● कारवां (18 दिसंबर 2022)- गुजरात फार्मूला छत्तीसगढ़ में लागू हुआ तो…

■ अनिरुद्ध दुबे

गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अधिक से अधिक नये चेहरों को टिकट दिया। इसका फायदा भी देखने को मिला। ऐतिहासिक जीत मिली। अगले साल छत्तीसगढ़ समेत मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में चुनाव होना है। सुनने में यही आ रहा है कि भाजपा में सबसे ज़्यादा चिंतन मनन छत्तीसगढ़ को ही लेकर हो रहा है। 2018 के चुनाव में छत्तीसगढ़ में जो करारी हार मिली उसे ध्यान में रखते हुए भाजपा के शीर्ष नेताओं की सोच यही है कि इस बार टिकट वितरण में कहीं कोई चूक न हो। ख़बर यह भी है कि गुजरात फार्मूले को छत्तीसगढ़ में भी लागू करने पूरी गंभीरता के साथ विचार हो रहा है। यदि ऐसा होता है तो 2023 के चुनाव में भाजपा छत्तीसगढ़ की 90 में से 80 सीटों पर नये चेहरे उतार सकती है। गुजरात में जो बड़ा प्रयोग हुआ उससे छत्तीसगढ़ में लंबे समय तक सत्ता का स्वाद चख चुके कुछ भाजपा नेताओं की रातों की नींद हराम होने के किस्से उन्हीं के इर्द-गिर्द रहने वाले सुना रहे हैं। रायपुर के एक मूंह से फूल बरसाने वाले भाजपा नेता तो काफ़ी दिनों पहले अपना आलीशन बंगला छोड़कर पुरानी जगह पर रहने लगे चले गए हैं और इन दिनों सीधे सड़क की राजनीति करते हुए तूफान मचाए हुए हैं। यह सोचकर कि इस बार टिकट को लेकर कहीं दूसरे के नाम पर विचार न होने लगे। बड़े नाम वाले कुछ ऐसे भी भाजपा नेता हैं जिनके बेटों की इन दिनों जोरदार राजनीतिक ट्रेनिंग हो रही है। ये सोचकर कि अगर टिकट से अपन चूके भी तो कम से कम बेटे का नाम तो आगे किया जा सके। इसके अलावा सोची समझी रणनीति के तहत भाजपा छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के लिए किसी चेहरे को प्रोजेक्ट करने के मूड में बिलकुल नहीं है।

आरक्षण- आधी

अधूरी कहानी

आरक्षण के मुद्दे ने नया मोड़ ले लिया है। मानने वाले यह मानकर चल रहे थे कि 1 व 2 दिसंबर को विधानसभा के विशेष सत्र में आरक्षण विधेयक पारित हो जाने के बाद राज्यपाल के दस्तख़त होने में देर नहीं लगेगी, लेकिन इस समय कुछ अलग ही दृश्य सामने है। राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके की ओर से राज्य सरकार से दस सवालों पर जवाब मांगा गया है। राज्यपाल की ओर से सबसे बड़ा सवाल यह हुआ है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने क्वांटिफाइबल डाटा आयोग के गठन की बात कही थी। जब आयोग की रिपोर्ट शासन के पास थी तो वह राज भवन में प्रस्तुत क्यों नहीं की गई? महत्वपूर्ण बात यह है कि क्वांटिफाइबल डेटा को सामने रख पिछड़ा वर्ग की तरफ से भी सवाल पर सवाल खड़े होने लगे हैं। अखिल भारतीय कुर्मि महासभा के एक प्रतिनिधि मंडल ने राज्यपाल से मुलाक़ात कर कहा कि क्वांटिफाइबल डेटा आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में पिछड़ा वर्ग की आबादी 42.43 प्रतिशत है। ऐसे में पिछड़ा वर्ग को सिर्फ़ 27 प्रतिशत आरक्षण देना न्यायसंगत नहीं है। गौर करने लायक बात यह है कुर्मि महासभा का प्रतिनिधि मंडल जो राज्यपाल से मिला उसमें एक आईएएस एवं एक राज्य प्रशासनिक सेवा के बड़े अधिकारी भी शामिल थे। आईएएस जहां एक महत्वपूर्ण विभाग के प्रमुख सचिव हैं वहीं राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी किसी समय में रायपुर नगर निगम तथा उसके बाद कोरबा नगर निगम में बड़े पद पर रहे थे। जब दो बड़े आला अफ़सर आरक्षण के मुद्दे पर राज भवन की दहलीज़ तक पहुंच जाएं तो समझ लीजिए कि भीतर ही भीतर मामला कितना गरमाया हुआ है।

आई.पी.एल. मैच

की तरह बोलियां

वैसे तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की छवि संयमित भाषा बोलने वाले नेता के रूप में रही है लेकिन कभी-कभी वे सरकार पर तीखे शब्द बाण चलाते नज़र आ जाते हैं। इसका उन्हें कितना राजनीतिक फायदा मिलता होगा ये तो वे ही जानें लेकिन कांग्रेसी उन पर पलटवार करने से पीछे नहीं रहते। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के चार साल पूरे होने पर उसकी कमियां निकालते हुए डॉ. रमन सिंह मीडिया से बातचीत के दौरान कह गए कि आलम यह है कि पटवारी से लेकर कलेक्टर तक, थानेदार से लेकर एसपी तक के लिए आईपीएल मैच की तरह बोलियां लग रही हैं। डॉ. रमन यह कहने से भी नहीं चूके कि जहां डीएम फंड ज्यादा होता है वहां अफ़सरों की निगाहें जमी होती हैं। डॉ. रमन सिंह के इस कथन के कुछ ही देर बाद कांग्रेस संचार विभाग के चेयरमेन सुशील आनंद शुक्ला ने पलटवार करते हुए कहा कि आईपीएल की बोलियों का हिसाब रखने वाले पहले यह तो बता दें कि नॉन घोटाला व पनामा पेपर के पीछे की कहानी क्या है।

हरि इच्छा पूर्ण, शिशुपाल

पर्वत बनेगा पर्यटन स्थल

पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के तहत जब सरायपाली ब्लॉक के ग्राम बलौदा पहुंचे तो वहां मंच से शिशुपाल पर्वत को पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की। शिशुपाल पर्वत सरायपाली से लगभग 26 किलोमीटर दूर पर स्थित है। इस खूबसूरत पहाड़ी को बूढ़ा डोंगर भी कहा जाता है। शिशुपाल पर्वत को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग डॉ. हरिदास भारव्दाज ने विधानसभा में तब उठाई थी जब वे 2008-2013 वाले दौर में कांग्रेस विधायक थे। वक़्त लगा। उस समय की मांग अब जाकर कांग्रेस के शासनकाल में पूरी हुई। ये अलग बात है कि लंबे समय तक कांग्रेस में रहकर राजनीति किये डॉ. हरिदास भारव्दाज वर्तमान में जोगी कांग्रेस में हैं।

राजधानी का धरना

स्थल जहां का तहां

साल भर का समय निकल गया और रायपुर जिला प्रशासन धरना स्थल को अन्यत्र शिफ्ट नहीं कर पाया। जब रायपुर कलेक्टर सौरभ कुमार थे उन्होंने नया रायपुर के राज्योत्सव मैदान के पास धरना स्थल शिफ्ट करवाने एड़ी चोटी एक कर दी थी। बीच में राजनीति घुस आई और सौरभ कुमार की ओर से किया गया एक बेहतर प्रयास मूर्त रूप नहीं ले पाया। बूढ़ापारा में आए दिन धरना प्रदर्शन का दौर जारी है। धरना प्रदर्शन का सबसे बूरा असर बूढ़ापारा एवं सदर बाज़ार के व्यवसाय पर पड़ता है। यहां के क़ारोबारियों की तरफ से एक बार फिर धरना स्थल को दूसरी जगह को शिफ्ट करने को लेकर आवाज़ उठनी शुरु हो गई है।

सीए ज़रूरी या गैर ज़रूरी

रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) में एक चार्टर्ड एकाउंटेंट को उसकी सेवाओं के बदले में 72 लाख रुपये साल का भुगतान किया जा रहा है, यानी 6 लाख रूपये महीना। इस पर आरडीए से जुड़े हुए लोगों की ही राय बंटी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि आरडीए पर करोड़ों का कर्ज़ है। ऐसे में भला सीए को 72 लाख रुपये सालाना दिया जाना आरडीए को बड़ी वित्तीय चोट पहुंचाने जैसा है। वहीं कुछ अन्य लोगों की राय है कि सीए व्दारा रखे गए आठ से दस लोग नियमित रूप से आरडीए में लेखा जोखा का काम संभाले हुए हैं। ऐसे में सीए को बड़ी रकम का भुगतान करना तो बनता है।

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