…… और मैं ‘तही मोर सोना’ की प्रोड्यूसर बन गई- सृष्टि अग्रवाल

मिसाल न्यूज़

छत्तीसगढ़ी फ़िल्में प्रोड्यूस करने में अब नारी शक्ति भी पीछे नहीं। प्रोड्यूसर सृष्टि अग्रवाल की छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘तही मोर सोना’ 6 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के सिनेमाघरों में रिलीज़ होने जा रही है। सृष्टि बताती हैं- “तही मोर सोना अपने आप में नया एक्सपेरिमेंट है। इसमें प्यार, रोमांस व सस्पेंस सब कुछ है।“

‘मिसाल न्यूज़’ से बातचीत के दौरान सृष्टि ने बताया कि “फ़िल्म प्रोडक्शन की तरफ मैंने सोचा भी नहीं था। मैं तो दिल्ली में मीडिया एंड ब्राड कॉस्ट कंपनी में जॉब कर रही थी। बलौदाबाजार में मेरा रहना होता है। वो कहते हैं न कुछ चीजें ऊपर वाला आपके लिए पहले से तय करके रख देता है। वैसा ही कुछ हुआ। असल में हीरो संजय साहू ने इस फ़िल्म की प्लानिंग पहले ही कर ली थी और शूट भी शुरु हो चुका था। मेरे घर में फ़िल्म के कुछ दृश्य फ़िल्माए जा रहे थे। शूट के सारे प्रोसेस मैं देर तक देखती रही और लगा कि क्यों न मैं भी फ़िल्म का पार्ट बनूं। इस फ़िल्म से जुड़े प्रमुख लोगों से मैंने बातचीत की और उन सभी ने उत्साह दिखाया। इस तरह बन गई प्रोड्यूसर। प्रोड्यूसर बनने से पहले मैंने फ़िल्म की पूरी कहानी सुनी। यह जानने की कोशिश की कि यह किसी और फ़िल्म की कॉपी तो नहीं है। कहानी सुनने के बाद यकीन हो गया कि ऐसा सब्जेक्ट छत्तीसगढ़ी सिनेमा में पहली बार आ रहा है। फ़िल्म की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी दर्शकों के मन में बार-बार सवाल उभरेगा कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? सस्पेंस पर पूरा जोर है। नायक संजय साहू एवं नायिका सोनाली सहारे ने अपने रोल के साथ पूरा न्याय किया है। सारे करैक्टर आर्टिस्ट भी अपना काम बखूबी किए हैं। एक गाना “ले जा ले जा ना मोर नवाब…” कमाल का बन पड़ा है। भाई-बहन पर एक गीत फ़िल्माया गया है जो कि दिल को छू जाएगा।“

आजकल प्रमोशन पर काफ़ी जोर दिया जाने लगा है आपकी क्या तैयारी रही, इस सवाल पर सृष्टि कहती हैं- “हम ऐसे कई स्थानों पर गए जहां छत्तीसगढ़ी भाषा का जोर है। कितने ही स्कूल-कॉलेज में गए। आज के दौर में किसी भी फ़िल्म की सफलता के पीछे यूथ का बहुत बड़ा हाथ होता है।“

आप छत्तीसगढ़ी सिनेमा का हिस्सा हो चुकी हैं, क्या आगे भी फ़िल्म बनाएंगी, यह पूछने पर सृष्टि कहती हैं- “बिलकुल बनाना चाहूंगी। छत्तीसगढ़ में फ़िल्म बनाने के लिए मुद्दों की कमी नहीं है। ये भी सच है कि मुद्दों को केवल गंभीरता से पर्दे पर उतार देने से भी काम नहीं चलेगा। भले ही विषय गंभीर हो लेकिन कोई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म तभी चल पाएगी जब उसमें मनोरंजन का तड़का लगे रहे।“

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *