● कारवां (10 सितंबर 2023)- आरोप पत्र तो अभी की बात, कभी घोषणा पत्र भी हो गया था लीक

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ में भाजपा का आरोप पत्र विधिवत तरीके से जारी होने से पहले ही जिस तरह कांग्रेस नेताओं की निगाहों में आ गया उस पर चर्चा का दौर अब तक थमा नहीं है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह जिस समय राजधानी रायपुर में आरोप पत्र जारी कर रहे थे उसी विषय को लेकर राजीव भवन में कांग्रेस नेताओं की प्रेस कांफ्रेंस चल रही थी। मीडिया से जुड़े कुछ लोग कांग्रेस नेताओं को उलाहना देते नज़र आए कि इतनी भी क्या ज़ल्दी थी। आरोप पत्र जारी हो जाने देते फिर उसके कुछ देर बाद प्रेस कांफ्रेंस कर लेते। कांग्रेस नेताओं की तरफ से यही ज़वाब आया कि आरोप पत्र तो जारी होने से कई घंटे पहले हमारे मोबाइल में आ चुका था। उसके बाद ही हमने प्रेस कांफ्रेस ली। मीडिया व भाजपा से जुड़े लोगों ने जब गहराई में जाकर वस्तुस्थिति का पता लगाने की कोशिश कि तो मालूम हुआ कि आरोप पत्र के लिए आयोजित कार्यक्रम को लेकर जो पास बांटे गए थे उसमें क्यूआर कोड दिया गया था। इस क्यूआर कोड को आरोप पत्र जारी होने तक लॉक करके रखना था। दिल्ली की जिस कंपनी ने क्यूआर कोड बनाया था वह चूक गई। आरोप पत्र जारी होने वाले दिन सुबह से ही क्यूआर कोड ओपन हो गया। यही कारण है कि आरोप पत्र सुबह ही कांग्रेस के लोगों की निगाहों में आ गया था, जिसे आधार बनाकर निशाना साधते हुए प्रेस कांफ्रेंस कर ली गई। किसी भी पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र एवं आरोप पत्र बेहद गोपनीय माना जाता है। कार्यक्रम की तारीख़ व समय निर्धारित कर लेने के बाद ही इसे जनता के सामने लाया जाता है। बात 2008 के विधानसभा चुनाव के समय की है तब न तो स्मार्ट मोबाइल फोन जैसी कोई चीज थी और न ही क्यूआर कोड जैसी टेक्नालॉजी क्रांति हुई थी। 2008 के उस चुनाव में कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी होने से एक दिन पहले ही रायपुर के एक सांध्यकालीन अख़बार में शब्दशः प्रकाशित हो गया था। घोषणा पत्र प्रकाशित हो जाने को लेकर तब प्रदेश कांग्रेस संगठन के भीतर व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी।

कांग्रेस हो या भाजपा…

अभी तक तो किसी

को नहीं फला नया रायपुर

नया रायपुर… अभी तक की स्थिति में तो मुर्दा शहर… नया रायपुर की बात होती है तो बहुत से लोग गुजरात के गांधी नगर का उदाहरण सामने रख देते हैं, जिसे आबाद होने में शायद बरसों लग गए हों। 19 साल पहले नया रायपुर बसना शुरु हुआ था। आज तक कहां ख़ूबसूरत शक्ल ले पाया? सिवाय कांक्रीट के जंगल और चौड़ी सड़कों के अलावा वहां है क्या? कहने को मंत्रालय व संचालनालय, जंगल सफारी, झील, कुछ अस्पताल एवं कुछ बड़े शिक्षण संस्थान वहां ज़रूर हैं। तो क्या इतने में मान लिया जाए कि एक भरे-पूरे सर्वसुविधायुक्त शहर की परिकल्पना साकार हो गई? नया रायपुर के नाम पर किस चीज़ का दंभ! यदि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने पुराने रायपुर के थोड़ा क़रीब से नया रायपुर बसाने की शुरुआत की होती तो शायद कुछ बड़ी उपलब्धियां उसके खाते में दर्ज हो चुकी होतीं। लेकिन उसने तो कोसों दूर जाकर नया रायपुर बसाने का काम किया। समय का पहिया कभी रुकता नहीं। हो सकता है आगे इस मनहूस शहर का सन्नाटा टूटे। कोई नया इतिहास बने। अभी तक के तो पिछले सारे पन्ने किसी उदास कविता की तरह मालूम होते हैं। इसी नया रायपुर में कभी तत्कालीन भाजपा सरकार ने राष्ट्रीय स्तर का ‘इन्वेस्टर मीट’ आयोजित किया था। उससे क्या हासिल हुआ… कुछ नहीं। उसके बाद उसी नया रायपुर में राष्ट्रीय स्तर का ‘साहित्य महोत्सव’ हुआ था, जिसमें देश की ख्यातिनाम हस्तियां आई थीं, क्या वह अवसर यादगार बन पाया… शायद नहीं। सरकार बदली, कांग्रेस के हाथों सत्ता की बागडोर आई। कांग्रेस सरकार को भी इस बेजान शहर ने कड़वे अनुभव ही दिए। वहां किसानों का ज़मीन को लेकर आंदोलन हुआ, जो कि काफ़ी लंबा चला। उसके बाद हाल ही में नया रायपुर में एक बड़ी सभा होने के बाद दूषित खाना खाकर 20 से ऊपर गायों की जान चले जाने की ख़बर है। चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, दोनों तरफ के नेताओं को निश्चित रूप से इस घटना से दुख हुआ होगा। विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत का सपना था कि उनके कार्यकाल में नया रायपुर में नया विधानसभा भवन बन जाए। महंत जी चाहते थे कि आख़री का यानी 2023 का बजट या मानसून में से कोई एक सत्र नया विधानसभा भवन में हो जाए। महंत जी का यह सपना पूरा नहीं हो पाया। अभी की स्थिति में तो विधानसभा भवन का काम आधा ही हो पाया है। बताते हैं 2025 में ही नया विधानसभा भवन बनकर तैयार हो पाएगा। संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत कोशिश में लगे रहे थे कि नया रायपुर में फ़िल्म सिटी बने, लेकिन इस काम के लिए ज़मीन तक नसीब नहीं हुई। इस तरह और भी कुछ बड़े नेताओं ने नया रायपुर को लेकर बड़े सपने देखे रखे थे जो कि पूरे नहीं हुए। बताते हैं नया रायपुर में मुख्यमंत्री निवास एवं अन्य मंत्रियों के बंगलों का निर्माण अंतिम चरण में है। यदि विधानसभा चुनाव की तारीख़ की घोषणा होने से पहले नये सीएम हाउस में कथा-पूजा हो जाए तो बड़ी बात होगी। चर्चा तो यह भी है कि चुनाव तारीख़ की घोषणा होने से पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नया रायपुर में प्रस्तावित होलसेल कॉरीडोर मार्केट एवं माना एयरपोर्ट के पास बनने वाली एयरो सिटी का भूमि पूजन कर देंगे। यदि ऐसा हुआ तो नया रायपुर में जान फूंकने की दिशा में यह बड़ा कदम होगा।

टिकट और टिफिन

न जाने कितने ही सालों से यह जुमला चले आ रहा है कि कांग्रेस की टिकट और मौत का कोई भरोसा नहीं। किसी का सारा जीवन संघर्ष करते बीत जाता है और उसे टिकट नहीं मिलती तो कोई ऐसा सौभाग्य़शाली भी होता है जिसके दरवाज़े पर चलकर टिकट आ जाती है। कुछ नेताओं की टिकट के लिए पूरे पांच साल तैयारी चलती है तो किसी की साल-दो साल। कभी मीडिया के सामने धाराप्रवाह बोलने में अग्रणी रहे कांग्रेस के एक नेता विधानसभा की एक सामान्य सीट से टिकट के लिए संघर्ष करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रख रहे हैं। पिछले कुछ महीनों से उनका रूटीन रहा है कि कार में टिफिन व पानी की बॉटल रखकर सुबह घर से निकलते हैं और दूरदराज़ क्षेत्रों में जनसम्पर्क कर लेने के बाद सीधे रात को घर पहुंचते हैं। वे टिकट के लिए प्रयासरत तो 2013 एवं 2018 में भी थे लेकिन सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाया था। इस बार का उनका प्रयास कितना जोर मारता है वह आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा।

क्या प्रमोद शर्मा

कांग्रेस में लौटेंगे?

2018 के चुनाव में जोगी कांग्रेस (जनता कांग्रेस) से पांच विधायक अजीत जोगी, श्रीमती रेणु जोगी, धर्मजीत सिंह, देवव्रत सिंह एवं प्रमोद शर्मा जीतकर आए थे। अजीत जोगी एवं देवव्रत सिंह का निधन हो गया। धर्मजीत सिंह भाजपा में जा चुके हैं और उनको तखतपुर से टिकट मिलने की भी चर्चा है। अब बचे प्रमोद शर्मा। सूत्र तो यही बताते हैं कि बलौदाबाजार विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे प्रमोद शर्मा भी भाजपा में जाने का मन बना चुके थे। वे इस शर्त पर भाजपा में जाना चाह रहे थे कि उन्हें बलौदाबाज़ार से टिकट की गारंटी मिले। शर्मा की यह मंशा सामने आने पर भाजपा के दिल्ली से आए दिग्गज ने कहा कि “पहले पार्टी ज्वाइन कर लो फिर देखते हैं।“ राजनीति में “देखते हैं” जैसे ज़वाब से भला कहां काम चलता है। बलौदाबाज़ार की राजनीति से गहरा वास्ता रखने वाले यही बता रहे हैं कि प्रमोद के पास अब कोई अन्य विकल्प शेष नहीं है और चुनाव से पहले वे अपने पुराने घर यानी कांग्रेस (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) में लौट सकते हैं।

अफ़सरों को भी भीड़

लाने का टारगेट

पिछले दिनों राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय कद के एक नेता की सभा थी। रायपुर की ही एक स्वायत्तशासी संस्था के दस अफ़सरों को टारगेट दे दिया गया कि ढाई-ढाई हज़ार की भीड़ लेकर सभा स्थल पर पहुंचना है। यानी पच्चीस हज़ार का टारगेट। साथ ही सभा से ही संबंधित कुछ और व्यवस्थाओं की भी ज़िम्मेदारी इन अफ़सरों के कंधों पर थी। अन्य व्यवस्थाएं करने में तो कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन ढाई-ढाई हज़ार लोगों को लाने का जो लक्ष्य मिला था उससे अफ़सरों के पसीने छूट गए। स्वायत्तशासी संस्था के गलियारे में चहलकदमी करते रहने वालों का कहना था कि “ऐसा भीड़ जुटाने का टारगेट पूर्व के लोगों के समय तो नहीं मिला करता था। यहां तो अफ़सरों की स्थिति ग़रीब की लुगाई की तरह हो गई है।“

आरडीए के लोगों

का अध्ययन दौरा

आरडीए (रायपुर विकास प्राधिकरण) की एक टीम एक सप्ताह के लिए केरल दौरे पर गई थी। दौरे पर गए लोगों में आरडीए उपाध्यक्ष शिव सिंह ठाकुर समेत संचालक मंडल के सदस्य  पप्पू बंजारे, हिरेन्द्र देवांगन, मुकेश साहू, चंद्रवती साहू एवं ममता राय थीं। अधिकारियों में तेजपाल सिंग हंसपाल एवं कीर्ति कैमरो। इससे पहले इन एक उपाध्यक्ष एवं संचालक मंडल के सदस्यों की टीम अध्ययन के लिए इंदौर दौरे पर भी गई थी। इंदौर एवं केरल इन दोनों ही दौरे पर राविप्रा अध्यक्ष सुभाष धुप्पड़ एवं एक अन्य उपाध्यक्ष सूर्यमणि मिश्रा नहीं गए। धुप्पड़ की अपनी दुनिया बड़ी है और मिश्रा का इस तरह के दौरों पर विश्वास नहीं। मिश्रा खुलकर कहते आए हैं कि “इन दौरों से क्या हो जाना है। काम करने वाला अपने जीवन के अनुभवों से किसी भी संस्था में अपना परफार्मेंस दिखा सकता है।“ बहरहाल अंदर की ख़बर यही है कि इस केरल दौरे से जुड़ी हवाई यात्रा तथा आलीशान हॉटल में ठहरने के लिए क़रीब साढ़े चार लाख सेंक्शन हुआ है। अक्टूबर लगते ही विधानसभा चुनाव को लेकर आचार संहिता लग जाने की संभावना है। यानी आचार संहिता लगते ही कहानी ख़त्म। फिर इस अध्ययन दौरे का आरडीए को क्या लाभ मिलेगा यह तो दौरे पर गए लोग ही बता पाएंगे। इससे पहले इंदौर का जो दौरा हुआ था उस पर किसी की भी तरफ से अध्ययन रिपोर्ट आज तक प्रस्तुत नहीं होने की कहानी सामने आती रही है। इस तरह का अध्ययन आरडीए के काम आए या न आए व्यक्तिगत जीवन में तो आ ही रहा है।

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