से प्रभारी सचिव के मन में जिस तरह ठेंस पहुंची, वह उनके चेहरे पर पढ़ा जा सकता था। राजीव भवन में रोज़ हाज़री लगाते रहने वाले कुछ लोगों का कहना है कि तीन में से एक प्रभारी सचिव तो छत्तीसगढ़ आने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। यहां जिस क़दर खींचातानी मची हुई है वह उन्हें रास नहीं आ रही है।

अब सुर्खियों में

तीसरे मंत्री

दो मंत्रियों की चटखारे लेकर चर्चा तो होती रही थी, अब तीसरे मंत्री को लेकर तरह-तरह की कहानियां सुनाई में आने लगी हैं। सुर्खियों में लगातार बने रहने वाले दो मंत्री तो पहली बार मंत्री बने हैं, इसलिए हो सकता है बहुत सी चीजों को समझने में उनको वक़्त लग रहा हो, लेकिन तीसरे वाले तो नये नहीं हैं, पहले भी मंत्री रह चुके हैं। निर्भरता मंत्री जी के जीवन का मूल मंत्र है। यही कारण है कि उनकी निर्भरता एक हॉटल क़ारोबारी पर हो गई। राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि क़ारोबारी जितना हॉटल चलाने में निपुण है उतना ही निपुण मंत्री जी को चलाने में भी है। मंत्री जी की बात छत्तीसगढ़ के लोग करें यहां तक तो समझ में आता है लेकिन महाराष्ट्र में बैठे खाकी कर्मवीर भी उनकी बात करने लगें वह उनकी ख़ास तरह की योग्यता को दर्शाता है।

पिकनिक के बहाने

आनंद की प्राप्ति

एक प्रदेश विशेष के दो-तीन अफ़सरों की कार्यशैली की इन दिनों नया रायपुर के किसी कोने में चर्चा होती रहती है। इन अफ़सरों ने आकर्षक युवतियों को स्टेनो बना रखा है। दोनों तरफ बेहतरीन तालमेल है। छुट्टियों में पिकनिक पर निकल पड़ते हैं। साहब का कोई बैचमेट यदि उस प्रदेश से आ गया तो उसकी भी मौज है। मौका मिलने पर बैचमेट भी दोस्त अफ़सर और स्टेनो के साथ पिकनिक पर निकल पड़ता है। वो कहते हैं न जहां चाह है, वहां राह है। जंगल में ही तो मंगल है।

डोंगरगढ़ से गोवा तक

बाबा का करिश्मा…

डोंगरगढ़ में पकड़े गए एक बाबा की कीर्ति इन दिनों दूर-दूर तक गूंज रही है। बाबा की कार्यशैली ऐसी कमाल की रही कि डोंगरगढ़ में उसके आश्रम में विदेशों तक से लोग आने लगे थे। पुलिस ने डोंगरगढ़ में बाबा को गिरफ़्तार करने के बाद जब उसके आश्रम जैसे फार्म हाउस की तलाशी ली तो भारी मात्रा में गांजा व कुछ आपत्तिजनक सामग्रियां मिलीं। भारतवर्ष में धार्मिक स्थलों की बहुतायत है। लेकिन डोंगरगढ़ वाला यह बाबा सिद्धि प्राप्त करने लंबे समय तक गोवा में रहा। गोवा में इसके ख़ूब सारे विदेशी शिष्य बने, जो आसान रास्तों से समाधि की स्थिति में पहुंच जाते थे। समाधि यानी थोड़े समय के लिए शून्य हो जाना। बाबा को लगा कि क़रीब 20 साल रहते हुए गोवा में ख़ूब सिद्धियां प्राप्त कर ली और कितने ही विदेशी शिष्यों को परमानंद की प्राप्ति करा दी, क्यों न अब अपनी कर्मभूमि डोंगरगढ़ में कुछ बड़ा काम किया जाए। बाबा ने डोंगरगढ़ के सुनसान पहाड़ी इलाके में क़रीब 42 एकड़ ज़मीन खरीद ली और योग तथा भोग के लिए आश्रम निर्माण में जुट गया। बाबा पहले से कुछ योग आसनों का जानकार तो था ही, भोग के साधनों की भी उसने भरपूर व्यवस्था कर रखी थी। लेडिज़ फर्स्ट वाली आदर्श लाइन का बाबा ने हमेशा पालन किया। योग की ट्रेनिंग में बाबा युवतियों को प्राथमिकता देता था।

छत्तीसगढ़ में विविध क्षेत्रों में अग्रणी रहकर काम करते रहने वालों की गोवा हमेशा से पहली पसंद रही है। दो-ढाई साल पहले जब रायपुर पुलिस ने नशे के क़ारोबारियों के खिलाफ़ मुहिम चला रखी थी तो पाया गया था कि सबसे ज़्यादा ड्रग्स की सप्लाई गोवा से हो रही है। यही नहीं महादेव एप से जुड़े कुछ लोगों का ठिकाना गोवा बने रहा था। अपराध में संलग्न रहने वालों व्दारा गोवा में फ़रारी काटने की ख़बरें कभी कभार सुनने आ ही जाती हैं।

पूर्व पार्षदों का

वाट्स अप ग्रुप

जिसने नगर निगम की राजनीति कर ली उससे वहां की यादें भुलाए नहीं भूलतीं। तभी तो महापौर पद की शोभा बढ़ा चुके लोग तक दोबारा पार्षद चुनाव लड़ने से पीछे नहीं हटते।  नतीजा चाहे जो हो। बहरहाल रायपुर नगर निगम में सालों हाई प्रोफाइल राजनीति करते रहे एक पूर्व पार्षद ने पूर्व पार्षदों का एक वाट्स अप ग्रुप बनाया है। उसमें कुछ वर्तमान पार्षदों को भी एड किया गया है। इस वाट्स अप ग्रुप के एडमिन का मीडिया के लोगों से दोस्ताना संबंध रहा है। किसी समय में तो एडमिन साहब ख़बरों का एंगल तक तय किया करते थे। एडमिन की बुद्धि जितनी प्रखर है, याददाश्त भी उतनी ही तेज। वह तो उनका नहीं झूकने वाला नेचर आड़े आ जाता है, नहीं तो कब का ऊंची उड़ान उड़ लिए होते। किसी समय में उनकी भूमिका निगम मुख्यालय या उनके वार्ड से संबंधित जोन तक ही सीमित नहीं हुआ करती थी, बल्कि दसों जोन में हुआ करती थी। एडमिन साहब की क़ाबिलियत के बारे में जानना हो तो उन जोन कमिश्नरों से जाना जा सकता है जिनसे उनका सीधा सम्पर्क हुआ करता था।

राजधानी की सफ़ाई

और महीने का खेल

राजधानी रायपुर की सफाई व्यवस्था पर आएं। 3600 के आसपास सफ़ाई कर्मचारी हैं। क़रीब 600 कर्मचारियों का काम मुख्यालय से तय होता है। लगभग 3000 हज़ार सफ़ाई कर्मी 70 वार्डों में सफ़ाई करने बंटे हुए हैं। रिकॉर्ड में प्रति सफ़ाई कर्मचारी को 13 से 14 हज़ार देना दिखाया जाता है। वास्तव में प्रति सफ़ाई कर्मचारी को दिया जाता है 6 से 7 हज़ार। ऐसे में तो वो 8 घंटे काम करने से रहे। 4 से 5 घंटे काम करके  खिसक लेते हैं। इंदौर जैसे शहर में हर सफ़ाई कर्मचारी के खाते में सीधे पैसा डालने की व्यवस्था है, जो कि बिना काट-पीट के डलता है। इसलिए वहां सुबह 6 से 2 बजे तक सफ़ाई कर्मचारी झाड़ू लगाते नज़र आ जाते हैं। अब रायपुर में पैसे को लेकर होने वाले खेल को समझिए। रायपुर में वार्डों के जागरुक प्रथम नागरिकों की कमी नहीं। पिछले कार्यकाल में कुछ ईमानदार लोगों को छोड़कर तेज रफ़्तार से दौड़ने वाले वार्ड के प्रथम नागरिकगण सफ़ाई ठेकेदार से 20 से 30 हज़ार हर महीने वसूला करते थे। अब यह वसूली 80 हज़ार से 1 लाख तक जा पहुंची है। ठेकेदार के पास ठेके के एवज़ में 3 से 4 लाख के बीच आता है। जब वह प्रथम नागरिक को सबसे पहले भेंट पूजा देगा, उसके बाद सफ़ाई कर्मचारियों के बीच बांटेगा तो फिर उसके हाथ क्या आएगा! इसीलिए ठेकेदारों ने भी रास्ता निकाल रखा है कि सफ़ाई कर्मचारियों का वेतन दिखाओ कुछ और, दो कुछ और। कुछ प्रथम वार्ड नागरिकों ने तो ‘अर्थ’ की महत्ता को समझते हुए इस नये कार्यकाल में ठेकेदारों से डेढ़ लाख महीने तक की डिमांड कर डाली थी। रो-गाकर मामला  80 हज़ार से 1 लाख तक पहुंचा है। कुछ ऐसे भी ठेकेदार हैं जो प्रथम नागरिकों की डिमांड पर खरे नहीं उतर पाए। यही कारण है कि उन बेचारों का इस बार डब्बा गोल हो गया।

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