● कारवां (5 नवम्बर 2023)- घोषणा पत्र और अलग मूड में अमित शाह

■ अनिरुद्ध दुबे

पिछली बार के विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी भाजपा का घोषणा पत्र अमित शाह ने जारी किया। पिछली बार जब उन्होंने जारी किया था भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। इस बार जारी करने आए तो केन्द्रीय गृह मंत्री पद पर आसीन हैं। पिछली बार व इस बार की परिस्थितियों में काफ़ी अंतर दिखा। पिछली बार के चुनाव के समय में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी, इस बार कांग्रेस की सरकार है। पिछली बार घोषणा पत्र राजधानी रायपुर एक आलीशान हॉटल में जारी हुआ था, इस बार भाजपा प्रदेश कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर के हॉल में हुआ। पिछली बार शाह ने घोषणा पत्र जारी होने पर मंच से केवल अपना संबोधन दिया था और संबोधन के बाद पत्रकारों के सवालों से बचते हुए केवल उनका परिचय लेकर रवाना हो गए थे। इस बार घोषणा पत्र जारी होने के बाद वे न केवल अपना संबोधन दिए बल्कि पत्रकारों के सवालों के ज़वाब भी दिए।

बड़ा, मोटा के बाद
अब छोटा भाई

पहले की भाजपा में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, बिहार समेत अन्य राज्यों के कई बड़े नेता राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा करते थे। अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण अडवानी, कुशाभाऊ ठाकरे, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, राजमाता विजयराजे सिंधिया, प्रमोद महाजन, गोविंदाचार्य, वेंकैया नायडू, सुषमा स्वराज, उमा भारती, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेता उस दौर में ख़बरों में बने रहा करते थे। अब मोदी जी और शाह जी का युग है। भाजपा के लोग इन दो नामों पर भारी गर्व महसूस करते हैं। इन दिनों चुनावी ज़िम्मेदारी सम्हालने के लिए बाहर से छत्तीसगढ़ पहुंचे एक नेता जो अपनी बातों को प्रखर तरीके से रखने में सिद्धहस्त हैं, बड़े गर्व के साथ कहते नज़र आए कि “जब गुजरात का जादू चलता है अच्छे-अच्छे किनारे लग जाते हैं। हमारे पास बड़ा भाई (मोदी) पहले से ही था। फिर मोटा भाई (शाह) तैयार हुआ। अब छोटा भाई (मनसुख मांडविया) तैयार हो रहा है। ये तीनों हवा में उड़ने वाले अच्छे-अच्छे लोगों की अक्ल ठिकाने पर लगा देते हैं।”

गजनी और जय-वीरू

विधानसभा चुनाव के इस दौर में छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में फ़िल्मी किरदारों के नाम की जमकर चर्चा है। छत्तीसगढ़ में जहां महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने कटाक्ष करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तूलना ‘गजनी’ फ़िल्म के चरित्र आमीर खान से कर दी, वहीं मध्यप्रदेश में कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तारीफ़ों के पूल बांधते हुए कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह को ‘शोले’ फ़िल्म के किरदार जय-वीरू की जोड़ी करार दिया। मध्यप्रदेश में अब राजनीति के मैदान में मज़ाकिया लहज़े में सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि “कमलनाथ व दिग्विजय सिंह जय-वीरू हैं तो फिर ठाकुर और बसंती कौन है?” मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तंज कसा कि “जय और वीरू लूटे गए माल के बंटवारे पर लड़ रहे हैं।“ बात छत्तीसगढ़ की करें, जय-वीरू नाम तो यहां भी ख़ूब चला था। टी.एस. सिंहदेव को जय व भूपेश बघेल को वीरू कहा जाता रहा था।

अयोध्या दर्शन

भाजपा ने छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए जो घोषणा पत्र जारी किया, उसमें 20 वें बिन्दू में वादा है हम प्रदेशवासियों को श्री राम लला के दर्शन कराने अयोध्या लेकर जाएंगे। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह घोषणा पत्र जारी करने के बाद मीडिया के सामने जब अपना संबोधन दिए इस बिन्दू पर विशेष जोर देते नज़र आए। माना जाता है कि छत्तीसगढ़ की जनसंख्या 3 करोड़ से ऊपर हो चुकी है। जिज्ञासु लोगों के मन में यह सवाल है कि यदि कभी अयोध्या ले जाने की स्थिति बनी तो इतने सारे प्रदेशवासियों को ले जाएंगे तो कैसे ले जाएंगे?

इन्वेस्ट छत्तीसगढ़

भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया गया है कि हम इन्वेस्ट इंडिया के तर्ज पर इन्वेस्ट छत्तीसगढ़ आयोजित करेंगे और वार्षिक वैश्विक स्तरीय सम्मेलन कर देशी व विदेशी कंपनियों से निवेश आमंत्रित करेंगे। यहां यह बता दें कि छत्तीसगढ़ में जब भाजपा की सरकार थी नया रायपुर में करोड़ों खर्च कर इन्वेस्टर मीट का आयोजन किया गया था। उस मीट में विदेश तो दूर देश के उद्योग जगत के बड़े चेहरों ने हिस्सा लेना मुनासिब नहीं समझा था।

बागी होकर अजीत
कुकरेजा ने चुकाई
निष्कासन की कीमत

अजीत कुकरेजा निर्दलीय ही रायपुर उत्तर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में कूद पड़े। वे पढ़े-लिखे हैं। रायपुर नगर निगम में न सिर्फ़ पार्षद हैं बल्कि वहां की मेयर इन कौंसिल के सदस्य भी हैं। यूं तो अजीत कुकरेजा 2018 के चुनाव में भी रायपुर उत्तर सीट से कांग्रेस टिकट की दौड़ में थे लेकिन टिकट मिली थी कुलदीप जुनेजा को। जुनेजा वह चुनाव जीते भी थे। इस बार के विधानसभा चुनाव में फिर अजीत रायपुर उत्तर से कांग्रेस टिकट के लिए जोर लगाए हुए थे, लेकिन इस बार भी कुलदीप जुनेजा टिकट हासिल करने में कामयाब रहे। अजीत का धैर्य ज़वाब दे गया और वे निर्दलीय ही चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं। राजनीतिक जगत में जो चर्चाएं होती रहीं हैं उससे तो यही लगता रहा है कि अजीत की न कभी कुलदीप जुनेजा से बनी और न ही महापौर एजाज़ ढेबर से। 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने पर अजीत 2019 में कांग्रेस की टिकट पर पार्षद चुनाव लड़े और महापौर बनने जोर लगाए हुए थे, लेकिन इस पद पर विराजमान होना तो एजाज़ ढेबर के माथे पर लिखा हुआ था। ढेबर से अजीत को किस तरह तकलीफ़ रही इसका उदाहरण तब देखने में आया था जब तेलीबांधा तालाब के पास मावली माता मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर कार्यक्रम आयोजित था। उस कार्यक्रम में विधायक कुलदीप जुनेजा, महापौर एजाज़ ढेबर एवं नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे के साथ मंच पर अजीत भी मौजूद थे। जब अजीत के बोलने की बारी आई तो अपने संबोधन की पहली लाइन में उन्होंने यही कहा था “मंच पर उपस्थित महापौर प्रमोद दुबे।“ यह सुनकर ढेबर के चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित भाव था कि आख़िर यह हो क्या रहा है! ढेबर और अजीत के बीच जो खींचतान रही उसकी यह एक मिसाल थी। बहरहाल अजीत ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरकर बड़ा जोखिम उठा लिया है। वे कांग्रेस से निष्कासित हो चुके हैं।

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