● कारवां (14 अगस्त 2022)- साव बड़ा दांव, और भी बड़े पत्ते खेल सकती है भाजपा

■ अनिरुद्ध दुबे

बिलासपुर के सांसद अरुण साव को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने के बाद बरसात के इस मौसम में मानो छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिज़ा गरमा गई है। चर्चा तो यह भी है कि विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष भी बदला जा सकता है। अभी नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक हैं। मीडिया में कभी छनकर यही ख़बर आई थी कि कौशिक पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह व्दारा जोर लगाए जाने के कारण नेता प्रतिपक्ष बने। बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर एवं शिवरतन शर्मा जैसे दिग्गज भाजपा विधायकों में कौशिक के नाम को लेकर घोर असहमति थी, लेकिन सिक्का जैसा भी रहा हो उस समय डॉ. रमन सिंह का चल निकला। बहरहाल दिल्ली में बैठे भाजपा के दिग्गज काफ़ी सोच विचार के बाद ही नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर किसी निर्णय पर पहुंचने के मूड में हैं। दिल्ली में इस बात पर चिंतन चल रहा है कि विधानसभा का 2022 का शीतकालीन सत्र एवं 2023 का बजट तथा मानसून सत्र ही बाक़ी रह गया है। फिर अविश्वास प्रस्ताव जैसा विपक्ष का जो सबसे मजबूत हथियार होता है वह गए जुलाई महीने में विपक्ष की ओर से विधानसभा के मानसून सत्र में चलाया जा चुका है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष को बदलने की अभी की स्थिति में कितनी ज़रूरत है या फिर नहीं है, इस पर गंभीरता से विचार हो रहा है। जानकार लोगों के मुताबिक़ दिल्ली में बैठे लोगों ने कौशिक के हटने की स्थिति में नारायण चंदेल व शिवरतन शर्मा जैसा नाम विकल्प के तौर पर सोच भी रखा है। फिलहाल मामला फिफ्टी फिफ्टी पर है। यानी कौशिक बदले जा सकते हैं और नहीं भी बदले जा सकते। इसके अलावा भाजपा ने रमेश बैस नाम का एक पत्ता अभी छिपाकर रखा है जो कि इस समय झारखंड के राज्यपाल हैं। भाजपा जान रही है कि छत्तीसगढ़ में 2023 का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के चेहरे पर लड़ा जाएगा। बघेल पिछड़ा वर्ग से हैं। यही कारण है कि भाजपा ने पिछड़ा वर्ग के सुलझे हुए नेता अरुण साव को सामने लाकर बड़ा दांव खेला है। फिर सात बार के सांसद रमेश बैस भी पिछड़ा वर्ग का बड़ा चेहरा हैं। भाजपा के भीतर इस बात को लेकर बराबर चिंतन मनन चल रहा है कि 2023 के चुनाव में बैस का उपयोग किस रूप में हो सकता है।

हाथी दिवस पर पीएम

के मन की बात

12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस था। विश्व हाथी दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि “एशियाई हाथियों की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी भारत में है। पिछले आठ सालों में हाथी अभ्यारण्यों में इज़ाफ़ा हुआ है।“ प्रधानमंत्री ने अपने ट्वीट में मानव और हाथियों के संघर्ष को कम करने की बात कही। वहीं केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि “हाथियों के हमले में मारे गए लोगों की मुआवजा राशि मोदी सरकार ने दो लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर दी है। देश में हाथी कॉरीडोर पर चल रहे कामों की समीक्षा हो रही है। कॉरीडोर को लेकर 50 प्रतिशत काम पूरे हो चुके हैं।“ ये तो रही प्रधानमंत्री एवं केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री की बात लेकिन छत्तीसगढ़ के हालात कुछ और ही हैं। छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों का आतंक थम नहीं रहा है। कभी-कभी तो इनका रूख़ शहरों के आसपास तक हो जाता है। ऐसे भी मौके आए जब हाथियों का झूंड नये रायपुर से लगे कुछ गांवों तक पहुंच गया था। छत्तीसगढ़ में हाथियों के लिए अलग से कॉरीडोर बनाने की बात बरसों से होती आ रही है। इस पर कहां तक काम हो पाया है इसका ज़वाब किसी के पास नहीं है। कभी-कभी तो इन हाथियों से अपनी जान बचाने ग्रामीण पानी टंकी पर चढ़ जाते हैं। कुछ महीने पहले एक विधायक तक पानी टंकी पर जा चढ़े थे। हाथी-मानव के संघर्ष को रोकने के उपायों पर चर्चा करने माइक पांडे से लेकर और भी जानकार लोग दूसरे राज्यों से बुलाए जा चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा हासिल होते नहीं दिख रहा है।

सेनानी परिवारों के बीच

से उठने लगी आवाज़

राजधानी रायपुर में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवारों का सम्मेलन आयोजित हुआ। सम्मेलन में 1857 की क्रांति के योद्धा मंगल पांडे के वंशज रघुनाथ पाण्डेय समेत दूसरे प्रदेशों के वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आए हुए थे। सम्मेलन में बतौर अतिथि पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक व्दय सत्यनारायण शर्मा एवं बृजमोहन अग्रवाल जैसी हस्तियां पहुंचीं हुई थीं। दोनों दिग्गज नेताओं ने सारगर्भित तरीके से अपनी बातें रखीं। वहीं मंच पर से हरिव्दार से आए स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी परिवार समिति के राष्ट्रीय महासचिव जितेन्द्र रघुवंशी ने अपने ओजस्वी भाषण में सेनानी परिवारों की हो रही उपेक्षा को लेकर सवाल पर सवाल खड़े किए तथा केन्द्र व राज्य की सरकारों पर जमकर निशाना साधा। समापन समारोह के मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल थे। कोई अति आवश्यक कार्य आ जाने के कारण वे सम्मेलन में नहीं आ पाए। मुख्यमंत्री के नहीं पहुंच पाने को लेकर सेनानी परिवार से जुड़े लोगों के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं हुईं। उल्लेखनीय है कि देश आज़ाद होने के बाद अधिकांश स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कांग्रेस का हिस्सा हो गए थे। इस तरह कांग्रेस पार्टी के भीतर सेनानियों का हमेशा से ऊंचा स्थान रहा है। सेनानी परिवार कुछ महत्वपूर्ण एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रहा है। इनका ज्ञापन भी तैयार है, जिसे मुख्यमंत्री से लेकर कांग्रेस के अन्य दिग्गजों को सौंपने की तैयारी है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। आगे देखने लायक बात यह रहेगी प्रदेश सरकार की सेनानी परिवार के प्रति दृष्टि कितनी उदार रहती है। इधर, रायपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर घनश्याम सिंह की बेटी धनेश्वरी सिंह पिता की आश्रित पेंशन पाने के लिए कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते लगाते थक चुकी हैं। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का धनेश्वरी के पक्ष में स्पष्ट मत सामने आ जाने के बाद भी राज्य शासन की ओर से इस आश्रित पेंशन प्रकरण पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है।

सिविल लाइन में छत्तीसगढ़ी

फ़िल्म का होर्डिंग्स-पोस्टर

छत्तीसगढ़ी सिनेमा इस समय भारी उफान पर है। हफ्ते पंद्रह दिन में कोई न कोई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म रिलीज़ हुए जा रही है। हाल ही में ऐसा भी हुआ एक ही दिन दो छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘मोर मया ला राखे रहिबे’ और ‘कुरुक्षेत्र’ रिलीज़ हुई। प्रदेश में इस समय छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को लेकर जिस तरह हर तरफ से आवाज़ उठती आ रही है ऐसे में भला छत्तीसगढ़ी सिनेमा की आवाज़ भी कहां दबी रह जाने वाली है। मीडिया के सामने ‘मोर मया ला राखे रहिबे’ के प्रोड्यूसर व हीरो बॉबी खान यह कहने से नहीं चूके कि “छत्तीसगढ़ी सिनेमा के पोस्टर रायपुर के केवल राम नगर व लक्ष्मण नगर में ही क्यों, सिविल लाइन में क्यों नहीं! हमने तो अपने पोस्टर-होर्डिंग्स सिविल लाइन में लगाए हैं और तथाकथित अभिजात्य वर्ग के बीच संदेश देने की कोशिश की है कि आमिर खान, सलमान खान एवं शाहरुख़ खान की हिन्दी फ़िल्में देखते हैं तो यहां बॉबी खान की छत्तीसगढ़ी फ़िल्म भी देखें।“ समझने वाले लोग बॉबी की बातों के पीछे छिपे हुए मर्म को समझ गए होंगे। यहां यह बता दें कि रायपुर के सिविल लाइन में मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रीगण समेत बड़े आला अफ़सर व कई बड़े रईसों के बंगले हैं।

बार और टॉवेलधारी ज़ादूगर

बिलासपुर में एक अजब वाकया हुआ। एक युवक साउथ फ़िल्म वाली स्टाइल में लूंगी व शर्ट पहने एक बार में पहुंचा तो बाउंसरों ने उसको रोक दिया। बाउंसरों ने कहा लूंगी वाली ड्रेस किसी भी सूरत में यहां नहीं चलेगी। दूसरी तरफ लूंगीधारी व उसके साथ पहुंचे दोस्तों का कहना था इस ड्रेस में ऐसी कौन सी ख़राबी है, जो नहीं घुसने दोगे। बात बढ़ते-बढ़ते ख़ूब बढ़ गई। बाउंसर तो थे ही बार के मालिक भी वहां आ गए। बाउंसर के साथ मिलकर बार मालिक ने उन युवकों की पिटाई कर दी। मामला लात-घूंसों तक ही सीमित नहीं रहा डंडे भी चल गए। ज़्यादा घायल एक युवक को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पुलिस ने बार मालिक व बाउंसरों के खिलाफ़ ज़ुर्म कायम कर लिया है। यह सब बदलाव का दौर है। साज सज्जा से सुसज्जित हॉटल या बार में अब कपड़े लत्तों पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान दिया जाने लगा है। एक वह ज़माना था जब समाजवाद की सच्ची तस्वीर बार में भी दिख जाया करती थी। तब कपड़े या चेहरे के रंग मायने नहीं रखते थे। ग़रीबी-अमीरी का फ़र्क नहीं दिखा करता था। मधुशाला सब का मेल करा देती थी। वह भी बेहतरीन दौर ही था जब छत्तीसगढ़ राज्य नहीं बना था और न ही रायपुर राजधानी। आगे की दास्तान उसी दौर की है। रायपुर के हृदय स्थल कहलाने वाले जयस्तंभ चौक के पास एक सघन इलाक़ा है फूल चौक। फूल चौक में कभी सिटी हार्ट बार हुआ करता था। फूल चौक से क़रीब आधा किलोमीटर की दूरी पर तात्यापारा के पास एक चर्चित जादूगर रहा करते थे। थे तो वे सरकारी नौकर लेकिन जादूगरी उनका शौक हुआ करती थी। गर्मी के दिनों में कई बार ऐसा होता था कि शाम ढलते ही जादूगर सिर्फ़ भीतर की सफेद बानियान, टॉवेल और पैरों में स्लीपर पहने घर से निकल जाया करते थे। गोरे रंग पर गोल्डन फ्रेम वाला चमचमाता चश्मा उन टाबेलधारी जादूगर के व्यक्तित्व को और निखार देता था। घर से पैदल रेंगते हुए जादूगर सीधे सिटी हार्ट पहुंचा करते। वहां पहुंचने के बाद बस फिर क्या था, “जहां चार यार मिल जाएं वहीं रात हो गुलज़ार जहां चार यार…”

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