● कारवां (30 अप्रैल 2023)- कम दिलचस्प नहीं ‘कौशल्या विहार’ से पहले की कहानी

■ अनिरुद्ध दुबे

चंदखुरी में माता कौशल्या के नाम पर तीन दिवसीय कौशल्या महोत्सव मना ही था कि इसके ठीक बाद रायपुर ग्रामीण के ‘भेंट मुलाक़ात’ कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ‘कमल विहार’ के नाम को बदलकर ‘कौशल्या विहार’ करने की बड़ी घोषणा कर दी। मुख्यमंत्री के इस फैसले पर भाजपा नेता चाहकर भी कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे हैं। दें भी तो कैसे, भगवान राम के प्रति अगाध श्रद्धा जो है और फिर कौशल्या भगवान राम की माता हैं। ‘कौशल्या विहार’ को लेकर कुछ ऐसे वैसे बोल निकलें तो कितने ही लोगों की भावनाएं आहत होंगी। फिर यह भी सच है कि क़रीब 1570 एकड़ में बनी ‘कमल विहार’ टाउनशिप भाजपा नेताओं की ही मेहनत का नतीजा है जिसे मूर्त रूप देने में कभी रायपुर विकास प्राधिकरण के सीईओ रहते हुए आईएएस अमित कटारिया ने अहम् भूमिका निभाई थी। ‘कमल विहार’ की परिकल्पना सन् 2006 में रायपुर विकास प्राधिकरण के तत्कालीन अध्यक्ष श्याम बैस एवं उपाध्यक्ष श्रीचंद सुंदरानी ने की थी। इसे ग्राम डूंडा में प्रस्तावित कमल विहार प्रोजेक्ट नाम दिया गया था। तब यह ढाई सौ एकड़ के आसपास का प्रोजेक्ट था। इस प्रोजेक्ट को लेकर बैस व सुंदरानी तत्कालीन आवास एवं पर्यावरण मंत्री गणेशराम भगत से मिले थे। तब भगत ने इस प्रोजेक्ट को लेकर किसी तरह का कोई उत्साह नहीं दिखाया था। जब 2008 में प्रदेश में भाजपा की दूसरी बार सरकार बनी, सुनील सोनी रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने और राविप्रा में सीईओ की सीट पर अमित कटारिया आए। कटारिया के आने के बाद मानो बोतल में बंद पड़ा ‘कमल विहार’ का जिन्न बाहर आ गया। पूरे जोर-शोर के साथ ‘कमल विहार’ बसाने की घोषणा हुई। ‘कमल विहार’ बसाने में न सिर्फ़ किसानों की ज़मीनों का अधिग्रहण होना था बल्कि और कई तरह की कागज़ी पेचीदगियां थीं। इन सारे हालातों का सामना करते हुए कटारिया ‘कमल विहार’ को मूर्त रूप देने की कोशिश में लगे रहे। उस दौर में कटारिया ने मीडिया के समक्ष बेबाक़ी से अपनी बात रखते हुए कहा था कि “यदि ‘कमल विहार’ जैसे प्रयोग नहीं किए गए तो पुराना रायपुर शहर मुम्बई के धारावी की तरह हो जाएगा।“ राविप्रा में लंबा वक़्त देने के बाद कटारिया स्थानांतरित होकर बस्तर चले गए, लेकिन ‘कमल विहार’ का सफ़र फिर नहीं रुका। ‘कमल विहार’ को लेकर न जाने कितनी ही अच्छी-बुरी कहानियां सामने आती रहीं लेकिन इस टाउनशिप के विस्तार का क्रम जारी रहा और अब भी जारी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ‘कमल विहार’ का नाम ‘कौशल्या विहार’ करने की जो घोषणा की उस पर राविप्रा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष से लेकर संचालक मंडल के सदस्यों ने हर्ष जताया है। वहीं कई बड़े भाजपा नेता असमंजस में नज़र आए कि ‘कमल विहार’ का नाम बदलने पर प्रतिक्रिया दें तो किस तरह दें।

बड़े सरकार की गाड़ी

के पहिये का खौफ़

राजधानी रायपुर में शंकर नगर मुख्य मार्ग पर मंत्रियों के बंगले एवं उसके आसपास सैकड़ों मकानों में अमृत मिशन की पाइप लाइन बिछे साल भर हो गया लेकिन अब तक टेस्टिंग नहीं हो पाई है। कारण, शहीद भगत सिंह चौक से आला अफ़सरों के छत्तीसगढ़ क्लब के बीच क़रीब 800 मीटर में पाइप लाइन का काम रुका पड़ा है। काम रुके रहने के पीछे कारण सूरक्षा बताया जा रहा है। बताने वाले बताते हैं कि बड़े बंगले से अनुमति नहीं मिल रही है। बड़े बंगले की व्यवस्था देख रहे लोग कहते हैं अमृत मिशन का काम देख रहे लोगों ने तो कभी हमसे संपर्क ही नहीं किया तो फिर गड्ढा खोदने के काम में किस तरह का व्यवधान! प्रशासनिक क्षेत्र से जुड़े कुछ भरोसमंद लोगों का कहना है कि पाइप लाइन नहीं बिछ पाने के पीछे सूरक्षा जैसी कोई बात नहीं है। दरअसल दिन भर में दो से तीन बार बड़े सरकार की गाड़ियों का काफ़िला निकलता है। गड्ढा खोदने से लेकर पाइप लाइन डालने और गड्ढे को वापस पाटने के लिए 40 से 50 घंटे का समय चाहिए। यह तभी हो पाएगा जब बड़े सरकार दो दिन के लिए बाहर जाएं। बड़े सरकार का दो दिनों का प्रवास कब होगा पता नहीं। बड़े सरकार हज़ारों मिल दूर भी जाते हैं तो देर रात तक या फिर दूसरे दिन रायपुर आ ही जाते हैं। ऐसे में रोड की खुदाई के लिए 40 से 50 घंटे का समय निकले भी तो कैसे? ये तो वैसे ही हो गया है कि कब नौ मन तेल जलेगा और कब राधा नाचेगी।

कब बनना शुरु होगा

नया रायपुर में

होलसेल कॉरिडोर?

सरकार चाह रही है नया रायपुर में ‘होलसेल कॉरिडोर’ का काम ज़ल्द शुरु हो जाए। ‘होलसेल कॉरिडोर’ के लिए सरकार नया रायपुर में हज़ार एकड़ ज़मीन देने तैयार है। कहा तो यह जा रहा है कि यह ‘होलसेल कॉरिडोर’ दक्षिण मध्य एशिया का सबसे बड़ा कॉरिडोर होगा। इस योजना पर हाल ही में नया रायपुर विकास प्राधिकरण के अफ़सरों एवं छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के पदाधिकारियों के बीच लंबी बातचीत हुई। उल्लेखनीय है कि इस ‘होलसेल कॉरिडोर’ के पीछे परिकल्पना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की है। तीसरी बार जब भाजपा की सरकार बनी थी तो मुर्दा शहर कहलाने वाले नया रायपुर को तेजी से बसाने पर काफ़ी कुछ काम हो सकता था, जो कि नहीं हुआ। भाजपा शासनकाल के समय में हाउसिंग बोर्ड ने नया रायपुर में हज़ार के आंकड़े में मकान ज़रूर बना दिए जो कि किसी कांक्रीट के जंगल की तरह नज़र आता है। भूपेश बघेल अपनी तरफ से भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि आने-वाले चार-छह महीनों में नया रायपुर में रौनक दिखने लगे। यही कारण है कि कुछ महीनों बाद बघेल एवं उनकी सरकार के अन्य मंत्रीगण नया रायपुर शिफ्ट होने की तैयारी में हैं। इस बात की भी पुरज़ोर कोशिश हो रही है कि नया रायपुर में ज़ल्द ट्रेनें दौड़ने लगें। बताते हैं नया रायपुर को नया रंग देने आवास एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अक़बर के दिमाग में भी कोई नया प्लान है। सूत्रों का कहना है कि अक़बर पुराने और नये रायपुर के  बीच 16 से 18 किलोमीटर का जो खालीपन है उसे कैसे भरा जाए पर लगातार विचार मंथन कर रहे हैं।

फिर चर्चा में रायपुर शहर

जिला भाजपा अध्यक्ष पद

रायपुर शहर जिला भाजपा अध्यक्ष पद को लेकर भाजपा के भीतर फिर तरह-तरह की चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है। जब तक राजीव अग्रवाल शहर भाजपा अध्यक्ष थे भीतर की बातें बहुत ज़्यादा बाहर नहीं आया करती थीं। अग्रवाल के बाद पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी ने अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी संभाली। देखा जाए तो सुंदरानी काफ़ी अनुभवी राजनीतिज्ञ होने के साथ पूरे समय सक्रिय रहने वाले नेता रहे हैं। लेकिन पता नहीं उनके खिलाफ़ पार्टी के भीतर ऐसा कैसे आक्रोश पनपा जो कि कम होने का नाम ही नहीं लिया। सुंदरानी के बाद जयंती पटेल को अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी मिली। पटेल सहज और सरल व्यक्ति हैं। किसी समय में वे भाजपा की टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय पार्षद चुनाव लड़ गए थे और जीते भी थे। जीत के पीछे कारण सहजता और सरलता ही मानी गई थी। अंदर की ख़बर रखने वाले बताते हैं कि पटेल के साथ भी पार्टी के बहुत से लोगों का तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। 2023 चुनावी वर्ष है। देखने वाली बात यही रहेगी कि आने वाले दिनों में पटेल कितना जोर लगा पाते हैं।

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