(मशहूर डायरेक्टर सतीश जैन की कालजयी फ़िल्म ‘मोर छंइहा भुंईया’ एक बार फिर 24 मई को दर्शकों के सामने आ रही है। नये कलेवर में। अक्टूबर 2000 में जब ‘छंइहा भुंईया’ ओल्ड प्रदर्शित हुई थी, रूपहले पर्दे पर सादगी भरे एक चेहरे पर हर किसी का ध्यान गया था, वह करैक्टर सुधा का था, जिसे निभाया था पूनम नकवी ने। नई ‘छंइहा भुंईया’ में सुधा के किरदार में दीक्षा जायसवाल नज़र आएंगी। नई ‘छंइहा भुंईया’ के पर्दे पर आने से पहले सोचा पुरानी से जुड़ी कुछ यादों को ताजा कर लिया जाए। इसी कड़ी में पूनम नकवी का वह यादगार इंटरव्यू यहां प्रस्तुत है जिसे मैंने सांध्य दैनिक ‘हाईवे चैनल’ के लिए लिया था, जिसका प्रकाशन 11 दिसंबर 2000 को हुआ था। पढ़ने वाले प्रिय मित्रों को बता दें पूनम इस समय राजधानी रायपुर में निवासरत् हैं। अपने पति शमीम एवं चार बच्चों महक, मुस्कान, मेंहदी और मीरान के साथ खुशहाल ज़िंदगी जी रही हैं…)
‘मोर छंइहा भुंईया’ की भारी
सफलता ने सबको हैरान
किया है- पूनम नकवी
■ अनिरुद्ध दुबे
पूनम नकवी। ‘मोर छंइहा भुंईया’ की सुधा। इस फ़िल्म को देखने के बाद काफ़ी लोगों ने पूनम को जाना है। इसके पहले तक तो पूनम का वास्ता सिर्फ छोटे पर्दे से रहा था। ‘मोर छंइहा भुंईया की सफलता से पूनम अभिभूत हैं। उनका कहना है कि “इस फ़िल्म की ताबड़तोड़ सफलता से यह साबित हो गया है कि आगे छत्तीसगढ़ी फ़िल्मों का काफ़ी स्कोप है।“ पूनम कहती हैं- “आगे चाहे छत्तीसगढ़ी फ़िल्मों का प्रस्ताव आए या हिन्दी फ़िल्मों का, रुकना नहीं है। मेरी यही दिली तमन्ना है कि छत्तीसगढ़ के कलाकारों का जादू अब बड़े पर्दे पर भी छा जाए।“
पूनम जब स्कूल में थीं तो छोटे- मोटे कार्यक्रमों में भाग लेने तक ही सीमित थीं। वीडियो फ़िल्मों में काम करने वाले शख़्स रमेश निब्रड (रामा) ने महसूस किया कि यह लड़की एक्टिंग में कुछ कमाल दिखा सकती है। उन्होंने ही पूनम को अभिनय के लिया प्रोत्साहित किया। फिर तो जैसे पूनम के लिए रास्ते खुलते चले गए। लोक कलाकार शीतल शर्मा ने उन्हें स्टेज पर आने का मौका दिया। क्षमानिधि मिश्रा, पूनम को दूरदर्शन तक ले जाने का माध्यम बने और लेखक एवं निर्देशक सतीश जैन ने ‘मोर छंइहा भुंइया’ में नायक उदय (शेखर सोनी) की प्रेमिका के रोल में चुनकर पूनम की लोकप्रियता में चार चांद ही लगा दिए।
“मोर छंइहा भुंईया करने का अनुभव ऐसा दिलचस्प रहा कि उसे मैं ज़िन्दगी भर भुला नहीं पाउंगी” – पूनम कहती हैं। वह कहती हैं- “टेली फ़िल्म ‘मायाजाल’ में मैंने और ‘मोर छंइहा भुंईया’ के खलनायक मनमोहन ठाकुर ने साथ काम किया था। मनमोहन जी ने ही मुझे सतीश जैन जी से मिलवाया। सतीश जी से जब मैं पहली बार मिली थी तब उन्होंने कहा था कि इस फ़िल्म में यदि आपके लिए रोल निकलेगा तो ज़रूर याद करेंगे। एक शाम घर में सतीश जी का फोन आया। उन्होंने कहा कि ‘सूटकेस तैयार करके रख लो। बस थोड़ी देर में शूटिंग के लिए भिलाई निकलना है।‘ मुझे उस समय सुखद आश्चर्य हो रहा था। अपने आप पर यक़ीन नहीं कर पा रही थी कि मैं इस फ़िल्म के लिए चुन ली गई हूं। बहरहाल भिलाई के अलावा कुछ और स्थानों पर ‘मोर छंइहा भुंईया’ की शूटिंग हुई और सतीश जी के छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माण के इस पहले प्रयास के साथ जो सफलता की एक लम्बी कहानी बनते जा रही है उसके बारे में विस्तार से कहने की कम से कम मुझे ज़रूरत नहीं है।“ ‘मोर छंइहा भुंईया’ के लिए जब आप पहली बार किसी फ़ीचर फिल्म के लिए कैमरा फेस कर रही थीं तब का अनुभव कैसा रहा? इस सवाल पर पूनम कहती हैं- “पूर्व में ‘मायाजाल’, ‘प्रकृति की गोद में’, ‘धरती नई नया आकाश’, ‘आंचल’ एवं ‘सपने हुए अपने’ टेली फिल्मों में अभिनय कर चुकी थी। इसके अलावा ‘नई सुबह’ नाम का वृत्त चित्र मेरे स्वयं के निर्देशन में तैयार हुआ है। इन्हीं कुछ छोटे-बड़े अनुभवों से जुड़े होने से बड़ी फ़िल्म के लिए कैमरा फेस करते समय किसी तरह की दिक्कत आड़े नहीं आई। फिर सतीश जी शांत प्रकृति के व्यक्ति हैं। उन्हें कलाकारों से बिना तनाव के काम निकलवाना आता है। ‘मोर छंइहा भुंईया’ के निर्माण के दौरान सतीश जी ने बिलकुल परिवार के जैसा माहौल बनाकर रखा था। ‘मोर छइंहा भुईया’ को आज सुपर-डुपर हिट फ़िल्म कहा जा रहा है, ऐसा कुछ जब आप सुनती हैं तो कैसा लगता है? पूनम कहती हैं- जब ‘छंइहा भुंईया’ का निर्माण हो रहा था तब लगता तो था कि यह सफल हो जाएगी लेकिन आज जैसा कि इस फ़िल्म को देखने के लिए लोग टूट पड़े हैं वह अपने-आप में आश्चर्यजनक है। आगे किसी और छत्तीसगढ़ी फ़िल्म, या फिर हिन्दी फ़िल्म का प्रस्ताव मिला तो क्या आप उसे स्वीकार करेंगी? इस पर उनका कहना है- “कलाकार की कोई सीमा नहीं होती। आगे चाहे छत्तीसगढ़ी हो या हिन्दी फ़िल्म- अच्छे रोल का प्रस्ताव मिला तो बेशक उसे स्वीकार करूंगी।“ ‘मोर छंइहा भुंईया’ में परदे पर चेहरा तो आपका नज़र आया है लेकिन आवाज़ किसी दूसरे की है। कहने का मतलब यह कि आपके हिस्से की डबिंग किसी दूसरे से कराई गई है, यह ज़िक्र करने पर पूनम इतना ही कहती हैं- “नो कमेन्ट्स।“ ‘मोर छंइहा भुंईया’ के उज्जवल पक्ष को संक्षेप में सामने रखने के लिए कहा जाए तो उसे आप किस तरह वर्णित करेंगी? इस प्रश्न पर पूनम कहती हैं कि “इस फ़िल्म में हर आदमी को अपने जीवन का कोई न कोई हिस्सा जरूर नज़र आएगा।“