मिसाल न्यूज़
रायपुर। कांग्रेस नेता एवं मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा ने कहा कि कांग्रेस शुरु से कहती रही है कि झीरम घाटी नक्सली हमले के पीछे कोई बड़ा षड़यंत्र था। छत्तीसगढ़ पुलिस ने इस षड़यंत्र की जांच शुरु की तो एनआईए (राष्ट्रीय जांच समिति) ने अदालती अड़ंगा अटका दिया था। सबसे पहले एनआईए ट्रायल कोर्ट में गई। वहां उसकी याचिका खारिज हुई तो हाईकोर्ट गई। हाई कोर्ट में याचिका खारिज हुई तो सुप्रीम कोर्ट गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी आज याचिका खारिज कर दी है और छत्तीसगढ़ पुलिस को जांच की स्वतंत्रता प्रदान की है। कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले का स्वागत करती है। झीरम हमले में शहीद हुए लोगों के परिवारों के न्याय का रास्ता अब खुल चुका है।
राजीव भवन में आज पत्रकार वार्ता में विनोद वर्मा ने कहा कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर कथित नक्सली हमला हुआ था। इस हमले में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, बस्तर टाइगर कहे जाने वाले महेंद्र कर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व विधायक उदय मुदलियार सहित कुल 32 लोग शहीद हुए थे। यह लोकतंत्र के इतिहास का सबसे बड़ा राजनीतिक हत्याकांड था।एनआईए ने इस घटना की जांच की थी। एजेंसी यह जांच नहीं कर पाई कि इस हत्याकांड का षड़यंत्र किसने रचा था। यह सिर्फ़ नक्सली हमला था या इसके पीछे राजनीतिक षड्यंत्र भी था? हम मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आज आए फ़ैसले के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस 26 मई 2020 को दर्ज दूसरे एफ़आईआर के आधार पर यह जांच कर पाएगी कि किसके कहने पर, किसे बचाने के लिए केंद्र सरकार की एजेंसी एनआईए जांच का रास्ता रोक रही थी? हमारा सवाल है कि तत्कालीन भाजपा सरकार ने आपराधिक षड़यंत्र की जांच क्यों नहीं करवाई? आयोग बनाया तो उसकी जांच के दायरे में षड़यंत्र को क्यों शामिल नहीं किया गया?
विनोद वर्मा ने कहा कि 2014 में एनआईए ने पहला चालान प्रस्तुत किया था। फिर 2015 में दूसरा चालान पेश किया गया। इन दोनों चालान में नक्सली संगठन के प्रमुख कर्ता-धर्ता गणपति और रमन्ना के नाम नहीं डाले गए। तथ्य यह है इससे पहले जांच के दौरान एनआईए ने इन दोनों नेताओं को भगोड़ा भी घोषित किया था और संपत्ति कुर्क करने की नोटिस भी निकाली थी। एनआईए ने अपने चालान में कह दिया कि झीरम का षड़यंत्र दंडकारण्य ज़ोनल कमेटी ने रचा था। जो थोड़ा बहुत भी नक्सली संगठन और उसके ढांचे को समझते हैं वो बता सकते हैं कि इतना बड़ा षड़यंत्र शीर्ष नेतृत्व के बिना नहीं रचा जा सकता। कांग्रेस पार्टी ने जब विधानसभा में यह सवाल उठाया और हंगामा हुआ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने झीरम हत्याकांड की सीबीआई जांच करवाने की घोषणा की थी। रमन सरकार ने सीबीआई जांच को नोटिफ़ाई कर दिया और केंद्र को पत्र भेज दिया गया था। दिसंबर 2016 में केंद्र की सरकार ने राज्य सरकार के सीबीआई जांच के अनुरोध को ठुकरा दिया और कह दिया कि एनआईए जांच ही पर्याप्त है।.चकित कर देने वाली बात यह है कि डॉ. रमन सिंह ने दिसंबर 2018 तक छत्तीसगढ़ की जनता से यह बात छिपाए रखी। मार्च 2017 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष भूपेश बघेल ने रमन सिंह को सीबीआई जांच के संबंध में एक पत्र लिखा था। उसका भी कोई जवाब नहीं आया था। जब राज्य में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार बनी तब कहीं जाकर पता चला कि सीबीआई जांच से तो केंद्र की सरकार ने इंकार कर दिया है। तब जाकर छत्तीसगढ़ पुलिस ने नई एफ़आईआर दर्ज की लेकिन एनआईए इस मामले को अदालत तक ले गई।
विनोद वर्मा ने कहा कि रमन सिंह सरकार ने एक जांच आयोग बनाया था। कांग्रेस की सरकार ने महसूस किया कि आयोग की जांच का दायरा पर्याप्त नहीं है। तब जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने आयोग के कार्यकाल और जांच के दायरे को आगे बढ़ाया। चूंकि जस्टिस मिश्रा तब तक उपलब्ध नहीं थे इसलिए नई नियुक्ति की गई। इसके बाद तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता धरमलाल कौशिक ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और राज्य सरकार के इस फ़ैसले को चुनौती दे दी। अभी यह मामला अदालत में लंबित है। 2013 में 6-7 मई को बस्तर ज़िले में रमन सिंह जी की विकास यात्रा निकली। उसके लिए 1781 सुरक्षा कर्मी तैनात किए गए थे। उसी बस्तर जिले में 24-25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा निकली तो मात्र 138 सुरक्षा कर्मी तैनात किए गए थे। सुरक्षा के पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए थे। महेंद्र कर्मा जी ने जनवरी 2013 में अपनी सुरक्षा बढ़ाने तत्कालीन डॉ. रमन सिंह सरकार को पत्र लिखा था जिस पर ध्यान नहीं दिया गया। सबसे बड़ा सवाल यह है कि केंद्र की भाजपा सरकार क्यों नहीं चाहती कि इस राजनीतिक षड़यंत्र की जांच हो? क्यों रमन सिंह सरकार ने यह जांच नहीं करवाई? क्यों उन्होंने सीबीआई जांच की बात छिपाए रखी? क्यों भाजपा नेता धरमलाल कौशिक कोर्ट गए?
पत्रकार वार्ता में वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजेन्द्र तिवारी, वरिष्ठ प्रवक्ता आर.पी. सिंह, धनंजय सिंह ठाकुर, सुरेन्द्र वर्मा, आयुष पांडेय, प्रवक्ता अजय गंगवानी एवं सत्यप्रकाश सिंह उपस्थित थे।