■ अनिरुद्ध दुबे
“जीवन में कोई रद्दोबदल नहीं हुआ है- जहां था, वहीं हूं। भावों का व्दंव्द निरंतर चल रहा है। उत्थान- आज के ज़माने में पैसा, पैसा पैसा। शायद मुझे फिर आना पड़ेगा। इस जन्म में शायद कुछ नहीं हो सकता। ऐसा मुझे दिखता है।‘’ कुछ इस तरह के व्यथित मनोभावों को दूसरी ऐतिहासिक छत्तीसगढ़ी फ़िल्म `घर व्दार’ के डायरेक्टर निर्जन तिवारी (वास्तविक नाम लखन तिवारी) ने 23 अक्टूबर 1959 को मुम्बई से अपने रायपुर के अति घनिष्ठ मित्र ठाकुर रामकृष्ण सिंह को पत्र लिखकर व्यक्त किया था।
निर्जन तिवारी एवं ठाकुर रामकृष्ण सिंह
ठाकुर रामकृष्ण सिंह पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदर्शी एवं महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर प्यारेलाल सिंह के बेटे थे। वे विधायक एवं बुनकर सहकारी संघ के अध्यक्ष भी रहे थे। निर्जन जी के साथ रामकृष्ण जी की मित्रता बचपन की थी, जो कि आखरी तक निभी। दोनों में कितनी घनिष्ठता थी इसका प्रमाण उनके बीच 1956 से लेकर 1964 के बीच हुए पत्र व्यवहार में मिलता है। निर्जन जी ने अपने पत्रों में एक फिल्म `प्यार की प्यास’ का कई बार जिक्र किया है। वे इस फिल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर थे। मुख्य डायरेक्टर महेश कौल थे। इस फ़िल्म को अवार्ड मिला था। यह हिन्दुस्तान की दूसरी सिनेमा स्कोप फ़िल्म थी। पहली सिनेमा स्कोप फ़िल्म महान निर्देशक एवं अभिनेता गुरुदत्त की `काग़ज़ के फूल’ थी। `प्यार की प्यास’ एक मासूम बच्ची पर केन्द्रित थी। काफ़ी बाद में कुछ इसी अंदाज़ में नसीरुद्दीन शाह एवं शबाना आज़मी अभिनीत `मासूम’ बनी। फर्क यह था कि `मासूम’ की कहानी एक मासूम बालक के इर्द-गिर्द घूमती है। `प्यार की प्यास’ देश भर के सिनेमाघरों में लगने के बाद 1979 से 1981 के बीच के किसी समय में दिल्ली दूरदर्शन से दिखाई गई थी। दुर्भाग्य रहा कि बच्चों के मनोविज्ञान को बेहतरीन तरीके से सामने रखने वाली उच्च कोटि की फिल्म `प्यार की प्यास’ व्यावसायिक रूप से सफल नहीं हो सकी थी।
`कहि देबे संदेस’ जैसी पहली यादगार छत्तीसगढ़ी फिल्म बना चुके मनु नायक बताते हैं- “निर्जन तिवारी `संतान’, `प्यार की प्यास’, `मियॉ बीबी राजी’, `सौतेला भाई’, `बिन बादल बरसात’, `तलाक’, `शारदा’ एवं `हम कहां जा रहे’ जैसी फिल्मों के असिस्टेंट डायरक्टेर थे। उन्होंने `दीवाना’ (राज कपूर – सायरा बानो) के अलावा कई फिल्मों में छोटा-मोटा रोल भी किया था। प्रेमनाथ की फिल्म `कड़की’ का तिवारी जी डायरेक्शन करने वाले थे, पर वह फिल्म नहीं बन पाई। पंचोली साहब की फिल्म `निर्मला’ में तिवारी जी एक्टिंग करने वाले थे और इस फिल्म के हीरो हीरोइन के लिए राजेन्द्र कुमार एवं वहीदा रहमान जैसे कलाकारों के नाम की घोषणा हुई थी। ये फिल्म भी नहीं बन पाई।
निर्जन तिवारी के पिता पंडित रामदयाल तिवारी के नाम पर रायपुर में एक स्कूल है। पंडित तिवारी देश के जाने-माने साहित्यकार और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी थे। फिल्मों में गहरी रुचि रखने वाले बुजुर्ग शत्रुघन प्रसाद शर्मा बताते हैं- “रायपुर में कंकालीपारा क्षेत्र में निर्जन तिवारी का मकान था, जिसमें काफ़ी समय तक जाने-माने साहित्यकार एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हरि ठाकुर जी किराये से रहा करते थे। बाद में तिवारी जी के ही अनुरोध पर ठाकुर परिवार ने उस मकान को खरीद लिया था। मैं मनु नायक के साथ इसी रायपुर शहर में निर्जन तिवारी से मिला था। वे ऊंचे-पूरे थे। धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते थे। वे महेश कौल एवं ज्योति स्वरुप जैसे जाने-माने डायरेक्टर के न सिर्फ असिस्टेंट रहे बल्कि कुछ फ़िल्मों में उन्होंने रोल भी किया था। सुनील दत्त, सायरा बानो, मेहमूद एवं किशोर कुमार जैसे सितारों से सजी कॉमेडी फिल्म `पड़ोसन’ में तिवारी जी का छोटा सा रोल था।
अजीब सी ज़िन्दगी
थी- मनु नायक
डायरेक्टर मनु नायक कहते हैं- मुझे हल्का-हल्का कुछ याद आ रहा है मेरी और निर्जन तिवारी की आख़री मूलाक़ात 1975 में मुम्बई के रणजीत स्टूडियो में हुई थी। उन्होंने मुझे बताया था कि लोनावाला में एक्टिंग क्लास चलाने का काम शुरु किया है। उन्होंने लम्बी उम्र गुजर जाने के बाद मुम्बई में ही रहने वाली एक युवती से शादी की थी। जहां तक उनका एक बेटा भी था। उनकी ज़िंदगी कुछ अजीब सी थी। ज़िंदगी के आख़री समय में वे लोगों से कटे-कटे से रहने लगे थे। नायक जी का अनुमान है कि निर्जन तिवारी 1980 से 86 के बीच मुम्बई या लोनावाला में गुमनामी की स्थिति में चल बसे।
दुनिया अगर मिल
भी जाए तो क्या है…
महान फ़िल्मकार गुरुदत्त की फिल्म `प्यासा’ के एक गीत में यह लाइन आती है- “ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है”, लगता है कुछ ऐसा ही भाव निर्जन तिवारी के मन में कभी-कभी आता रहा होगा। 23 मार्च 1959 के पत्र में तिवारी जी ठाकुर रामकृष्ण सिंह से अपने मन की बात कुछ इस तरह बयां करते हैं- “फिल्म `संतान’ खत्म होने वाली है। दो दिन का काम बाकी है। मैंने सोचा है साल-दो साल के अंदर संन्यास लेने का।“
पुराने दोस्तों को
ख़ूब करते थे याद
निर्जन तिवारी ने अपने कई पत्रों में रायपुर के कुछ पुराने मित्रों श्यामलाल गुप्ता, स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी, पंडित हनुमान प्रसाद दुबे एवं बल्लभदास गुप्ता का स्मरण किया है। श्यामलाल गुप्ता रायपुर जाने-माने वकील थे। स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी जाने-माने साहित्यकार एवं पत्रकार थे। हनुमान प्रसाद दुबे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं रायपुर के प्राचीन बांके बिहारी मंदिर के पुजारी थे। बल्लभदास गुप्ता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के साथ रायपुर से आगे खारुन नदी के करीब स्थित कुम्हारी गांव के मालगुजार थे। तिवारी जी ने पत्रों में अपने दो और पुराने मित्रों विश्वनाथ प्रसाद मिश्रा एवं भगवती दीक्षित को भी याद किया है।
निर्जन तिवारी की ओर से
रामकृष्ण सिंह को लिखी
गई चिट्ठियों के चुनिंदा अंश
0 मैं आजकल महेश भाई (महेश कौल) के साथ `तलाक’ में काम कर रहा हूं।
(19 सितम्बर 1957)
0 दो पिक्चर बन रही है- `मियॉ बीबी राजी’ और `प्यार की प्यास’ और दो बाहर की है `निर्मला’ और `सौतेला भाई।‘
(21 नवम्बर 1959)
0 `मियॉ बीबी राज़ी’ ख़त्म हो गई। रायपुर में शारदा टाकीज़ में रिलीज़ तारीख 24-6-1960 है। बंबई में भी इसी तारीख को है। नागपुर भी है।
(21 जून 1960)
0 आजकल `प्यार की प्यास’ की आउटडोर शुटिंग की तैयारी हो रही है। मद्रास, मंगलौर व मैसूर जाना है।
(14 अक्टूबर 1960)
0 तुम्हारे सारे पत्र मिले। याद होगा- मैंने एक पत्र मैसूर से भेजा था। उसका ज़वाब नहीं मिला। ख़ैर, `प्यार की प्यास’ ख़त्म हो गई है। अभी कम्पनी का कोई इरादा नहीं है, दूसरी पिक्चर बनाने का- जब तक `प्यार की प्यास’ रिलीज़ न हो जाए। एक तरह का सबों को नोटिस मिल चुका है। कारण, दो पिक्चर `संतान’ और `मिया बीवी राज़ी’ की असफलता।
(29 मार्च 1961)
0 प्रिय बड़े, तुम्हारे सब पत्र मिले पर शायद मैं एक का भी ज़वाब न दे सका। कारण अनेक हैं। एक तो सबसे बड़ा कारण है- `प्यार की प्यास’ का ठप हो जाना। दूसरा सारे लोगों को नोटिस। नौकरी ख़त्म। आज चार महीने से बेक़ार। अनेक चिंताओं ने दिमाग में घर कर लिया है। दौड़ धूप जारी है इस भरे बरसात में। ख़ैर। संग्राम तो इस लाइन में है- पर यकायक चलती गाड़ी का ठप हो जाना- धैर्य छूट जाता है।
(11 अक्टूबर 1961)
0 प्रिय बड़े, सालों बाद पत्र लिख रहा हूं। उलझन सख़्त और परेशानियां। खैर- यह धंधा ऐसा ही है। दोष किसी का नहीं।
(14 अप्रैल 1962)
0 `बिन बादल बरसात’ की रिलीज़ तारीख 5-9-1963 को बाबूलाल टाकीज़ में है। आशा है तुम सहपिवार देखोगे। आने की ताकत तो है नहीं, वरना ज़रूर आता। नौकरी छूटे आज तीसरा माह है। बेक़ारी सख़्त है। इच्छा बहुत है आने की, पर करूं क्या। `बिन बादल बरसात’ अच्छी चल रही है सब जगह। डायरेक्टर ज्योति स्वरुप का नाम काफ़ी हो गया है। भगवान तरक्की दे।
(29 अगस्त 1963)
0 मैं श्री प्रेमनाथ की एक पिक्चर डायरेक्ट करने वाला हूं, शीघ्र। सब्जेक्ट है कॉमेडी। मैं खुद लिख रहा हूं। बरसों की मुराद ख़ुदा ने पूरी कर दी। अब मैं डायरेक्टर हूं। ख़ुश हूं। पिक्चर का नाम है `कड़की।‘
(चिट्ठी की तारीख स्पष्ट नहीं)